प्रस्तावना:
भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान उन्नीसवीं शताब्दी में अनेक जनजातीय और किसान आंदोलनों का उदय हुआ। इन आंदोलनों ने सीधे-सीधे अंग्रेजों की दमनकारी आर्थिक नीतियों और शोषणकारी व्यवस्था को चुनौती दी। यद्यपि ये आंदोलन प्रायः स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर तक ही सीमित रहे, लेकिन इन्होंने भारतीय समाज में असंतोष और प्रतिरोध की तीव्र भावना को जन्म दिया, जो आगे चलकर राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि बनी।
जनजातीय आंदोलन
संथाल विद्रोह (1855-56)
- संथाल जनजाति के लोगों ने दामिन-इ-कोह क्षेत्र में अंग्रेजों और साहूकारों के खिलाफ व्यापक विद्रोह किया।
- इसका कारण भूमि छीनना, साहूकारी कर्ज और शोषणकारी व्यवस्था थी।
- विद्रोह ने अंग्रेजों को हिला दिया परन्तु आन्दोलन को क्रूरता से दबा दिया गया।
मुंडा उलगुलान (1899-1900)
- बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडाओं ने “उलगुलान” या महान आंदोलन छेड़ा।
- इसका उद्देश्य जंगल, भूमि और परंपरागत अधिकारों की रक्षा करना था।
- बिरसा ने धार्मिक-सामाजिक सुधारों को भी आंदोलन से जोड़ा।
अन्य जनजातीय विद्रोह
- भील, कोल और खासी जैसी जनजातियों ने भी ब्रिटिश शासन की वन नीतियों और जबरन नियंत्रण का विरोध किया।
- अंग्रेजों के वन कानूनों ने उनके शिकार, खेती और पशुपालन जैसे पारंपरिक जीवन स्रोतों को छीन लिया।
किसान आंदोलन
नील विद्रोह (1859-60)
- बंगाल और विहार के किसानों को अंग्रेज जबरन नील की खेती करने को बाध्य करते थे।
- कम दाम मिलने और शोषण से परेशान किसानों ने विद्रोह किया।
- पत्रकारों और साहित्यकारों के सहयोग से यह विद्रोह अंग्रेजी शोषण का प्रतीक बना।
दक्खिन दंगे (1875)
- महाराष्ट्र के किसानों ने महाजनों और साहूकारों के शोषण के विरुद्ध व्यापक आंदोलन किया।
- महाजनों द्वारा ऊँचे ब्याज और भूमि छीनने की नीति इसके प्रेरक बने।
अन्य किसान आंदोलन
- कई क्षेत्रों में कठोर लगान और स्थायी बंदोबस्त की नीतियों के विरुद्ध विद्रोह हुए, जिनमें किसान अक्सर स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर प्रतिरोध करते।
औपनिवेशिक नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का स्वरूप
- इन आंदोलनों में स्थानीय समाजों के असली संकट और आर्थिक समस्याएँ उजागर हुईं।
- चालाकी से राजस्व वसूली, साहूकारी शोषण और ज़मींदारी व्यवस्था के खिलाफ किसानों में असंतोष फैला।
- जनजातीय आंदोलन अंग्रेजों के वन नियंत्रण और सांस्कृतिक हस्तक्षेप के खिलाफ थे।
योगदान और महत्व
यद्यपि ये आंदोलन स्थानीय थे और राष्ट्रीय स्तर का स्वरूप नहीं ग्रहण कर सके, परंतु इन्होंने अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिलाने का कार्य किया।
इन विद्रोहों ने बाद के राष्ट्रीय नेताओं को यह सिखाया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जनसंघर्ष और जनता की व्यापक भागीदारी आवश्यक है।
इससे यह स्पष्ट हुआ कि ब्रिटिश नीतियाँ केवल उच्च वर्ग को नहीं, बल्कि किसानों और जनजातियों की आजीविका को भी प्रभावित कर रही थीं।
निष्कर्ष:
जनजातीय और किसान आंदोलनों ने उन्नीसवीं शताब्दी में उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष की नींव रखी। ये आंदोलन क्षेत्रीय सीमाओं से बंधे होने के कारण तत्काल स्वतंत्रता नहीं दिला सके, परंतु इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को दिशा और जनाधार प्रदान किया। किसानों और जनजातियों का यह प्रतिरोध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला माना जा सकता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर
प्रश्न 1. संथाल विद्रोह (1855-56) का मुख्य कारण क्या था?
(a) धार्मिक सुधार
(b) भूमि छीनना और साहूकारी शोषण
(c) नील की खेती का विरोध
(d) वन कानूनों का विरोध
उत्तर: (b) भूमि छीनना और साहूकारी शोषण
व्याख्या: संथाल विद्रोह दामिन-इ-कोह क्षेत्र में हुआ। अंग्रेजों और स्थानीय साहूकारों द्वारा भूमि हड़पने, ऊँचे ब्याज के कर्ज और शोषणकारी व्यवस्था ने संथाल जनजाति को विद्रोह के लिए मजबूर किया। 1855-56 का यह आंदोलन व्यापक था और अंग्रेजी शासन को गंभीर चुनौती दी, हालांकि इसे क्रूरता से दबा दिया गया।
प्रश्न 2. मुंडा “उलगुलान” आंदोलन के नेता कौन थे?
(a) बिरसा मुंडा
(b) टंट्या भील
(c) सिद्धो-कान्हू
(d) नाना साहेब
उत्तर: (a) बिरसा मुंडा
व्याख्या: 1899-1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा जनजाति ने “उलगुलान” या महान विद्रोह शुरू किया। यह आंदोलन जंगल, भूमि और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए था। बिरसा ने इसमें धार्मिक और सामाजिक सुधारों को भी जोड़ा और जनजातीय पहचान को जागृत किया। यह विद्रोह अंग्रेजों के वन कानूनों के खिलाफ था।
प्रश्न 3. नील विद्रोह (1859-60) का केंद्र कौन-सा क्षेत्र था?
(a) महाराष्ट्र और गुजरात
(b) बंगाल और बिहार
(c) पंजाब और हरियाणा
(d) असम और मेघालय
उत्तर: (b) बंगाल और बिहार
व्याख्या: नील विद्रोह बंगाल और बिहार के किसानों द्वारा किया गया था। अंग्रेजों ने किसानों को जबरन नील की खेती हेतु बाध्य किया, जिससे भारी नुकसान हुआ क्योंकि बाजार में कीमतें कम थीं और लागत अधिक थी। पत्रकारों और साहित्यकारों का सहयोग इस विद्रोह को मजबूती देता रहा, और यह अंग्रेजी शोषण का प्रतीक बन गया।
प्रश्न 4. 1875 के दक्खिन दंगे किसके खिलाफ थे?
(a) वन कानूनों के खिलाफ
(b) महाजनों और साहूकारों के शोषण के खिलाफ
(c) नील की खेती के खिलाफ
(d) लैप्स की नीति के खिलाफ
उत्तर: (b) महाजनों और साहूकारों के शोषण के खिलाफ
व्याख्या: दक्खिन दंगे महाराष्ट्र में 1875 में हुए, जिनका नेतृत्व किसानों ने किया। महाजनों द्वारा ऊँचे ब्याज दरों पर ऋण और जमीन छीनने की नीतियों ने किसानों को विद्रोह के लिए उकसाया। यह आंदोलन ग्रामीण आर्थिक संकट और शोषण के खिलाफ किसानों की पहली बड़ी संगठित चुनौती थी।
प्रश्न 5. जनजातीय और किसान आंदोलनों का मुख्य ऐतिहासिक महत्व क्या था?
(a) अंग्रेजी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना
(b) तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त कर लेना
(c) राष्ट्रीय आंदोलन को जनाधार और दिशा देना
(d) औद्योगिक क्रांति शुरू करना
उत्तर: (c) राष्ट्रीय आंदोलन को जनाधार और दिशा देना
व्याख्या: यद्यपि किसानों और जनजातियों के आंदोलन स्थानीय स्तर पर सीमित रहे, उन्होंने अंग्रेजी शासन के शोषण को उजागर किया और जनता में प्रतिरोध की भावना जगाई। किसानों और जनजातियों का संघर्ष आगे चलकर राष्ट्रीय आंदोलन का आधार बना। इससे स्पष्ट हुआ कि स्वतंत्रता के लिए जनभागीदारी और सामूहिक संघर्ष आवश्यक है।