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उत्तरी भारत के इतिहास में हर्षवर्धन के शासन का महत्व

प्रस्तावना:

गुप्त साम्राज्य के पतन और हूण आक्रमणों से उत्पन्न अस्थिरता के बाद उत्तरी भारत में राजनीतिक विखंडन की स्थिति पैदा हो गई थी। ऐसी परिस्थिति में हर्षवर्धन (606–647 ईस्वी) का उदय हुआ। उसने न केवल उत्तरी भारत का राजनीतिक एकीकरण किया बल्कि अपनी उदार नीतियों, सांस्कृतिक संरक्षण और कला-साहित्य के प्रोत्साहन से भारतीय इतिहास में एक उज्ज्वल अध्याय जोड़ा। उनका शासनकाल प्राचीन भारत के अंतिम बड़े साम्राज्य के रूप में माना जाता है, जिसके बाद भारतीय उपमहाद्वीप मध्यकालीन विखंडन की ओर बढ़ा।

उत्तरी भारत का एकीकरण

  • हर्ष ने गुप्त साम्राज्य के पतन और हूण आक्रमणों से उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त किया।
  • उसने लगभग पूरे उत्तरी भारत को एकीकृत कर लिया।
  • यद्यपि वह दक्षिण भारत में विजय प्राप्त नहीं कर सका (चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय से हार), लेकिन उत्तर भारत में स्थिरता स्थापित करने में सफल रहा।

राजधानी कन्नौज का महत्व

  • हर्ष ने अपनी राजधानी कन्नौज में स्थापित की।
  • कन्नौज राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
  • आगे चलकर कन्नौज “त्रिपक्षीय संघर्ष” (गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूटों) का केंद्र भी बना, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता और स्पष्ट होती है।

बौद्ध धर्म का संरक्षण और कन्नौज सभा

  • हर्ष व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म का अनुयायी था, यद्यपि उसने हिंदू धर्म को भी संरक्षण दिया।
  • उसने 643 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग की उपस्थिति में कन्नौज बौद्ध सभा का आयोजन किया।
  • इस सभा में दूर-दूर से विद्वान, भिक्षु और दार्शनिक आए, जिससे हर्ष का साम्राज्य बौद्ध अध्ययन और प्रचार का केंद्र बन गया।

कला, संस्कृति और साहित्य का विकास

  • हर्ष एक विद्वान और साहित्यकार शासक था।
  • तत्कालीन महान संस्कृत लेखक बाणभट्ट उसकी सभा में थे, जिन्होंने हर्षचरित और कादंबरी की रचना की।
  • स्वयं हर्ष ने भी नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शनिका जैसे संस्कृत नाटकों की रचना की।
  • उसका दरबार कला, संगीत और साहित्य का प्रमुख आश्रयस्थल बन गया।

प्रशासनिक व्यवस्था

  • हर्ष की प्रशासनिक प्रणाली भूमि राजस्व पर आधारित थी।
  • किसान उपज का एक अंश कर के रूप में राज्य को देते थे।
  • राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उसने रक्षा और न्याय पर विशेष ध्यान दिया।
  • उसके शासन में आम जनता को अपेक्षाकृत स्थिर और सुरक्षित जीवन मिला।

हर्ष का ऐतिहासिक महत्व

  • हर्षवर्धन का साम्राज्य प्राचीन भारत का अंतिम बड़ा साम्राज्य था।
  • उसके बाद उत्तरी भारत पुनः छोटे-छोटे राज्यों और सामंतों में बँट गया, जिससे मध्यकालीन विखंडन की नींव पड़ी।
  • इस दृष्टि से हर्ष का शासन गुप्तकालीन युग के बाद प्राचीन और मध्यकालीन भारत के बीच एक सेतु का कार्य करता है।

निष्कर्ष:

हर्षवर्धन का शासन उत्तरी भारत को पुनः एक करने और सांस्कृतिक चेतना को संजीवित करने के लिए जाना जाता है। वह न केवल एक सक्षम शासक था, बल्कि साहित्य, धर्म और कला का महान संरक्षक भी था। उसका काल प्राचीन भारतीय इतिहास के उस अंतिम महान सम्राट का युग था, जिसके बाद भारतीय उपमहाद्वीप राजनीतिक विखंडन और नई मध्यकालीन प्रवृत्तियों की ओर बढ़ा। इस प्रकार हर्षवर्धन का शासनभार उत्तरी भारत की राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण अध्याय था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर

प्रश्न 1. गुप्त साम्राज्य के पतन और हूण आक्रमणों के बाद उत्तरी भारत में स्थिरता किस शासक के शासनकाल में स्थापित हुई?

(a) चंद्रगुप्त प्रथम
(b) हर्षवर्धन
(c) पुलकेशिन द्वितीय
(d) समुद्रगुप्त

उत्तर: (b) हर्षवर्धन

व्याख्या: गुप्त साम्राज्य के पतन और हूण आक्रमणों से उत्पन्न अस्थिरता ने उत्तरी भारत को राजनीतिक विखंडन की ओर धकेल दिया। इस परिस्थिति में हर्षवर्धन (606–647 ईस्वी) का उदय हुआ। उसने विभिन्न छोटे राजाओं को परास्त कर उत्तर भारत के अधिकांश भाग को एकीकृत किया और राजनीतिक स्थिरता स्थापित की। हर्ष का साम्राज्य प्राचीन भारत का अंतिम बड़ा साम्राज्य माना जाता है।

प्रश्न 2. हर्षवर्धन की राजधानी कहाँ स्थित थी, जो आगे चलकर “त्रिपक्षीय संघर्ष” का प्रमुख केंद्र बनी?

(a) पाटलिपुत्र
(b) कन्नौज
(c) अजमेर
(d) उज्जैन

उत्तर: (b) कन्नौज

व्याख्या: हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी कन्नौज को बनाया। यह नगर न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व का केंद्र था, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी रणनीतिक स्थिति रखता था। हर्ष के बाद यह नगर “त्रिपक्षीय संघर्ष” (गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूटों) का केंद्र बना। इससे कन्नौज की ऐतिहासिक महत्ता प्राचीन से मध्यकाल की ओर संक्रमण में अत्यधिक बढ़ गई।

प्रश्न 3. 643 ईस्वी में हर्षवर्धन ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु किस प्रसिद्ध सभा का आयोजन किया था?

(a) प्रयागसभा
(b) नालंदा सभा
(c) कन्नौज बौद्ध सभा
(d) उज्जयिनी सम्मेलन

उत्तर: (c) कन्नौज बौद्ध सभा

व्याख्या: हर्षवर्धन व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म का अनुयायी था, यद्यपि उसने हिंदू धर्म को भी संरक्षण दिया। 643 ईस्वी में उसने चीनी यात्री ह्वेनसांग की उपस्थिति में कन्नौज बौद्ध सभा का आयोजन किया। इस सभा में विभिन्न देशों से विद्वान, भिक्षु और दार्शनिक आए, जिससे हर्ष का साम्राज्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध प्रचार-प्रसार का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

प्रश्न 4. हर्षवर्धन के दरबार से संबंध रखने वाले महान संस्कृत साहित्यकार कौन थे, जिन्होंने हर्षचरित की रचना की?

(a) कालिदास
(b) बाणभट्ट
(c) भारवि
(d) भास

उत्तर: (b) बाणभट्ट

व्याख्या: हर्षवर्धन का दरबार कला और साहित्य का विशाल केंद्र था। उसके दरबार के प्रसिद्ध संस्कृत साहित्यकार बाणभट्ट थे, जिन्होंने हर्षचरित और कादंबरी जैसी अद्भुत कृतियाँ लिखीं। हर्षचरित हर्ष के जीवन और उपलब्धियों का जीवंत वर्णन प्रस्तुत करती है। इससे न केवल हर्ष के जीवन की जानकारी मिलती है, बल्कि उस कालखण्ड की सांस्कृतिक चेतना भी प्रकट होती है।

प्रश्न 5. हर्षवर्धन के शासनकाल को भारतीय इतिहास में किस विशेषता के लिए जाना जाता है?

(a) दक्षिण भारत के साथ स्थायी एकीकरण
(b) प्राचीन और मध्यकालीन भारत के बीच सेतु
(c) यूरोपीय व्यापार का विस्तार
(d) सिकंदर के आक्रमण का प्रतिरोध

उत्तर: (b) प्राचीन और मध्यकालीन भारत के बीच सेतु

व्याख्या: हर्ष का साम्राज्य प्राचीन भारत का अंतिम बड़ा साम्राज्य कहा जाता है। उसके बाद भारत पुनः छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया और सामंतवाद बढ़ा, जो मध्यकालीन भारत की विशेषता थी। इसलिए हर्ष का युग गुप्तकालीन प्राचीन वैभव और मध्यकालीन विखंडन के बीच सेतु की भूमिका निभाता है। यही कारण है कि उसके शासन का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक माना जाता है।

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