Rankers Domain

गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था

प्रस्तावना:

भारतीय इतिहास में गुप्त साम्राज्य (चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी) को राजनीतिक और सांस्कृतिक उत्थान का युग माना जाता है। गुप्त प्रशासन ने मौर्य प्रशासन से भिन्न एक नई प्रणाली विकसित की, जिसमें अधिक विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन पर बल दिया गया। गुप्त शासक स्वयं को दैवी अधिकार से सम्पन्न सर्वोच्च शासक मानते थे, लेकिन उन्होंने प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन को अपेक्षाकृत स्वतंत्र अधिकार भी दिए। इस प्रकार गुप्तकालीन प्रशासन में केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण दोनों विशेषताएँ दिखाई देती हैं।

राजा की सर्वोच्चता और दैवी स्वरूप

  • गुप्त सम्राट को शासन का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त था।
  • राजा को दैवी स्वरूप मानकर उसकी सत्ता को धार्मिक और नैतिक आधार दिया गया।
  • गुप्त शासकों ने विभिन्न उपाधियाँ जैसे “परमभागवत” और “महाराजाधिराज” धारण कीं।
  • राजा केवल राजनीतिक प्रमुख नहीं, बल्कि रक्षक और संरक्षक के रूप में भी माना जाता था।

साम्राज्य का प्रशासनिक विभाजन

  • गुप्त साम्राज्य को भुक्ति (प्रांत) में विभाजित किया गया।
  • प्रत्येक भुक्ति को पुनः विषय (जिला) और ग्राम (गाँव) में बाँटा गया।
  • इस प्रशासनिक संरचना ने साम्राज्य के विशाल भूभाग के संचालन को सरल बनाया।

प्रांतीय और जिला प्रशासन

  • प्रांतों पर शासन हेतु उपरिक (uparika) नामक अधिकारी नियुक्त किया जाता था।
  • जिलों में विषयपति या अन्य अधिकारी होते थे, जो कर संग्रह, न्याय और कानून-व्यवस्था संभालते थे।
  • इन अधिकारियों की नियुक्ति राजा करता था, किंतु वे स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए काम करते थे।

ग्राम और स्थानीय प्रशासन

  • गाँव प्रशासन की सबसे छोटी इकाई था।
  • ग्रामसभा या ग्रामपरिषद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
  • कृषक, व्यापारी और स्थानीय लोग मिलकर ग्राम की व्यवस्था सँभालते थे।
  • राजस्व वसूलने, सिंचाई व्यवस्था और आपसी विवादों को सुलझाने में ग्राम पंचायत स्वतंत्र रूप से कार्य करती थी।

विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति

  • गुप्त प्रशासन की तुलना मौर्य प्रशासन से करने पर स्पष्ट होता है कि यह अधिक विकेंद्रीकृत था।
  • स्थानीय संस्थाओं और अधिकारियों को निर्णय लेने की अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता थी।
  • इससे स्थानीय स्तर पर जनता की भागीदारी बढ़ी और प्रशासन में सहजता आई।

सैन्य संगठन

  • गुप्त शासकों ने अपनी सुरक्षा के लिए सेना का रख-रखाव किया, लेकिन मौर्यों की तरह अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था नहीं थी।
  • भूमि अनुदान देकर सामंती प्रभुओं (जिन्हें सैनिक कर्तव्यों के लिए दायित्व दिया जाता था) से सैन्य सहयोग प्राप्त किया जाता था।
  • इस प्रकार गुप्तकाल की सैन्य व्यवस्था अर्द्ध-सामंती स्वरूप ग्रहण करने लगी।

निष्कर्ष:

गुप्तकालीन प्रशासन ने भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक नया आयाम जोड़ा। राजा सर्वोच्च सत्ता का केंद्र था, किंतु प्रांतीय और स्थानीय इकाइयों को अपेक्षाकृत अधिक अधिकार देकर एक विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था विकसित की गई। ग्रामसभा और स्थानीय संस्थाओं की सक्रियता ने समाज को मजबूत आधार दिया। इस तरह गुप्तकालीन प्रशासन मौर्यों की कठोर केंद्रीकृत व्यवस्था की तुलना में अधिक सरल, लचीला और जनता की भागीदारी वाला प्रशासनिक ढाँचा प्रस्तुत करता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर

प्रश्न 1. गुप्त सम्राट अपनी सत्ता को किस आधार पर वैध ठहराते थे?

(a) सैन्य शक्ति
(b) दैवी अधिकार
(c) प्रजाजन की सहमति
(d) मंत्रीमंडल की स्वीकृति

उत्तर: (b) दैवी अधिकार

व्याख्या: गुप्त सम्राट स्वयं को दैवी अधिकार से सम्पन्न मानते थे और अपनी उपाधियों जैसे “परमभागवत” तथा “महाराजाधिराज” द्वारा इसे प्रकट करते थे। राजा न केवल राजनीतिक शासक बल्कि धर्मरक्षक और प्रजा का संरक्षक भी माना जाता था। इससे उसकी सत्ता को धार्मिक और नैतिक वैधता मिली।

प्रश्न 2. गुप्त साम्राज्य को प्रशासनिक दृष्टि से किस मुख्य इकाई में विभाजित किया गया था?

(a) विषय
(b) भुक्ति
(c) ग्राम
(d) मंडल

उत्तर: (b) भुक्ति

व्याख्या: गुप्त साम्राज्य को भुक्ति (प्रांत) में विभाजित किया गया था। प्रत्येक भुक्ति के अंतर्गत जिलों (विषय) और आगे ग्राम (गाँव) आते थे। इस प्रशासनिक विभाजन से विशाल साम्राज्य का कुशल प्रबंधन संभव हुआ और स्थानीय स्तर तक व्यवस्था पहुँच सकी।

प्रश्न 3. गुप्तकाल में प्रांतों (भुक्तियों) पर शासन करने के लिए कौन-सा अधिकारी नियुक्त किया जाता था?

(a) विषयपति
(b) उपरिक
(c) ग्रामाधिपति
(d) सामंत

उत्तर: (b) उपरिक

व्याख्या: प्रांतों के संचालन हेतु गुप्त शासक उपरिक नामक अधिकारी नियुक्त करते थे। जिलों में विषयपति प्रशासन का दायित्व निभाते थे। ये अधिकारी कर संग्रह, न्याय और कानून व्यवस्था देखते थे। वे राजा द्वारा नियुक्त होते हुए भी स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कार्य करते थे।

प्रश्न 4. गुप्तकाल में ग्राम प्रशासन की मुख्य विशेषता क्या थी?

(a) पूरी तरह से केंद्रीकृत व्यवस्था
(b) ग्रामसभा द्वारा स्थानीय कार्यों का संचालन
(c) राजकर्मचारी द्वारा प्रत्यक्ष नियंत्रण
(d) केवल राजस्व वसूली का कार्य

उत्तर: (b) ग्रामसभा द्वारा स्थानीय कार्यों का संचालन

व्याख्या: गुप्त काल में ग्राम प्रशासन अपेक्षाकृत स्वतंत्र था। ग्रामसभा या ग्राम परिषद स्थानीय मामलों का प्रबंधन करती थी। राजस्व वसूलने, सिंचाई व्यवस्था और विवाद सुलझाने जैसे कार्य ग्रामीण स्वयं करते थे। इससे गुप्त प्रशासन में विकेंद्रीकरण और जनता की सक्रिय भागीदारी संभव हुई।

प्रश्न 5. गुप्तकाल में सैन्य संगठन की कौन-सी प्रमुख विशेषता थी?

(a) पूर्णत: केंद्रीकृत सेना
(b) केवल भाड़े की सेना पर निर्भरता
(c) अर्द्ध-सामंती स्वरूप
(d) स्थानीय जनता पर अनिवार्य सैन्य कर

उत्तर: (c) अर्द्ध-सामंती स्वरूप

व्याख्या: गुप्त शासक मौर्यों की तरह केंद्रीकृत विशाल सेना नहीं रखते थे। वे सामंतों को भूमि अनुदान देकर उनसे सैन्य दायित्व निभवाते थे। इस प्रकार उनकी सैन्य व्यवस्था अर्द्ध-सामंती स्वरूप ग्रहण करने लगी, जिसमें सामंती प्रभुओं से समर्थन लिया जाता था।

Recent Posts