प्रस्तावना:
कुषाण साम्राज्य (प्रथम-द्वितीय शताब्दी ईस्वी) भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग था। कुषाण शासकों, विशेषकर कनिष्क, ने भारतीय कला, धर्म, साहित्य और सांस्कृतिक विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी नीति केवल राजनीतिक विस्तार तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ते हुए सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सेतु तैयार किया।
गांधार और मथुरा कला का संरक्षण
- कुषाण शासन के काल को विशेषकर कला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
- उन्होंने गांधार कला (यूनानी-रोमन शैली से प्रभावित) और मथुरा कला (भारतीय शैली पर आधारित) को संरक्षण दिया।
- गांधार कला में बुद्ध की मूर्तियाँ ग्रीको-रोमन प्रभावों के साथ बनीं, जबकि मथुरा कला ने भारतीय आदर्शों और स्थानीय परंपराओं को दर्शाया।
- इन दोनों शैलियों ने मिलकर भारतीय मूर्तिकला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
बुद्ध प्रतिमाओं का प्रचार
- कुषाण काल में पहली बार बुद्ध की प्रतिमाओं की पूजा व्यापक रूप से लोकप्रिय हुई।
- पहले बौद्ध धर्म में बुद्ध को प्रतीकों (जैसे धर्मचक्र, वृक्ष, पदचिह्न) द्वारा दर्शाया जाता था।
- कुषाणों ने मूर्ति पूजा को मान्यता दी, जिससे बौद्ध धर्म जनता में और अधिक सुलभ तथा लोकप्रिय हुआ।
सिक्कों का प्रचलन और धार्मिक विविधता
- कुषाण शासकों ने बड़े पैमाने पर सोने और ताँबे के सिक्के चलाए।
- इन सिक्कों पर यूनानी, रोमन, ईरानी और भारतीय देवी-देवताओं की आकृतियाँ अंकित होती थीं।
- इसमें शिव, स्कंद, बुद्ध और यूनानी देवता हेलिओस जैसी छवियाँ शामिल थीं।
- इससे भारतीय धार्मिक परंपराओं में विविधता और सहिष्णुता का परिचय मिलता है।
महायान बौद्ध धर्म का संरक्षण
- कनिष्क ने चतुर्थ बौद्ध संगीति (कुंडलवन, कश्मीर) का आयोजन करवाया।
- इस परिषद से महायान बौद्ध धर्म को बल मिला, जिसमें बुद्ध को ईश्वर रूप में पूजा जाने लगा।
- महायान परंपरा चीन, मध्य एशिया और तिब्बत तक कुषाणों के माध्यम से फैली।
संस्कृत साहित्य और विद्वानों का संरक्षण
- कनिष्क ने संस्कृत भाषा और साहित्य को संरक्षण दिया।
- महान बौद्ध विद्वान आश्वघोष इसी काल में हुए, जिन्होंने बुद्धचरित और सौन्दरानंद जैसे संस्कृत ग्रंथ लिखे।
- इसके अतिरिक्त चरक और नागार्जुन जैसे विद्वानों को भी कुषाण शासकों का आश्रय प्राप्त हुआ।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सिल्क रूट व्यापार
- कुषाण साम्राज्य ने भारत को सिल्क रूट व्यापार से जोड़ दिया, जिससे भारत, चीन, मध्य एशिया और रोम साम्राज्य के बीच सांस्कृतिक व आर्थिक संपर्क स्थापित हुआ।
- इससे कला, धर्म, विचार और वाणिज्य का व्यापक आदान-प्रदान हुआ।
निष्कर्ष:
कुषाण शासकों ने भारतीय कला, साहित्य, धर्म और अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंधों में स्थायी योगदान दिया। गांधार और मथुरा कला, बुद्ध प्रतिमाओं की लोकप्रियता, महायान बौद्ध धर्म का प्रसार और संस्कृत साहित्य का विकास इस युग की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हैं। इस प्रकार कुषाण काल ने भारतीय संस्कृति को एक नया स्वरूप दिया और उसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर
प्रश्न 1. कुषाण काल में किस कला शैली को ग्रीको-रोमन प्रभावों के संरक्षण के रूप में विकसित किया गया?
(a) मथुरा कला
(b) साँची कला
(c) गांधार कला
(d) अजंता कला
उत्तर: (c) गांधार कला
व्याख्या: कुषाण शासकों, विशेषकर कनिष्क ने गांधार कला को संरक्षण दिया, जिसमें ग्रीको-रोमन शैली का प्रभाव दिखाई देता है। बुद्ध की मूर्तियों में यूनानी आकृतिबंध और वस्त्रों की सिलवटें परिलक्षित होती हैं। इस शैली की विशेषता यथार्थवाद और अभिव्यक्ति की गहराई थी, जिसने भारतीय मूर्तिकला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
प्रश्न 2. कुषाण काल में किस शासक ने चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया?
(a) विम कडफिसेस
(b) कनिष्क
(c) वसुदेव
(d) विंध्यानंद
उत्तर: (b) कनिष्क
व्याख्या: कनिष्क (78 ईस्वी के लगभग) ने कश्मीर के कुंडलवन में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया। इसी परिषद से महायान बौद्ध धर्म की स्थापना और प्रसार को बल मिला, जिसमें बुद्ध की ईश्वर के रूप में पूजा प्रारम्भ हुई। इसी काल में बौद्ध धर्म चीन, मध्य एशिया और तिब्बत तक फैला।
प्रश्न 3. कुषाण शासनकाल में संस्कृत साहित्य से जुड़े प्रमुख विद्वान कौन थे?
(a) कालिदास और भवभूति
(b) आश्वघोष और चरक
(c) पाणिनि और पतंजलि
(d) वराहमिहिर और बाणभट्ट
उत्तर: (b) आश्वघोष और चरक
व्याख्या: कुषाण काल में संस्कृत साहित्य को संरक्षण मिला। आश्वघोष बुद्धचरित और सौन्दरानंद जैसे ग्रंथों के लिए प्रसिद्ध थे। चिकित्सा विज्ञान के महान विद्वान चरक को भी कनिष्क का आश्रय प्राप्त था। इसके अतिरिक्त नागार्जुन जैसे बौद्ध दार्शनिक भी इसी समय सक्रिय थे। इससे यह युग बौद्ध और संस्कृत साहित्य का गौरवमयी काल बना।
प्रश्न 4. कुषाणों द्वारा चलाई गई मुद्राओं की एक प्रमुख विशेषता क्या थी?
(a) केवल भारतीय देवताओं का चित्रण
(b) केवल सिकंदर का प्रभाव
(c) भारतीय, यूनानी, रोम और ईरानी देवताओं का चित्रण
(d) केवल बुद्ध प्रतिमाएँ
उत्तर: (c) भारतीय, यूनानी, रोम और ईरानी देवताओं का चित्रण
व्याख्या: कुषाणों ने सोने और ताँबे की मुद्राएँ बड़े पैमाने पर प्रचलित कीं। इन सिक्कों पर शिव, स्कंद, बुद्ध जैसे भारतीय देवताओं के साथ यूनानी देवता हेलिओस और अन्य विदेशी प्रतीकों का भी चित्रण किया गया। इससे उनकी धार्मिक सहिष्णुता और अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक संवाद का परिचय मिलता है।
प्रश्न 5. कुषाण साम्राज्य को किस व्यापारिक मार्ग से जोड़ने का श्रेय दिया जाता है जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ा?
(a) ग्रैंड ट्रंक रोड
(b) समुद्री मसाला मार्ग
(c) सिल्क रूट
(d) दक्कन व्यापार पथ
उत्तर: (c) सिल्क रूट
व्याख्या: कुषाण साम्राज्य ने भारत को सिल्क रूट से जोड़ा, जिससे चीन, मध्य एशिया और रोम साम्राज्य से सांस्कृतिक व आर्थिक संपर्क स्थापित हुआ। इस मार्ग से कला, धर्म, विचार और व्यापार का व्यापक आदान-प्रदान हुआ, जिसने भारत को वैश्विक सांस्कृतिक मानचित्र पर मजबूत स्थान दिलाया।