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नवीन धार्मिक आंदोलनों के उदय (बौद्ध एवं जैन धर्म)

प्रस्तावना:

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में अनेक नए धार्मिक आंदोलनों का जन्म हुआ, जिनमें बौद्ध धर्म और जैन धर्म सबसे प्रमुख थे। ये आंदोलन उस समय की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों की प्रतिक्रिया स्वरूप सामने आए। मूलतः वैदिक धर्म की जटिलता, समाज में उपजी असमानताएँ और नई आर्थिक-सांस्कृतिक परिस्थितियाँ इसके प्रमुख कारण बने। इन नवीन धर्मों ने जनता को सरल, नैतिक और समानतावादी विकल्प प्रदान किया।

कठोर वर्ण व्यवस्था

  • वर्ण व्यवस्था का कठोर होना प्रमुख कारण था।
  • प्रारंभिक वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था लचीली थी, परंतु समय के साथ यह जन्म-आधारित और कठोर हो गई।
  • शूद्रों और निचली जातियों को समाज में तिरस्कृत और शोषित किया गया, जिससे असंतोष बढ़ा।
  • बौद्ध और जैन धर्म ने जाति-पाँति से ऊपर उठकर समानता का संदेश दिया।

कर्मकांड और ब्राह्मणवादी वर्चस्व

  • उत्तर वैदिक धर्म अत्यधिक कर्मकांड प्रधान हो गया।
  • ब्राह्मण पुरोहित वर्ग ने यज्ञ और अनुष्ठानों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • बड़े-बड़े यज्ञों में समय, धन और संसाधनों की भारी बर्बादी होती, जिससे समाज में असंतोष फैला।
  • जनता सरल और सहज साधना की ओर आकर्षित हुई, जिसे बौद्ध और जैन धर्म ने प्रदान किया।

नगरीकरण और भौतिकवाद का प्रभाव

  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व में व्यापार और नगरों का विकास हुआ।
  • नई आर्थिक समृद्धि ने भौतिकवादी प्रवृत्तियों को जन्म दिया, जिससे नैतिकता संकट में पड़ी।
  • व्यापारी और शहरी वर्ग पुराने धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में रुचि नहीं लेते थे।
  • उन्हें ऐसे धर्म की आवश्यकता थी जो नैतिकता, आचार और सरल जीवन पर बल दे।

कृषक समाज और नई परिस्थितियाँ

  • गंगा घाटी में कृषि का विस्तार हुआ।
  • भूमि, पशुधन और संसाधनों में असमानता बढ़ने लगी।
  • इस असमानता ने पुराने धार्मिक विश्वासों और यज्ञों की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगाया।
  • नए धर्मों ने करुणा, संयम और नैतिक जीवन का संदेश देकर इन असमानताओं से राहत दी।

मुक्ति का सरल मार्ग

  • वैदिक धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कठिन तथा जटिल अनुष्ठानों से जुड़ा था।
  • सामान्य जनता को सरल साधना, ध्यान, तप और नैतिक जीवन पर आधारित मुक्ति का मार्ग चाहिए था।
  • बौद्ध धर्म ने “अष्टांगिक मार्ग” और जैन धर्म ने “त्रिरत्न” (सम्यक श्रद्धा, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचार) के माध्यम से सीधा और सुलभ मार्ग प्रस्तुत किया।

समानता और नैतिकता पर बल

  • बौद्ध और जैन धर्म ने इंसान को कर्म और नैतिकता के आधार पर आंका, जन्म के आधार पर नहीं।
  • करुणा, अहिंसा, दया, संयम और सत्य पर आधारित उपदेश जनता के लिए आकर्षक बने।
  • इन धर्मों का प्रचार-प्रसार सरल भाषा (पाली और प्राकृत) में हुआ, जिसने इन्हें और लोकप्रिय बनाया।

निष्कर्ष:

बौद्ध और जैन धर्म का उदय भारतीय समाज की धार्मिक जटिलताओं, असमानताओं और आर्थिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों की अनिवार्य परिणति था। वर्ण व्यवस्था की कठोरता, ब्राह्मणवादी वर्चस्व और यज्ञों की जटिलता के विरुद्ध इन धर्मों ने एक सरल, समानतापूर्ण और नैतिक जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। यही कारण था कि ये सम्पूर्ण भारत में शीघ्र लोकप्रिय हुए और भारतीय संस्कृति में गहरी छाप छोड़ गए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर

प्रश्न 1. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध एवं जैन धर्म के उदय का एक प्रमुख कारण क्या था?

(a) वैदिक धर्म का पुनरुत्थान
(b) कठोर वर्ण व्यवस्था
(c) विदेशी आक्रमण
(d) कृषक विद्रोह

उत्तर: (b) कठोर वर्ण व्यवस्था                                                              

व्याख्या: प्रारंभिक वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था लचीली थी, परंतु समय बीतने के साथ यह जन्म-आधारित और कठोर हो गई। शूद्रों सहित निचली जातियों को समाज में तिरस्कार व शोषण का सामना करना पड़ा। इससे उत्पन्न असंतोष ने जनता को ऐसे धर्मों की खोज के लिए प्रेरित किया जो समानतावादी और मानवीय हों। बौद्ध व जैन धर्म ने जाति-पाँति से मुक्त समान जीवन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 2. ब्राह्मणवादी वर्चस्व और उत्तर वैदिक धर्म की प्रमुख विशेषता क्या थी, जिसके कारण लोग असंतुष्ट हुए?

(a) यज्ञ और कर्मकांडों की अधिकता
(b) वेदों का नाश
(c) अनलिखित धर्म व्यवस्था
(d) कृषि का पतन

उत्तर: (a) यज्ञ और कर्मकांडों की अधिकता

व्याख्या: उत्तर वैदिक धर्म में ब्राह्मण पुरोहित वर्ग ने यज्ञ और अनुष्ठानों पर अपना नियंत्रण कर लिया। भारी संसाधनों, धन व समय की बर्बादी के साथ इन कर्मकांडों से साधारण जनता को लाभ नहीं मिलता था। इससे असंतोष बढ़ा और लोग सरल, सहज और आत्मिक शांति देने वाले धर्मों की ओर उन्मुख हुए। बौद्ध व जैन धर्म ने यही सरल साधना का मार्ग उपलब्ध करवाया।

प्रश्न 3. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शहरी और व्यापारी वर्ग किस कारण से बौद्ध और जैन धर्म की ओर आकर्षित हुआ?

(a) यज्ञों की भव्यता
(b) सैन्य परंपराएँ
(c) नैतिकता और सरल जीवन पर बल
(d) कृषि को बढ़ावा देना

उत्तर: (c) नैतिकता और सरल जीवन पर बल

व्याख्या: व्यापार और नगरों के विकास के साथ नया शहरी वर्ग उभरा। यह वर्ग यज्ञों और अनुष्ठानों में रुचि नहीं रखता था क्योंकि वे भौतिकवादी और संसाधन-व्यर्थ थे। उन्हें ऐसे धर्म की तलाश थी जो नैतिकता, संयम और सरल जीवन पर बल दे। बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग और जैन धर्म का संयम मार्ग इस वर्ग के लिए उपयुक्त विकल्प साबित हुआ।

प्रश्न 4. जैन धर्म का “त्रिरत्न” किसे कहा जाता है?

(a) अहिंसा, दया और संयम
(b) सम्यक श्रद्धा, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचार
(c) दान, तप और साधना
(d) करुणा, सेवा और सत्य

उत्तर: (b) सम्यक श्रद्धा, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचार

व्याख्या: जैन धर्म ने मोक्ष प्राप्ति के लिए सरल मार्ग दिया जिसे “त्रिरत्न” कहा जाता है। इनमें “सम्यक श्रद्धा” (सही विश्वास), “सम्यक ज्ञान” (सही ज्ञान) और “सम्यक आचार” (सही आचरण) सम्मिलित हैं। यह आंतरिक आत्मशुद्धि और संयम पर आधारित मार्ग है। यह सामान्य जनता को जटिल यज्ञों से मुक्त कर साधारण नैतिक जीवन की दिशा प्रदान करता था।

प्रश्न 5. बौद्ध और जैन धर्म के शीघ्र लोकप्रिय होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण क्या था?

(a) वेदों का विरोध
(b) पाली और प्राकृत भाषा में उपदेश देना
(c) राजाओं का संरक्षण न मिलना
(d) ऋग्वेद का पुनर्पाठ

उत्तर: (b) पाली और प्राकृत भाषा में उपदेश देना

व्याख्या: बौद्ध और जैन धर्म ने प्रचार के लिए संस्कृत जैसी कठिन भाषा के बजाय पाली और प्राकृत जैसी सरल बोलचाल की भाषाओं का उपयोग किया। इससे आम जनता आसानी से इन उपदेशों को समझ सकी। करुणा, अहिंसा, समानता और सत्य जैसे सिद्धांत सरल भाषा में प्रस्तुत होने के कारण तीव्रता से लोकप्रिय हुए। यही कारण था कि ये धर्म भारतीय जनमानस में शीघ्र स्थापित हो गए।

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