प्रस्तावना:
भारतीय इतिहास का वैदिक युग लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है। इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है – प्रारंभिक वैदिक काल (1500–1000 ईसा पूर्व) और उत्तर वैदिक काल (1000–600 ईसा पूर्व)। प्रारंभिक वैदिक समाज मुख्यतः पशुपालक और जनजातीय था, वहीं उत्तर वैदिक काल में कृषि-प्रधान, स्थायी और वर्गबद्ध समाज का विकास हुआ। इन दोनों कालों के बीच राजनीति, अर्थव्यवस्था, धर्म और सामाजिक जीवन में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
जीवन-यापन और अर्थव्यवस्था
- प्रारंभिक वैदिक काल – लोग अर्द्ध-घुमंतू थे और उनकी आजीविका मुख्यतः पशुपालन पर आधारित थी। गौपालन का विशेष महत्व था और गाय धन का प्रतीक मानी जाती थी। कृषि का महत्व गौण था।
- उत्तर वैदिक काल – इस काल में कृषि प्रमुख व्यवसाय बन गई। लोहे के हल, हलवाहों और स्थायी बस्तियों की वजह से खेती का विस्तार हुआ। जौ, चावल और गेंहूँ महत्वपूर्ण फसलें रहीं।
राजनीतिक संगठन
- प्रारंभिक वैदिक समाज – राजनीति जनजातीय स्वरूप की थी। राजा (राजन) अधिक शक्तिशाली नहीं था और सभा तथा समिति जैसी जनसभाओं के अधीन कार्य करता था।
- उत्तर वैदिक समाज – राजसत्ता केंद्रीकृत और शक्तिशाली हो गई। सभा और समिति का महत्व घटा। इस काल में जनपदों और राज्यों का उदय हुआ तथा वंशानुगत राजशाही मजबूत हुई।
धार्मिक जीवन
- प्रारंभिक वैदिक धर्म – प्रकृति-पूजा इसका मुख्य आधार था। अग्नि, वरुण, इंद्र आदि देवताओं की पूजा की जाती थी। पूजा सरल थी और यज्ञ-संस्कृति सीमित थी।
- उत्तर वैदिक धर्म – धर्म जटिल और कर्मकांड प्रधान हो गया। विशाल यज्ञों जैसे अश्वमेध और राजसूय का आयोजन शक्ति और संपन्नता का प्रतीक बना। ब्राह्मण वर्ग का वर्चस्व बढ़ा।
सामाजिक ढाँचा और वर्ण व्यवस्था
- प्रारंभिक वैदिक काल – समाज तुलनात्मक रूप से समानतापूर्ण था। वर्ण व्यवस्था लचीली थी जहाँ कर्म के आधार पर स्थिति बदल सकती थी।
- उत्तर वैदिक काल – समाज में असमानता बढ़ी और वर्ण व्यवस्था कठोर हो गई। जन्म के आधार पर व्यक्ति की स्थिति तय होने लगी। शूद्रों की स्थिति निम्न हो गई।
स्त्रियों की स्थिति
- प्रारंभिक वैदिक काल – स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी। वे शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं और वैदिक मंत्रों के अध्ययन-अध्यापन में भाग लेती थीं। विवाह में स्वतंत्रता थी और सती प्रथा का कोई प्रमाण नहीं मिलता।
- उत्तर वैदिक काल – स्त्रियों की स्थिति गिरने लगी। उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया। बहुविवाह और कन्या-विक्रय की प्रथाएँ बढ़ीं। स्त्रियों की स्वतंत्रता और सम्मान में कमी आई।
सांस्कृतिक और भौतिक जीवन
- प्रारंभिक वैदिक काल – सामाजिक जीवन सरल और ग्रामीण परिवेश वाला था। मकान कच्चे और अस्थायी होते थे।
- उत्तर वैदिक काल – स्थायी बस्तियों, नगरों और धातु-कला (विशेषकर लोहे के उपयोग) ने भौतिक जीवन को उन्नत बना दिया।
निष्कर्ष:
प्रारंभिक वैदिक समाज जहाँ सरल, पशुपालक और जनजातीय था, वहीं उत्तर वैदिक समाज कृषि-प्रधान, स्थायी और वर्ग आधारित हो गया। धर्म, राजनीति और सामाजिक ढांचे की जटिलता इसी काल में बढ़ी। स्त्रियों की स्थिति में आई गिरावट और कठोर वर्ण व्यवस्था ने असमानताओं को जन्म दिया। इस प्रकार वैदिक युग का विकास भारतीय समाज के प्राचीन स्वरूप से ऐतिहासिक समाज व्यवस्था की ओर संक्रमण का द्योतक है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर
प्रश्न 1. प्रारंभिक वैदिक समाज की आजीविका मुख्यतः किस पर आधारित थी?
(a) कृषि
(b) पशुपालन
(c) व्यापार
(d) शिल्पकला
उत्तर: (b) पशुपालन
व्याख्या: प्रारंभिक वैदिक समाज का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। वे अर्द्ध-घुमंतू जीवन जीते थे और गौपालन सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता था। गाय को धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता था, जिससे उसका धार्मिक और आर्थिक महत्व दोनों था। कृषि गौण थी और उतनी विकसित नहीं हुई थी। यही कारण है कि प्रारंभिक वैदिक अर्थव्यवस्था पशुपालन पर केंद्रित रही।
प्रश्न 2. उत्तर वैदिक काल में कृषि का विस्तार किस कारण से संभव हुआ?
(a) ताम्र औजारों के प्रयोग से
(b) लोहे के हल और स्थायी बस्तियों से
(c) धार्मिक सुधारों से
(d) शिकार और संग्रहण से
उत्तर: (b) लोहे के हल और स्थायी बस्तियों से
व्याख्या: उत्तर वैदिक काल में कृषि को मुख्य आजीविका का दर्जा मिला। लोहे के औजारों और हलों के प्रयोग से बड़ी भूमि की जुताई संभव हुई। इसके साथ ही स्थायी बस्तियाँ और हलवाहों का इस्तेमाल कृषि विस्तार में सहायक बना। इसी कारण इस काल में जौ, चावल और गेंहूँ जैसी फसलों का उत्पादन बढ़ा और समाज कृषि-प्रधान बन गया।
प्रश्न 3. प्रारंभिक वैदिक राजनीति में राजा (राजन) की स्थिति कैसी थी?
(a) पूर्ण शक्तिशाली
(b) वंशानुगत शासक
(c) सभा और समिति के अधीन
(d) स्वतंत्र और निरंकुश
उत्तर: (c) सभा और समिति के अधीन
व्याख्या: प्रारंभिक वैदिक काल में राजनीति जनजातीय स्वरूप की थी। राजा (राजन) पूर्ण रूप से शक्तिशाली नहीं था बल्कि सभा और समिति जैसी जन सभाओं से परामर्श लेकर शासन करता था। जनता की सहभागिता इन संस्थाओं के माध्यम से बनी रहती थी। परंतु उत्तर वैदिक काल तक आते-आते सभा और समिति का महत्व घट गया और राजन की शक्ति केंद्रीकृत हो गई।
प्रश्न 4. उत्तर वैदिक धार्मिक जीवन का प्रमुख लक्षण क्या था?
(a) प्रकृति-पूजा
(b) कर्मकांड और जटिल यज्ञ
(c) बौद्ध धर्म का प्रभाव
(d) सरल अनुष्ठान
उत्तर: (b) कर्मकांड और जटिल यज्ञ
व्याख्या: उत्तर वैदिक काल में धर्म कर्मकांड प्रधान और जटिल हो गया। अश्वमेध और राजसूय जैसे यज्ञ शक्ति एवं प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गए थे। इस काल में ब्राह्मणों का प्रभाव बढ़ा और यज्ञों की सामाजिक-आर्थिक भूमिका महत्वपूर्ण हुई। इसके विपरीत प्रारंभिक वैदिक समाज में धर्म अपेक्षाकृत सरल और प्रकृति-पूजा पर आधारित था।
प्रश्न 5. प्रारंभिक वैदिक काल की तुलना में उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति कैसी हुई?
(a) अधिक स्वतंत्र
(b) समान बनी रही
(c) गिरावट आई
(d) राजनीतिक रूप से सशक्त
उत्तर: (c) गिरावट आई
व्याख्या: प्रारंभिक वैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा और वैदिक अध्ययन का अधिकार था। वे विवाह में स्वतंत्र थीं और सती प्रथा का कोई प्रमाण नहीं था। परंतु उत्तर वैदिक काल में उनकी स्थिति गिरने लगी। उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया गया, कन्या-विक्रय, बहुविवाह जैसी प्रथाएँ बढ़ीं और सामाजिक सम्मान घटा। इससे उनका अधिकार और स्वतंत्रता सीमित हो गई।