प्रस्तावना:
सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसा पूर्व – 1750 ईसा पूर्व) एक सुव्यवस्थित और समृद्ध नगरीय सभ्यता थी। इसका आर्थिक ढांचा मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार पर आधारित था। पुरातात्विक प्रमाण दर्शाते हैं कि इस सभ्यता के लोग उन्नत कृषक, कुशल कारीगर और व्यापक व्यापारी थे। उनके आर्थिक जीवन में विविधता और सुदृढ़ता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
सभ्यता के प्रमुख आर्थिक पहलू
कृषि – आजीविका का मुख्य आधार
- सिंधु सभ्यता के लोगों की प्रमुख जीविका कृषि थी।
- गेहूँ, जौ और तिलहन की खेती व्यापक रूप से की जाती थी।
- हड़प्पा में कपास की खेती के प्रमाण भी मिले हैं, जो इसे कपास उत्पादन करने वाली प्राचीनतम सभ्यताओं में स्थान देता है।
- प्राकृतिक सिंचाई और नहरों का प्रयोग होता था, जिससे कृषि को स्थिरता मिली।
पशुपालन और पशुधन
- कृषि के साथ पशुपालन का भी महत्वपूर्ण स्थान था।
- गाय, सांड, भैंस, भेड़, बकरी तथा हाथी का पालतूकरण किया गया।
- पशुपालन से दूध, मांस और परिवहन जैसी आवश्यकताएँ पूरी होती थीं।
- सील और मूर्तियों से पता चलता है कि बैल और घोड़े जैसे पशुओं का व्यापार एवं धार्मिक महत्व भी था।
शिल्प और उद्यम (craft specialization)
- सिंधु नगरों में शिल्पकला और उद्यम का उच्च स्तर देखा जाता है।
- मिट्टी के बर्तनों पर खूबसूरत चित्रकारी, मनके (beads) बनाने की कारीगरी और धातुकर्म (metallurgy) में निपुणता उल्लेखनीय थी।
- ताँबा, कांसा तथा अर्ध-कीमती पत्थरों से आभूषण और औजार बनाए जाते थे।
- यह शिल्प न केवल घरेलू उपयोग में बल्कि व्यापारिक मुद्रा में भी प्रयुक्त होता था।
विदेशी व्यापार
- सिंधु नगरीय समाज का व्यापार मेसोपोटामिया तक फैला हुआ था।
- वहाँ से प्राप्त मुहरें और मूर्तियाँ इसका प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
- निर्यातित वस्तुओं में कपास, मनके, आभूषण और धातु सामग्री प्रमुख थीं।
- बदले में वहाँ से धातुएँ और विलासिता की वस्तुएँ आती थीं।
मानकीकृत तोल-माप की प्रणाली
- व्यापार और वाणिज्य के लिए मानकीकृत तोल-माप प्रणाली का प्रयोग किया जाता था।
- घनाकार भार और निश्चित मानकीकृत इकाइयाँ विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुई हैं।
- इससे सिद्ध होता है कि व्यापारिक लेन-देन में सटीकता और निष्पक्षता पर ध्यान दिया जाता था।
आंतरिक व्यापार
- सभ्यता के नगरों के बीच व्यापक व्यापारिक संपर्क था।
- ताँबा, अर्ध-कीमती पत्थर, सीप और मिट्टी के बर्तन आंतरिक व्यापार की प्रमुख वस्तुएँ थीं।
- लोथल जैसे नगर शिल्प और व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध थे।
निष्कर्ष:
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापक व्यापारिक गतिविधियों पर आधारित था। विदेशी व्यापार, मानकीकृत तोल-माप और शिल्पकला ने इसे विश्व की उन्नत सभ्यताओं में स्थान दिया। यह सभ्यता आदिम जीवन से परे एक संगठित नगरीय जीवन प्रस्तुत करती है, जिसने भारतीय आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास की मजबूत नींव रखी।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर
प्रश्न 1. सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार क्या था?
(a) व्यापार
(b) शिकार
(c) कृषि
(d) उद्योग
उत्तर: (c) कृषि
व्याख्या: सिंधु घाटी सभ्यता के आर्थिक जीवन में कृषि सबसे प्रमुख आधार थी। पुरातात्विक प्रमाण बताते हैं कि यहाँ गेहूँ, जौ और तिलहन की खेती की जाती थी। हड़प्पा में कपास की खेती के सबूत भी मिले हैं, जिससे यह सभ्यता विश्व की प्राचीनतम कपास उत्पादक सभ्यता बनती है। नहरों और प्राकृतिक सिंचाई प्रणाली ने उनकी कृषि गतिविधियों को स्थिर और उन्नत बनाया।
प्रश्न 2. सिंधु घाटी सभ्यता में किस पशु का पालतूकरण नहीं हुआ था?
(a) गाय
(b) भैंस
(c) घोड़ा
(d) बकरी
उत्तर: (c) घोड़ा
व्याख्या: सिंधु सभ्यता के लोग गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और हाथी जैसे पशुओं का पालतूकरण करते थे। सील और मूर्तियों से इसका प्रमाण मिलता है। हालाँकि, घोड़े के प्रमाण बहुत ही सीमित और विवादित हैं। घोड़े का प्रचलन बाद के वैदिक युग में अधिक पाया जाता है। इसीलिए घोड़ा इस सभ्यता के प्रमुख पालतू पशुओं में शामिल नहीं था।
प्रश्न 3. हड़प्पा सभ्यता में मिले शिल्पकला के प्रमुख उदाहरण क्या हैं?
(a) मिट्टी के खिलौने और ताम्र सिक्के
(b) मनके निर्माण और धातुकर्म
(c) पाषाण मूर्तियाँ
(d) लिखित पांडुलिपियाँ
उत्तर: (b) मनके निर्माण और धातुकर्म
व्याख्या: सिंधु घाटी सभ्यता की शिल्पकला अत्यंत विकसित थी। मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी, मनके निर्माण (bead-making) और ताँबा, कांसा व अर्ध-कीमती पत्थरों से आभूषण व औजार बनाना उनकी विशिष्टता थी। धातुकला की कुशलता ने उन्हें घरेलू और व्यापारिक उपयोग की वस्तुएँ बनाने में मदद की। इन शिल्पों का महत्व आंतरिक और बाहरी व्यापार दोनों में था, जिससे यह समाज उन्नत माना जाता है।
प्रश्न 4. सिंधु घाटी सभ्यता का विदेशी व्यापार किन क्षेत्रों तक फैला हुआ था?
(a) चीन और मिस्र
(b) फारस और ग्रीस
(c) मेसोपोटामिया
(d) अफगानिस्तान
उत्तर: (c) मेसोपोटामिया
व्याख्या: सिंधु सभ्यता का विदेशी व्यापार विशेष रूप से मेसोपोटामिया से जुड़ा हुआ था। वहाँ से प्राप्त कई मुहरें और मूर्तियाँ इसका प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। कपास, मनके, आभूषण और धातु सामग्री प्रमुख निर्यात उत्पाद थे, जबकि धातुएँ और विलासिता की वस्तुएँ आयातित की जाती थीं। यह व्यापारिक नेटवर्क उनकी सांस्कृतिक और आर्थिक उन्नति को दर्शाता है और सभ्यता को अंतरराष्ट्रीय महत्व प्रदान करता है।
प्रश्न 5. सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापारिक व्यवहार के लिए कौन सी विशेष प्रणाली का प्रयोग किया जाता था?
(a) मुद्रा प्रणाली
(b) मानकीकृत तोल-माप प्रणाली
(c) धातु सिक्का प्रणाली
(d) विनिमय प्रणाली
उत्तर: (b) मानकीकृत तोल-माप प्रणाली
व्याख्या: व्यापारिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाने के लिए सिंधु सभ्यता में मानकीकृत तोल-माप प्रणाली का प्रयोग किया जाता था। पुरातात्विक स्थलों से घनाकार भार और निश्चित इकाइयों के प्रमाण मिले हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यापारिक लेन-देन में सटीकता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाती थी। इस प्रणाली ने आंतरिक और विदेशी व्यापार को सुदृढ़ आधार प्रदान किया और सभ्यता के आर्थिक जीवन को संगठित रूप दिया।