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कुमाऊँ क्षेत्र का घुघुतिया त्यौहार

प्रस्तावना:

घुघुतिया उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में मकर संक्रांति के आसपास जनवरी महीने में मनाया जाने वाला एक अनूठा और पारंपरिक त्योहार है। यह विशेष रूप से बच्चों का त्यौहार है, जो प्रकृति, पक्षियों और मनुष्य के बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है। यह पर्व सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का एक सुंदर प्रतीक है।

पारंपरिक घुघुते बनाना: इस त्यौहार की मुख्य विशेषता घुघुते नामक विशेष पकवान का बनाना है। ये पकवान आटे और गुड़ से बनाए जाते हैं और इन्हें विभिन्न आकार दिए जाते हैं, जैसे चिड़िया, ढोल, तलवार और अन्य जानवर। ये घुघुते इस त्यौहार का केंद्र होते हैं और बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। ये पारंपरिक मिठाइयाँ न केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि ये बच्चों को अपनी संस्कृति से भी जोड़ती हैं।

पक्षियों को निमंत्रण और प्रसाद: घुघुतिया के दिन, बच्चे घुघुतों की माला बनाकर पहनते हैं और उन्हें पक्षियों को खिलाने के लिए छत पर जाते हैं। वे एक विशेष गीत गाते हैं, जिसमें वे कौवों को आमंत्रित करते हैं: “काले कौवा काले, घुघुति माला खा ले, लै कौवा बड़ो, मैंकै दे ठुलो” (काले कौवे, घुघुतियों की माला खा लो। ले लो छोटी सी चीज, मुझे दो बड़ी)। ऐसा माना जाता है कि कौवे प्रसाद खाकर बच्चों को सौभाग्य और आशीर्वाद देते हैं।

प्रकृति और मौसम का सामंजस्य: घुघुतिया का पर्व प्रकृति और ऋतुओं के चक्र के साथ गहरा संबंध रखता है। जनवरी का महीना उत्तराखंड में भीषण ठंड का होता है, और यह त्यौहार यह दर्शाता है कि पक्षियों और जानवरों को भोजन की आवश्यकता होती है। यह अनुष्ठान प्रकृति के सभी जीवों के प्रति दया, करुणा और सम्मान का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना चाहिए।

बच्चों के लिए खुशी और आस्था का पर्व: यह त्यौहार मुख्य रूप से बच्चों के लिए है। घुघुतियों की माला पहनना और कौवों को प्रसाद खिलाना उनके लिए एक मजेदार और यादगार अनुभव होता है। यह परंपरा बच्चों को उनकी संस्कृति, लोकगीतों और पारंपरिक मूल्यों से जोड़ती है। यह त्यौहार उनमें प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना विकसित करता है।

सामुदायिक और पारिवारिक जुड़ाव: घुघुतिया पर्व परिवार और समुदाय में भी एकता लाता है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर घुघुते बनाते हैं और इस उत्सव में भाग लेते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और अपनी परंपराओं का जश्न मनाते हैं। यह त्योहार सामाजिक सद्भाव और आपसी संबंधों को मजबूत करता है।

निष्कर्ष:

घुघुतिया त्यौहार उत्तराखंड की अनूठी सांस्कृतिक विरासत का एक जीवंत उदाहरण है। यह न केवल खुशी और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति, पक्षियों और मनुष्य के बीच के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें पर्यावरण और उसके सभी जीवों का सम्मान करना चाहिए। यह एक ऐसा त्यौहार है जो अपनी सादगी और गहन संदेश के कारण आज भी प्रासंगिक है।

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