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पूर्णागिरि मेला चंपावत

प्रस्तावना:

पूर्णागिरि मेला उत्तराखंड की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मेला चंपावत जिले में पूर्णागिरि मंदिर में आयोजित होता है, जो देवी पूर्णागिरि को समर्पित है। यह मेला विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि के दौरान अपनी चरम सीमा पर होता है। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का एक सुंदर संगम है।

शक्तिपीठ के रूप में धार्मिक महत्व: पूर्णागिरि मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जो इसे अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ देवी सती की नाभि गिरी थी। इस कारण यह स्थान भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थ बन गया है। इस मेले में आकर भक्त देवी के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा और गहन हो जाती है।

चैत्र नवरात्रि के दौरान विशेष उत्सव: यह मेला मुख्य रूप से हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र नवरात्रि के दौरान आयोजित होता है। इस नौ दिवसीय उत्सव के दौरान, भक्तगण देवी की विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान करते हैं। इस समय मंदिर और उसके आसपास का क्षेत्र धार्मिक भजनों, मंत्रों और अनुष्ठानों की गूँज से भर जाता है, जो एक दिव्य और आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करता है।

आस्था और भक्ति का प्रदर्शन: पूर्णागिरि मेला हजारों भक्तों को आकर्षित करता है, जो अपनी अटूट आस्था और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। तीर्थयात्री लंबी और कठिन चढ़ाई कर मंदिर तक पहुँचते हैं, जो उनकी समर्पण और दृढ़ता को दर्शाता है। मेले में होने वाले सामूहिक भजन, कीर्तन और धार्मिक प्रवचन भक्तों को एक-दूसरे से जोड़ने और उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं।

क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और व्यापार को बढ़ावा: यह मेला न केवल एक धार्मिक समागम है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी काफी बढ़ावा देता है। मेले के दौरान, आस-पास के गाँवों और कस्बों के लोग अपनी हस्तशिल्प, धार्मिक वस्तुएँ और स्थानीय उत्पाद बेचने आते हैं। यह स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन जाता है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लोक कला और सांस्कृतिक प्रदर्शन भी होते हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

सामुदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: पूर्णागिरि मेला विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के लोगों को एक साथ लाता है। यह सामुदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, अपनी कहानियाँ साझा करते हैं और साथ में उत्सव मनाते हैं, जो सामाजिक बंधन को मजबूत करता है। यह मेला एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ लोग अपनी साझा धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाते हैं।

निष्कर्ष:

पूर्णागिरि मेला उत्तराखंड की अमिट आस्था और सांस्कृतिक पहचान का एक सशक्त प्रतीक है। यह देवी के प्रति गहरी भक्ति, सामुदायिक एकता और स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक अद्भुत मिश्रण है। यह मेला न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और आर्थिक जीवनरेखा भी है। यह एक ऐसा आयोजन है जो हमें हमारी समृद्ध परंपराओं और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़े रखता है।

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