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राष्ट्रकूट राजवंश का इतिहास

प्रस्तावना:

राष्ट्रकूट राजवंश, जिसकी स्थापना दंतिदुर्ग ने 735 ईस्वी में की, दक्कन क्षेत्र का एक शक्तिशाली साम्राज्य था जो 8वीं से 10वीं शताब्दी तक प्रभावी रहा। राजधानी मान्यखेत थी और साम्राज्य का विस्तार कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात से मध्य भारत तक था। इस वंश ने कला, संस्कृति और स्थापत्य में उल्लेखनीय योगदान दिया तथा प्रतिहार और पाल साम्राज्यों के साथ त्रिपक्षीय संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई।

स्थापना और कालखंड:

  • राष्ट्रकूट राजवंश की स्थापना लगभग 735 ईस्वी में दंतिदुर्ग (दंतिवर्मन) ने की थी।
  • यह राजवंश 8वीं से 10वीं शताब्दी तक (लगभग 735 से 975 ईस्वी) भारतीय उपमहाद्वीप के दक्कन क्षेत्र पर शासन करता रहा।

राजधानी और क्षेत्र:

  • राजधानी मान्यखेत (आधुनिक मालखेड, कर्नाटक) और बाद में गोंगिनी (गोंगिनापुरी) थी।
  • साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत के कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, और मध्य भारत तक था।
  • यह वंश चालुक्य, पाल और प्रतिहार साम्राज्यों के साथ त्रिपक्षीय संघर्ष में लिप्त था।

संस्थापक:

  • दंतिदुर्ग, जिन्होंने चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय को हराकर दक्कन क्षेत्र पर कब्जा जमाया।

प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ:

दंतिदुर्ग (735-756 ई.):

  • संस्थापक, स्थापित शासन की नींव डाली।
  • चालुक्यों को हराकर दक्कन पर नियंत्रण स्थापित किया।

कृष्ण प्रथम (756-774 ई.):

  • दंतिदुर्ग का चाचा और प्रमुख शासक।
  • एलोरा में विश्वप्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
  • चालुक्य वर्चस्व को चुनौती दी।

गोविंद द्वितीय (774-780 ई.):

  • शासन का विस्तार किया, लंका के राजाओं और मंत्रियों को कैद किया।

अमोघवर्ष प्रथम (800-878 ई.):

  • वंश के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक।
  • सांस्कृतिक, प्रशासनिक विकास और सैन्य सफलताएँ।

कृष्ण द्वितीय (878-914 ई.):

  • अमोघवर्ष के बाद राजा बना, साम्राज्य का संरक्षण किया।

प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • कैलाशनाथ मंदिर जैसे शिल्पकला और स्थापत्य कला के चमत्कार निर्माण।
  • जैन, बौद्ध और हिंदू धर्मों का संरक्षण।
  • तीनों प्रमुख साम्राज्यों (पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट) के बीच संघर्ष और साम्राज्य विस्तार।
  • उल्लेखनीय साहित्यिक योगदान और सांस्कृतिक विकास।

पतन के कारण:

  • 10वीं शताब्दी के अंत में आंतरिक संघर्ष।
  • प्रतिहार और चालुक्य साम्राज्यों के साथ लगातार युद्ध।
  • क्षेत्रीय शासकों के विद्रोह।
  • प्रभावी केंद्र शासन की कमी।
  • अंततः 975 ईस्वी के बाद वंश का पतन।

महत्व:

  • दक्कन क्षेत्र में एक लंबे समय तक प्रभावी और मजबूत शासन।
  • कला, संस्कृति और स्थापत्य में अमूल्य योगदान।
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण साम्राज्य।

सारांश:

राष्ट्रकूट साम्राज्य (735–975 ई.) भारतीय उपमहाद्वीप का एक प्रभावशाली राजवंश था। दंतिदुर्ग और कृष्ण प्रथम ने इसकी नींव मजबूत की, जबकि अमोघवर्ष प्रथम ने संस्कृति और प्रशासन को उत्कर्ष पर पहुँचाया। कैलाशनाथ मंदिर जैसे स्थापत्य चमत्कार इसकी धरोहर हैं। जैन, बौद्ध और हिंदू धर्मों का संरक्षण हुआ। आंतरिक कमजोरियाँ, चालुक्यों और प्रतिहारों से संघर्ष तथा विद्रोहों ने इसे कमजोर किया, जिससे 10वीं शताब्दी के अंत में इसका पतन हुआ।

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