प्रस्तावना:
प्रतिहार राजवंश, जिसे गुर्जर-प्रतिहार वंश भी कहा जाता है, की स्थापना नागभट्ट प्रथम ने लगभग 725 ईस्वी में की। यह वंश 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तर भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य रहा, जिसकी राजधानी कन्नौज थी। अरब आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिकार करने और उत्तर भारत में स्थिर शासन स्थापित करने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। कला, साहित्य और स्थापत्य में भी इसका योगदान उल्लेखनीय है।
स्थापना और कालखंड:
- प्रतिहार राजवंश (गुर्जर-प्रतिहार वंश) की स्थापना लगभग 725 ईस्वी में नागभट्ट प्रथम द्वारा की गई थी।
- यह राजवंश 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर शासन करता रहा।
राजधानी और क्षेत्र:
- प्रारंभ में उज्जैन पर शासन किया और बाद में मुख्य राजधानी कन्नौज बनी।
- साम्राज्य की सीमा पश्चिम में सिंध से पूर्व में बंगाल तक, उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैली हुई थी।
संस्थापक:
- नागभट्ट प्रथम को संस्थापक माना जाता है, जिन्होंने गुर्जर-प्रतिहारों को एक मजबूत राजनीतिक संगठन में बदल दिया।
प्रमुख शासक और उनके कार्य:
- नागभट्ट द्वितीय (730-756 ई.): अरब आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिकार किया और साम्राज्य का विस्तार किया।
- रामभद्र: नागभट्ट द्वितीय के बाद गद्दी संभाली।
- मिहिर भोज (836-885 ई.): प्रतिहार राजवंश के सबसे शक्तिशाली राजा, जिनके शासनकाल को स्वर्ण युग माना जाता है। उन्होंने पाल वंश और राष्ट्रकूटों के साथ कई युद्ध लड़े और कन्नौज पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
- महेन्द्रपाल प्रथम: मिहिर भोज के बाद राजा; प्रशासनिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान दिया।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- अरब आक्रमणों से भारत की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका।
- उत्तर भारत में एक विस्तृत और संगठित साम्राज्य का निर्माण।
- कला, साहित्य और स्थापत्य कला का विकास, जिसमें खजुराहो के मंदिर प्रमुख हैं।
- त्रिपक्षीय संघर्ष में पाल और राष्ट्रकूट साम्राज्यों के साथ कन्नौज पर शासन को लेकर प्रतिस्पर्धा।
पतन के कारण:
- 10वीं से 11वीं शताब्दी में आंतरिक राजनीतिक संघर्ष और कमजोरी।
- मुस्लिम आक्रमणों का दबाव।
- पाल और राष्ट्रकूटों के साथ लंबे समय तक चले युद्धों से साम्राज्य कमजोर हुआ।
- अंततः साम्राज्य का विघटन हो गया और क्षेत्रीय शक्तियों ने इसे खंडित कर दिया।
महत्व:
- उत्तर भारत के प्रमुख मध्यकालीन हिंदू राजवंशों में से एक।
- भारत की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान, जिससे इस्लामी आक्रमणों की गति धीमी पड़ी।
- कला, संस्कृति, और स्थापत्य की समृद्ध विरासत छोड़ी।
सारांश:
प्रतिहार साम्राज्य (725–11वीं शताब्दी) उत्तर भारत का प्रमुख हिंदू राजवंश था। नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणों को रोका, जबकि मिहिर भोज ने साम्राज्य को चरम पर पहुँचाया और इसे कन्नौज से शासित किया। यह वंश त्रिपक्षीय संघर्ष में पाल और राष्ट्रकूटों से टकराता रहा। खजुराहो जैसे स्थापत्य चमत्कार इसकी धरोहर हैं। आंतरिक संघर्ष, मुस्लिम आक्रमण और लंबे युद्धों ने इसे कमजोर कर दिया, जिससे अंततः साम्राज्य का पतन हुआ।