प्रस्तावना:
पाण्ड्य राजवंश, दक्षिण भारत के तीन प्रमुख तमिल राजवंशों में से एक, लगभग 560 ई. से 1300 ई. तक राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से सक्रिय रहा। इसकी राजधानी मदुरै थी और साम्राज्य तमिलनाडु के दक्षिणी भाग में फैला था। जटावर्मन् कुलशेखर और मारवर्मन् सुंदर पाण्ड्य जैसे शासकों ने इसे पुनर्जीवित कर विस्तृत बनाया। कला, साहित्य, वास्तुकला और समुद्री व्यापार में इसका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।
स्थापना और कालखंड:
- पाण्ड्य राजवंश लगभग 560 ई. से लेकर 1300 ई. तक सक्रिय रहा।
- यह दक्षिण भारत के तीन प्रमुख तमिल राजवंशों में से एक था।
राजधानी और क्षेत्र:
- राजधानी मदुरै (मदुरइ) थी।
- इसका क्षेत्र दक्षिणी भारत के वर्तमान तमिलनाडु के दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में फैला था।
- सीमाएँ उत्तर में वल्लरु नदी तक और दक्षिण में त्रावणकोर तक थीं।
संस्थापक:
- पाण्ड्य राजवंश के संस्थापक के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह राजवंश प्रागैतिहासिक काल से था, जिसका पुनरुत्थान जटावर्मन् कुलशेखर (1190-1213 ई.) ने किया था।
प्रमुख शासक और उनके कार्य:
- जटावर्मन् कुलशेखर (1190-1213 ई.): पाण्ड्य साम्राज्य का पुनरुत्थान किया।
- मारवर्मन् सुंदर पाण्ड्य (1216-1238 ई.): द्वितीय पाण्ड्य साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ शासकों में से एक, जिसने अपने समय में तमिलनाडु और नेल्लोर तक अपना विस्तार किया।
- अन्य शासक जैसे जटावर्मन् सुंदर पाण्ड्य प्रथम (1251-1268 ई.) ने अपने समकालीन चोल, होयसलों, तेलुगु, काकतीय और बाण राज्यों को परास्त किया।
- पाण्ड्यों ने चोल और चेर राजवंश के साथ कई बार युद्ध लड़ा और अपनी सत्ता बनाए रखी।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- कला, वास्तुकला और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान।
- मदुरै जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों का विकास।
- समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और विदेशी संपर्क स्थापित किए।
- मंदिरों के निर्माण में उल्लेखनीय विकास, जैसे कि श्रीरंगम मन्दिर, चिदंबरम मंदिर आदि।
पतन के कारण:
- 13वीं शताब्दी में चोलों के वंशानुगत आक्रमण।
- होयसलों और मुस्लिम आक्रमणों के दबाव।
- अंतरिक संघर्ष और सत्ता की अस्थिरता।
- 14वीं शताब्दी के अंत में विजयनगर साम्राज्य के उदय के साथ पाण्ड्य राजवंश समाप्त हो गया।
महत्व:
- दक्षिण भारत का एक प्रमुख और प्राचीन तमिल राजवंश।
- सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों के विकास में योगदान।
- तमिल साहित्य और कला के स्वर्ण युग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सारांश:
पाण्ड्य साम्राज्य (560–1300 ई.) ने दक्षिण भारतीय इतिहास में गहरा प्रभाव डाला। जटावर्मन् कुलशेखर और मारवर्मन् सुंदर पाण्ड्य जैसे शासक ने इसे चरम पर पहुँचाकर चोल, होयसलों और अन्य राज्यों पर विजय पाई। मंदिर निर्माण, साहित्य, समुद्री व्यापार और धार्मिक केंद्रों के विकास इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ थीं। आंतरिक संघर्ष, मुस्लिम और होयसला आक्रमणों के दबाव में यह कमजोर पड़ा और अंततः विजयनगर साम्राज्य के उदय के साथ इसका पतन हुआ।