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नंद वंश का इतिहास

प्रस्तावना:

नंद वंश प्राचीन भारत का एक प्रभावशाली राजवंश था जिसकी स्थापना महापद्म नंद ने लगभग 345 ई.पू. में की। इस वंश ने पाटलिपुत्र को राजधानी बनाकर गंगा नदी की घाटी से लेकर विंध्य पर्वतों के दक्षिण और लगभग पूरे उत्तर भारत तक शासन का विस्तार किया। नंद शासकों ने मजबूत प्रशासन, विशाल सेना और संगठित कर प्रणाली विकसित की, जिसने भारत में प्रथम अखंड साम्राज्य की नींव रखी।

स्थापना और कालखंड:

  • नंद वंश की स्थापना लगभग 345 ईसा पूर्व में महापद्म नंद ने की थी।
  • यह वंश लगभग 23 वर्षों तक (345 ई.पू. से 322 ई.पू. तक) मगध क्षेत्र और उत्तर भारत पर शासन करता रहा।

राजधानी और क्षेत्र:

  • राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी।
  • इस वंश का साम्राज्य विशाल था, जिसमें गंगा घाटी के मैदानों से लेकर विंध्य पर्वत के दक्षिण तक क्षेत्र शामिल था।
  • इसके राज्य का विस्तार कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला था और लगभग पूरे उत्तर भारत के 16 महाजनपद मगध के अधीन थे।

संस्थापक:

  • महापद्म नंद, जिनका उल्लेख “सर्वक्षत्रांतक” (क्षत्रियों का समूल नाश करने वाला) के रूप में होता है।
  • उन्होंने शिशुनाग वंश के अंतिम शासक की हत्या करके सत्ता पर कब्जा किया।

प्रमुख शासक और उनके कार्य:

महापद्म नंद:

  • मगध साम्राज्य को एक विशाल साम्राज्य में परिवर्तित किया।
  • केंद्रीयकृत प्रशासन, संगठित कर प्रणाली और अपार सैन्य शक्ति का विकास किया।
  • कलिंग सहित कई अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त की।
  • विशाल सैन्य बल, जिसमें 2 लाख पैदल सैनिक, 20,000 घुड़सवार और 3,000 से अधिक हाथी थे।

धनानंद (अंतिम शासक):

  • अत्यंत अमीर और विलासी थे।
  • उनका शासनकाल अत्यंत क्रूर और आततायी माना गया।
  • प्रजा में असंतोष बढ़ा।

प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • मगध का प्रथम एकीकरण और विशाल साम्राज्य की स्थापना, जो गंगा घाटी से पार जाकर विस्तृत हुआ।
  • प्रशासनिक सुधार, कर संग्रह की व्यवस्थित व्यवस्था।
  • आर्थिक समृद्धि और साहित्य, शिक्षा का विकास, जहां व्याकरणाचार्य पाणिनी भी थे।
  • बहुत शक्तिशाली सेना का निर्माण, जो बाद में मौर्य साम्राज्य की स्थापना में सहायक हुई।

पतन के कारण:

  • धनानंद के भ्रष्ट और अत्याचारी शासन के कारण जनता और सैन्य में असंतोष।
  • नंदों की सत्ता पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ और सामाजिक विरोध।
  • आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश का अंत किया।

महत्व:

  • भारत में प्रथम बार एक केंद्रीकृत, अखंड साम्राज्य की स्थापना।
  • नंद राजवंश ने प्रशासनिक, सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों में विशेष प्रगति की।
  • मगध को सम्पूर्ण भारत में एक प्रभावशाली साम्राज्य बनाने की नींव रखी।
  • मौर्य साम्राज्य के उदय के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

सारांश:

नंद वंश (345-322 ई.पू.) ने मगध साम्राज्य को गंगा घाटी से दक्षिण तक व्यापक बनाया। संस्थापक महापद्म नंद ने केंद्रीकृत प्रशासन, कर प्रणाली और विशाल सेना का निर्माण किया। उनके उत्तराधिकारी धनानंद के अत्याचारी शासन से प्रजा असंतुष्ट हुई। अंततः चाणक्य की रणनीति और चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में नंद सत्ता का पतन हुआ। इस वंश ने मौर्य साम्राज्य के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।

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