प्रस्तावना:
उत्तराखंड में कत्यूरी शासनकाल स्थापत्य कला का स्वर्णकाल माना जाता है। इस समय मंदिर निर्माण और मूर्तिकला ने अत्यंत उन्नति की। स्थानीय काष्ठ और पाषाण का उपयोग कर अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया जिन पर नागर शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
वास्तुकला का उत्कर्ष: कत्यूरी काल में मंदिर निर्माण अपनी चरम सीमा पर था। वास्तुकला और मूर्तिकला की दृष्टि से यह उत्तराखंड का सबसे सुनहरा काल माना जाता है।
मंदिर निर्माण शैली: मंदिरों का निर्माण मुख्यतः काष्ठ और पाषाण से किया जाता था। निर्माण में स्थानीय पत्थरों का उपयोग कर लघु और मध्यम आकार के मंदिर बनाए जाते थे।
नागर शैली का प्रभाव: कत्यूरी मंदिरों में नागर शैली की झलक स्पष्ट दिखती है। छत्रयुक्त और शिखरयुक्त मंदिर दो प्रमुख प्रकार के थे।
प्रमुख मंदिर: छत्रयुक्त मंदिरों में बागेश्वर का बागनाथ मंदिर, गोपीनाथ (गोपश्वर), केदारनाथ और अल्मोड़ा का नन्दा देवी मंदिर उल्लेखनीय हैं। शिखरयुक्त मंदिरों में जागेश्वर, बैजनाथ, कटारमल और द्वाराहाट के मंदिर विशेष प्रसिद्ध हैं।
विशेषताएँ: इनमें द्विस्तम्भ युक्त अर्द्धमण्डप, छत्रशैली मंदिरों में आमलका को ढकने के लिए काष्ठ निर्मित छत्र और परिवार मंदिर समूह मिलते हैं। इन मंदिरों की कलात्मकता अनुपम मानी जाती है।
विद्वानों की प्रशंसा: राहुल सांकृत्यायन ने हरगौरी मंदिर की मूर्ति को भारत की सबसे सुंदर अखंड मूर्तियों में से एक बताया है। यह कत्यूरी मूर्तिकला की उत्कृष्टता का प्रमाण है।
निष्कर्ष:
कत्यूरी स्थापत्य कला शिल्प और सौंदर्य का अनूठा संगम थी। इसमें स्थानीय परंपरा और नागर शैली का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। इस काल की कला आज भी उत्तराखंड की सांस्कृतिक संपदा का अभिन्न अंग है।