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कत्यूरी कालीन सैन्य संरचना

प्रस्तावना:

कत्यूरी काल में सेना राजसत्ता का सबसे बड़ा आधार थी। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य को शत्रुओं से बचाने के लिए एक संगठित एवं शक्तिशाली सेना की आवश्यकता थी। सेना का विभाजन विभिन्न अंगों में हुआ था, जिन्हें उनके अलग:अलग सेनानायकों के अधीन रखा गया।

पदातिक (पैदल सेना):  यह सेना का सबसे बड़ा और प्राथमिक अंग था। इसका प्रमुख गौलमिक कहलाता था। शत्रु से सीधे युद्ध लड़ने में इसकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।

अश्वारोही सेना: घुड़सवार सैनिक इसमें सम्मिलित होते थे। इसका नेतृत्व अश्वबलाधिकृत करता था। यह सेना युद्ध में त्वरित आक्रमण और शत्रु के पीछा करने में सक्षम थी।

गजारोही सेना: कत्यूरी सेना में हाथियों का भी उपयोग किया जाता था। हाथी युद्धभूमि में आतंक फैलाने और व्यवस्था बिगाड़ने में सक्षम होते। इसके सेनानायक को हस्तिबलाधिकृत कहा जाता था।

ऊष्ट्रारोही सेना: इसमें ऊंट सवार सैनिक शामिल थे। इनकी भूमिका विशेषकर सीमावर्ती और रेगिस्तानी मार्गों की सुरक्षा करना था। इसके सेनानायक ऊष्ट्राबलाधिकृत कहलाते थे।

महा दण्डनायक: पूरे सैन्य बल का सर्वोच्च सेनानायक होता था। राजा की आज्ञा से वह युद्ध संचालन करता था।

सेना की विशेषताएँ: कत्यूरी सेना बहुआयामी थी और इसमें पदातिक, अश्वारोही, गजारोही तथा ऊष्ट्रारोही सभी शामिल थे। इससे सिद्ध होता है कि उनका सैन्य संगठन अत्यंत संतुलित और बृहद् था।

निष्कर्ष:

कत्यूरी सेनाओं की संरचना यह दर्शाती है कि शत्रु आक्रमण से निपटने के लिए वे अच्छी तरह तैयार रहते थे। उनकी सेना न केवल संख्या बल में सशक्त थी, बल्कि संगठन और संचालन की दृष्टि से भी प्रभावी थी।

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