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गोरखा आक्रमण का उत्तराखंड की राजनीतिक संरचना पर प्रभाव

प्रस्तावना:

गोरखा आक्रमण (1803-1815) उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी घटना थी जिसने इस क्षेत्र की राजनीतिक संरचना को पूरी तरह से बदल दिया। गोरखाओं ने कुमाऊँ और गढ़वाल पर विजय प्राप्त कर सदियों से चले आ रहे स्थानीय शासकों को सत्ता से पदच्युत कर दिया। यह आक्रमण न केवल एक राजनीतिक उथल-पुथल था, बल्कि इसका सामाजिक और आर्थिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। गोरखाओं का शासन अपनी क्रूरता और कठोरता के लिए जाना जाता था, जिसने स्थानीय लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया।

स्थानीय शासकों का पतन: गोरखाओं ने गढ़वाल के पंवार शासकों और कुमाऊँ के चंद शासकों को परास्त कर दिया, जिससे उत्तराखंड में चली आ रही सदियों पुरानी राजशाही का अंत हो गया। इस राजनीतिक उथल-पुथल ने सत्ता के पुराने केंद्रों को नष्ट कर दिया और एक पूरी तरह से नई शासन प्रणाली को लागू किया।

कठोर कराधान और शोषण: गोरखा शासन अपनी कठोर कर नीतियों और शोषण के लिए जनि जाती है। उन्होंने किसानों और व्यापारियों पर भारी कर लगाए, और करों का संग्रह अक्सर क्रूरतापूर्वक किया जाता था। इस आर्थिक शोषण ने व्यापक गरीबी और असंतोष को जन्म दिया, जिससे जनता का जीवन बेहद मुश्किल हो गया।

पारंपरिक प्रशासनिक व्यवस्था का विघटन: गोरखाओं ने उत्तराखंड की पारंपरिक प्रशासनिक व्यवस्था, जिसमें स्थानीय मुखिया और ग्राम सभाएं शामिल थीं, को पूरी तरह से विघटित कर दिया। उन्होंने अपनी सैन्य-आधारित प्रशासन प्रणाली को लागू किया, जिसमें स्थानीय भागीदारी और स्वायत्तता की कोई जगह नहीं थी। इस विघटन ने सामाजिक संरचना और स्थिरता को बुरी तरह प्रभावित किया।

प्रतिरोध आंदोलन का उदय: गोरखा शासन की क्रूरता ने स्थानीय लोगों में व्यापक असंतोष पैदा किया, जिसके कारण कई प्रतिरोध के आंदोलन और विद्रोह हुए। हालाँकि ये विद्रोह पूरी तरह से सफल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने स्थानीय आबादी के साहस और संघर्ष की भावना को दर्शाया। इन आंदोलनों ने बाद में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की नींव भी रखी।

ब्रिटिश हस्तक्षेप और गोरखा-अंग्रेज युद्ध: गोरखाओं की विस्तारवादी नीतियों ने उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संघर्ष में ला दिया। 1815 में, एंग्लो-गोरखा युद्ध के बाद, अंग्रेजों ने गोरखाओं को पराजित किया, और उत्तराखंड से खदेड़ दिया। इस युद्ध ने इस क्षेत्र के राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया। यह एंग्लो-गोरखा युद्ध गोरखा शासन के अंत का प्रतीक बना।

ब्रिटिश शासन की शुरुआत: एंग्लो-गोरखा युद्ध और सुगौली की संधि के बाद, कुमाऊँ और गढ़वाल का अधिकांश हिस्सा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। इस प्रकार, गोरखा आक्रमण ने एक नए युग की शुरुआत की, जो सीधे तौर पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत था। युद्ध के उपरांत ब्रिटिशरों ने अपनी प्रशासनिक और कानूनी प्रणाली लागू की, जिसने इस क्षेत्र की पारंपरिक राजनीतिक संरचना को स्थायी रूप से बदल दिया।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के रूप में, गोरखा आक्रमण उत्तराखंड के लिए एक विनाशकारी घटना थी, जिसने सदियों पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। इस आक्रमण ने जनता के लिए घोर पीड़ा और आर्थिक संकट लाया, लेकिन इसने एक नए राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त किया। गोरखाओं को हटाने के लिए हुए गोरखा-अंग्रेज युद्ध ने अंततः उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन की नींव रखी, जिसने इस क्षेत्र के इतिहास को एक नई दिशा दी।

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