प्रस्तावना:
चंद राजवंश (10वीं से 18वीं शताब्दी ईस्वी) ने कुमाऊँ क्षेत्र में एक व्यवस्थित भू-राजस्व प्रणाली स्थापित की। यह प्रणाली राज्य की आय का प्रमुख स्रोत थी और इसकी दक्षता ने साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की। इस प्रणाली का सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ता था, जिनके जीवन और आजीविका का यह एक अभिन्न अंग था। यह प्रणाली राजा, स्थानीय अधिकारियों और किसानों के बीच एक जटिल संबंध को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य राज्य की जरूरतों और कृषि समुदाय की वास्तविकता के बीच संतुलन बनाए रखना था।
व्यवस्थित राजस्व मूल्यांकन और संग्रह: चंद शासकों ने व्यवस्थित भू-राजस्व मूल्यांकन की शुरुआत की। भूमि की माप की जाती थी, और उसकी उर्वरता के आधार पर कर निर्धारित किया जाता था। इस प्रणाली से राजा को अपनी आय का अनुमान लगाने में मदद मिली और किसानों को भी अपनी जिम्मेदारियों के बारे में स्पष्टता थी। हालांकि, यह प्रणाली पूरी तरह से दोषरहित नहीं थी, और समय-समय पर इसमें सुधार किए जाते थे।
ग्राम प्रधान और थोकेदार की भूमिका: भू-राजस्व संग्रह में गाँव के मुखिया (ग्राम प्रधान) और स्थानीय सरदार (थोकेदार) एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे। वे राज्य और किसानों के बीच की कड़ी थे, जो राजस्व को एकत्र कर राज्य के खजाने तक पहुँचाते थे। इन स्थानीय ग्राम प्रधान और थोकेदार का किसानों पर प्रभाव था, जिससे संग्रह प्रक्रिया सुगम हो जाती थी।
वस्तु के रूप में भुगतान: उस समय सीमित मुद्रा के प्रचलन के कारण, किसान अक्सर वस्तु के रूप में (फसल, उत्पाद, आदि) भू-राजस्व का भुगतान करते थे। यह प्रणाली किसानों के लिए अधिक सुविधाजनक थी क्योंकि उन्हें अपनी उपज को बेचने के लिए बाजारों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। हालांकि, यह राज्य के लिए भंडारण और परिवहन की चुनौतियाँ पैदा करती थी।
अत्यधिक कराधान और असंतोष: यद्यपि प्रणाली को व्यवस्थित बनाया गया था, फिर भी अत्यधिक कराधान कभी-कभी किसानों में असंतोष का कारण बनता था। फसल खराब होने या प्राकृतिक आपदाओं के समय भी कर की माँग की जाती थी, जिससे किसानों पर भारी बोझ पड़ता था। इन परिस्थितियों में, किसानों के विद्रोह और संघर्षों की घटनाएँ भी हुई हैं, जो इस प्रणाली की कमजोरियों को दर्शाती हैं।
राज्य की स्थिरता और सांस्कृतिक गतिविधियों का संरक्षण: भू-राजस्व से प्राप्त आय ने चंद राजवंश को राजनीतिक स्थिरता प्रदान की। इस धन का उपयोग सेना के रखरखाव, प्रशासनिक खर्चों और सार्वजनिक निर्माण कार्यों में किया जाता था। इसके अलावा, राजाओं ने इस आय का उपयोग कला, वास्तुकला और साहित्य को संरक्षण देने के लिए किया, जिसने कुमाऊँ की सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान दिया।
किसानों का कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़ाव: इस प्रणाली ने किसानों को कृषि अर्थव्यवस्था और प्रशासन से मजबूती से जोड़ा। किसानों का जीवन सीधे तौर पर भूमि और उसके उत्पादन से जुड़ा था। वे न केवल फसल उगाते थे, बल्कि राज्य के लिए कर संग्रह प्रणाली का एक अभिन्न अंग भी थे, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति निर्धारित होती थी।
निष्कर्ष:
सारांशतः, चंद राजवंश की भू-राजस्व प्रणाली एक व्यवस्थित और प्रभावी तंत्र था जिसने राज्य की आर्थिक रीढ़ का काम किया। हालांकि इसमें किसानों के लिए कुछ चुनौतियाँ थीं, इसने राज्य को राजनीतिक रूप से स्थिर और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाए रखा। यह प्रणाली न केवल एक आर्थिक तंत्र थी, बल्कि इसने कुमाऊँ के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को भी आकार दिया।