प्रस्तावना:
कत्युरी साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था मुख्य रूप से सुनियोजित कर संग्रह पर आधारित थी। इस प्रणाली का उद्देश्य राज्य के व्यय, जैसे कि सैन्य रखरखाव, सार्वजनिक कार्यों और राजसी खर्चों को पूरा करने के लिए एक स्थिर आय सुनिश्चित करना था। भूमि राजस्व से लेकर व्यापार और वन संसाधनों तक, कत्युरी शासकों ने राजस्व के विविध स्रोतों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया, जिससे उनका साम्राज्य समृद्ध और स्थिर बना रहा।
भूमि राजस्व (मुख्य आय का स्रोत): कत्युरी साम्राज्य में भूमि राजस्व आय का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत था। किसानों को अपनी फसल का एक हिस्सा कर के रूप में देना होता था। यह कर प्रणाली व्यवस्थित थी, जिससे राज्य को एक नियमित और अनुमानित आय प्राप्त होती थी। भूमि की उर्वरता और फसल के प्रकार के आधार पर कर की दरें अलग-अलग होती थीं।
व्यापार पर कर: कत्युरी शासकों ने व्यापार पर कर लगाकर भी महत्वपूर्ण राजस्व अर्जित किया। हिमालय के आर-पार और मैदानी इलाकों से होने वाले व्यापार मार्गों पर उनका नियंत्रण था। इन मार्गों से गुजरने वाले सामानों पर शुल्क लगाया जाता था, जिससे व्यापार से होने वाली आय में वृद्धि हुई। तिब्बत और मैदानी भारत के बीच व्यापार विशेष रूप से लाभदायक था।
वन संसाधनों पर कर: उत्तराखंड का क्षेत्र घने जंगलों से समृद्ध था, और कत्युरी शासकों ने वन संसाधनों जैसे कि लकड़ी, जड़ी-बूटियों और अन्य वन उत्पादों पर कर लगाकर भी राजस्व प्राप्त किया। यह कर प्रणाली राज्य के लिए एक अतिरिक्त आय का स्रोत थी और प्राकृतिक संसाधनों के कुशल प्रबंधन को भी दर्शाती थी।
पशुपालकों से शुल्क: इस क्षेत्र में पशुपालन एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि थी। घुमंतू पशुपालक अपने जानवरों को चराने के लिए चारागाहों का उपयोग करते थे, और इसके लिए उन्हें राज्य को शुल्क देना पड़ता था। चराई शुल्क ने राज्य की आय में योगदान दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग नियंत्रित और व्यवस्थित तरीके से हो।
मंदिरों से अनुदान और दान: कत्युरी राजाओं को धार्मिक संरक्षण के लिए जाना जाता था, और मंदिरों के अनुदान और दान भी शाही आय के पूरक स्रोत थे। मंदिरों को अक्सर भूमि और धन का दान मिलता था, जिसका एक हिस्सा राज्य के कोष में योगदान देता था। यह धार्मिक आय राजकोषीय स्थिरता में सहायक थी।
राजस्व संग्रह का विकेंद्रीकरण: राजस्व संग्रह की प्रक्रिया कुशल और विकेंद्रीकृत थी। स्थानीय अधिकारी और सामंती सरदार (जैसे थोकदार) अपने-अपने क्षेत्रों में कर संग्रह के लिए जिम्मेदार थे। इस विकेन्द्रीकृत प्रणाली ने राजस्व संग्रह को अधिक प्रभावी और त्वरित बनाया, क्योंकि स्थानीय अधिकारी अपने क्षेत्र की विशिष्टताओं को अच्छी तरह जानते थे।
निष्कर्ष:
सारांशतः, कत्युरी साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था राजस्व के कई स्रोतों पर आधारित थी, जिसमें भूमि राजस्व सबसे प्रमुख था। व्यापार, वन संसाधनों और पशुपालन पर कर ने इस आय को पूरक बनाया। राजस्व संग्रह की विकेन्द्रीकृत प्रणाली ने प्रशासन को अधिक कुशल बनाया और राज्य को आर्थिक रूप से स्थिर रखा, जिससे कत्युरी शासकों को एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य बनाए रखने में मदद मिली।