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ब्रिटिश शासन काल में उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार

प्रस्तावना:

ब्रिटिश शासन ने उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किये और संस्थाओं का विकास किया, साथ ही पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य ईसाई मिशनरियों के माध्यम से शिक्षा का प्रसार करना और प्रशासनिक पदों के लिए शिक्षित भारतीयों को तैयार करना था। जहाँ एक ओर, इन सुधारों ने आधुनिक शिक्षा की नींव रखी, वहीं दूसरी ओर, यह प्रणाली अंग्रेजी माध्यम पर केंद्रित थी और इसने स्थानीय भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान को हाशिए पर धकेल दिया।

मिशनरी स्कूलों की स्थापना: ब्रिटिश शासन के शुरुआती चरण में, शिक्षा का प्रसार मुख्य रूप से ईसाई मिशनरियों के प्रयासों से हुआ। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में कई प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय स्थापित किए, जैसे नैनीताल, मसूरी और अल्मोड़ा में। इन स्कूलों ने न केवल अंग्रेजी शिक्षा प्रदान की, बल्कि पश्चिमी संस्कृति और मूल्यों का भी प्रचार किया। इन संस्थानों ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी, जो उस समय के लिए एक बड़ा बदलाव था।

सरकारी स्कूलों की स्थापना और शिक्षा प्रणाली: मिशनरी स्कूलों के बाद, ब्रिटिश सरकार ने स्वयं शिक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप करना शुरू किया। उन्होंने 1854 के वुड के डिस्पैच (Wood’s Despatch) के बाद प्राथमिक और माध्यमिक सरकारी स्कूलों की स्थापना की। इन स्कूलों का उद्देश्य एक संगठित और मानकीकृत शिक्षा प्रणाली बनाना था। पाठ्यक्रम को आधुनिक विषयों जैसे विज्ञान, गणित और अंग्रेजी पर केंद्रित किया गया, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक और तकनीकी पदों के लिए भारतीयों को तैयार करना था।

उच्च शिक्षा संस्थानों का विकास: ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में उच्च शिक्षा के लिए भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। हालाँकि, यहाँ कोई विश्वविद्यालय स्थापित नहीं हुआ, लेकिन नैनीताल में शेरवुड कॉलेज और मसूरी में वुडस्टॉक स्कूल जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान स्थापित हुए, जहाँ उच्च वर्ग के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती थी। इन संस्थानों ने एक शिक्षित अभिजात वर्ग को जन्म दिया जो बाद में प्रशासन और सामाजिक सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने उत्तराखंड के समाज पर गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वालों को सरकारी नौकरियों में बेहतर अवसर मिले, जिससे एक नया शिक्षित वर्ग सामने आया। हालाँकि, यह शिक्षा प्रणाली केवल कुछ ही लोगों तक सीमित थी और आम जनता के लिए सुलभ नहीं थी। इसके अलावा, इसने पारंपरिक गुरुकुलों और पाठशालाओं को कमजोर किया और स्थानीय भाषाओं को नजरअंदाज किया, जिससे एक सांस्कृतिक विभाजन भी पैदा हुआ।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, ब्रिटिश शासन ने उत्तराखंड में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की, जिसने इस क्षेत्र के शैक्षिक और सामाजिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। जहाँ एक ओर, इन सुधारों ने आधुनिक ज्ञान, विज्ञान और प्रशासनिक कौशल का प्रसार किया, वहीं दूसरी ओर, यह प्रणाली सीमित पहुँच और पश्चिमीकरण पर केंद्रित थी, जिसने पारंपरिक ज्ञान और सामाजिक संरचनाओं को चुनौती दी।

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