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गढ़वाल की पहचान स्थापित करने में राजा सुदर्शन शाह की भूमिका

प्रस्तावना:

राजा सुदर्शन शाह ने गोरखाओं की हार के बाद गढ़वाल की पहचान और संप्रभुता को फिर से स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1815 में सुगौली की संधि के बाद, अंग्रेजों ने गढ़वाल को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया, जिसमें से एक हिस्सा ब्रिटिश गढ़वाल बन गया और दूसरा, जिसे टिहरी गढ़वाल के नाम से जाना गया, सुदर्शन शाह को सौंपा गया। इस कठिन परिस्थिति में, सुदर्शन शाह ने न केवल अपनी रियासत को गोरखाओं के विनाश से उबारा, बल्कि एक नई राजधानी (टिहरी) की स्थापना की और एक स्थिर और स्वतंत्र राज्य की नींव रखी।

नई राजधानी की स्थापना: गोरखा युद्ध के बाद, गढ़वाल की पुरानी राजधानी श्रीनगर पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी और ब्रिटिश गढ़वाल के नियंत्रण में थी। अपनी रियासत की पहचान को फिर से स्थापित करने के लिए, सुदर्शन शाह ने भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर एक नई राजधानी, टिहरी (टीहरी) की स्थापना की। यह कदम प्रतीकात्मक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने गढ़वाल के एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित किया। उन्होंने टिहरी को एक प्रशासनिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित किया, जिससे राज्य की पहचान फिर से मजबूत हुई।

राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिरता: गोरखा शासनकाल में गढ़वाल में अराजकता और अव्यवस्था का माहौल था। सुदर्शन शाह ने अपनी रियासत में राजनीतिक स्थिरता लाने के लिए एक प्रभावी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने राजस्व संग्रह, न्याय और कानून-व्यवस्था के लिए नई संरचनाएं बनाईं। उन्होंने गोरखाओं द्वारा लगाए गए कठोर करों को कम किया और लोगों को उनकी भूमि वापस लौटाने में मदद की। इस प्रशासनिक सुधार ने लोगों का विश्वास जीता और राज्य की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद की।

सांस्कृतिक और साहित्यिक पुनरुत्थान: सुदर्शन शाह न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि एक कला और साहित्य प्रेमी भी थे। उन्होंने गढ़वाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कलाकारों, कवियों और विद्वानों को संरक्षण दिया। वे स्वयं एक कवि थे और उन्होंने ‘सभासार ग्रंथ’ की रचना की, जिसमें गढ़वाल के इतिहास, संस्कृति और उनकी शासन पद्धति का वर्णन है। यह साहित्यिक कार्य गढ़वाल की पहचान और इतिहास को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

अंग्रेजों के साथ व्यावहारिक संबंध: सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों के साथ एक व्यावहारिक और रणनीतिक संबंध बनाए रखा। उन्होंने सुगौली की संधि के बाद अंग्रेजों के साथ सहयोग किया, जिससे उन्हें अपनी रियासत की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिली। उन्होंने अपनी रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक रियासत के रूप में मान्यता दी, लेकिन अपनी आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखा। यह संतुलन साधने की नीति ने उन्हें गोरखाओं से सुरक्षा प्रदान की और साथ ही अपने राज्य की पहचान और संप्रभुता को भी बनाए रखने में मदद की।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, राजा सुदर्शन शाह ने गोरखाओं की हार के बाद गढ़वाल की पहचान को फिर से स्थापित करने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने एक नई राजधानी की स्थापना की, प्रशासनिक स्थिरता लाई, सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित किया और अंग्रेजों के साथ एक रणनीतिक संबंध बनाए रखा। उनके इन प्रयासों ने टिहरी रियासत की नींव रखी और गढ़वाल को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राज्य के रूप में स्थापित किया।

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