प्रस्तावना:
उत्तराखंड का इतिहास उसकी भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक विविधता के कारण अद्वितीय रहा है। प्राचीन काल से ही यहां विभिन्न राजवंशों का उदय और पतन होता रहा, जिनमें कत्युरी, चंद, परमार और गढ़वाल शासक प्रमुख रहे। इन राजवंशों ने प्रशासनिक ढांचे, कृषि व्यवस्था, धार्मिक संरक्षण और सांस्कृतिक उन्नति के आधार पर शासन किया। किंतु ब्रिटिश उपनिवेश काल में यह संरचना धीरे-धीरे बदल गई और पारंपरिक सत्ता संरचना आधुनिक प्रशासनिक ढांचे से प्रतिस्थापित हुई। इस प्रक्रिया में जहां कुछ तत्व स्थायी बने रहे, वहीं कई क्षेत्रों में मौलिक परिवर्तन हुए।
कत्युरी काल की केंद्रीकृत सत्ता: कत्युरी शासक (7वीं–11वीं शताब्दी) उत्तराखंड की पहली प्रमुख शक्ति माने जाते हैं। उन्होंने केंद्र से शासित एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना की। अल्मोड़ा और बागेश्वर जैसे क्षेत्र प्रशासनिक और धार्मिक केंद्र बने। कत्युरी शासन में भूमि से कर वसूली, कृषि उत्पादन का नियमन और व्यापार मार्गों पर नियंत्रण, राजनीतिक संरचना की मुख्य विशेषताएँ थीं।
चंद वंश और विकेन्द्रीकरण: कत्युरी साम्राज्य के पतन के बाद चंद शासकों (11वीं–18वीं शताब्दी) ने सत्ता संभाली। उनके शासनकाल में स्थानीय सरदारों और ग्राम पंचायतों की भूमिका बढ़ी। यद्यपि शासक सर्वोच्च थे, किंतु गांव स्तर पर सामूहिक निर्णय और स्थानीय न्याय व्यवस्था कायम रही। चंद शासकों ने मंदिर निर्माण और साहित्य संरक्षण को बढ़ावा दिया, जिससे राजनीतिक संरचना सांस्कृतिक वैभव से भी जुड़ गई।
गढ़वाल राज्य और सामंती ढांचा: गढ़वाल के परमार शासक (15वीं–18वीं शताब्दी) ने पहाड़ी इलाकों में सामंती व्यवस्था विकसित की। राजा केंद्र में रहते हुए स्थानीय जमींदारों के माध्यम से शासन करते थे। यहां भूमि राजस्व के साथ-साथ सेना और किलों की भूमिका भी राजनीतिक संरचना का हिस्सा बनी।
औपनिवेशिक हस्तक्षेप और प्रशासनिक पुनर्गठन: 1814–16 के एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद ब्रिटिश सत्ता ने कुमाऊँ और गढ़वाल के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिशों ने ‘कमिश्नरी प्रणाली’ लागू की, जिसके अंतर्गत अल्मोड़ा और देहरादून जैसे क्षेत्रों को अलग प्रशासनिक इकाइयों के रूप में संगठित किया गया। पारंपरिक पंचायत और सरदारी व्यवस्था कमजोर पड़ी और न्यायिक व राजस्व व्यवस्था अंग्रेज़ी कानून पर आधारित होने लगी।
निरंतरता और परिवर्तन का द्वंद्व: जहां गांव स्तर पर सामुदायिक सहयोग और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था की परंपरा निरंतर बनी रही, वहीं राजनीतिक शक्ति धीरे-धीरे स्थानीय राजाओं से ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों में स्थानांतरित हो गई। इस प्रकार, प्रशासनिक केंद्रीकरण और कानूनी ढांचे में गहरा परिवर्तन आया, लेकिन सामाजिक-आर्थिक जीवन की आधारभूत संरचना में निरंतरता बनी रही।
निष्कर्ष:
कत्युरी काल से लेकर ब्रिटिश उपनिवेश काल तक उत्तराखंड की राजनीतिक संरचना ने कई उतार-चढ़ाव देखे। प्राचीन शासकों द्वारा स्थापित केंद्रीकृत और सामंती व्यवस्था समय के साथ औपनिवेशिक प्रशासनिक ढांचे में बदल गई। यह यात्रा निरंतरता और परिवर्तन के समन्वय की गाथा है, जिसमें स्थानीय स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण की परंपरा कायम रही, लेकिन सत्ता के स्वरूप और नियंत्रण की प्रणाली मूलभूत रूप से बदल गई।