प्रस्तावना:
उत्तराखण्ड अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सदैव रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। हिमालयी सीमाओं से घिरा यह क्षेत्र भारत, नेपाल और तिब्बत (चीन) के बीच एक सेतु का कार्य करता आया है। ब्रिटिश काल में इस भौगोलिक स्थिति ने उत्तराखण्ड को विशेष महत्व तो दिया, किन्तु इसके साथ कई भू-राजनीतिक चुनौतियाँ भी सामने आईं। इनमें सीमाई सुरक्षा, पड़ोसी राज्यों के साथ संबंध, व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण और औपनिवेशिक शक्तियों की रणनीतियाँ प्रमुख थीं।
नेपाल के साथ संघर्ष और सीमा विवाद: गोरखा शक्ति के उदय के साथ 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्तराखण्ड निरंतर संघर्ष की स्थिति में रहा। गोरखों ने कुमाऊँ और गढ़वाल पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास किया। 1814-16 के एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया। इस कारण ब्रिटिशों को नेपाल से लगी सीमाओं की रक्षा करना और गोरखा शक्ति को सीमित करना एक बड़ी चुनौती बनी रही।
तिब्बत के साथ व्यापार और कूटनीतिक संतुलन: उत्तराखण्ड के माध्यम से भारत और तिब्बत के बीच व्यापारिक मार्ग चलते थे। ब्रिटिश सरकार इन व्यापारिक मार्गों का उपयोग अपने वाणिज्यिक हितों के लिए करना चाहती थी, परंतु तिब्बत के प्रभाव के कारण यह क्षेत्र संवेदनशील बना रहा। ब्रिटिशों को यह आशंका रहती थी कि तिब्बत की ओर से सामरिक गतिविधियाँ उनकी सत्ता को चुनौती दे सकती हैं।
रणनीतिक मार्गों पर नियंत्रण: उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ से गुजरने वाले दर्रे जैसे—लिपुलेख, नीतिपास, और माणा पास—सैन्य और व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थे। ब्रिटिशों को इन मार्गों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए निरंतर सैन्य चौकियों और प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करना पड़ा। इससे ब्रिटिश शासन का बोझ बढ़ा और क्षेत्र में असंतोष भी उत्पन्न हुआ।
स्थानीय जनजीवन पर प्रभाव: सीमाई तनाव और ब्रिटिश नीतियों ने स्थानीय समाज पर भी असर डाला। व्यापारिक मार्गों पर ब्रिटिश नियंत्रण ने परंपरागत व्यापारियों और चरवाहों की आजीविका को प्रभावित किया। साथ ही, सेना और प्रशासन के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग बढ़ा, जिससे समाज में असंतोष और उपेक्षा की भावना पनपी।
औपनिवेशिक शक्ति की रणनीतिक दृष्टि: ब्रिटिशों ने उत्तराखण्ड को केवल सांस्कृतिक या सामाजिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से देखा। नेपाल और तिब्बत की सीमाओं पर प्रभावी उपस्थिति बनाए रखना उनके लिए अनिवार्य था। इस कारण यह क्षेत्र ब्रिटिश सैन्य और प्रशासनिक रणनीति का केंद्र बन गया।
निष्कर्ष:
इस प्रकार ब्रिटिश काल में उत्तराखण्ड को नेपाल और तिब्बत की निकटता ने भू-राजनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील बना दिया। यद्यपि इस स्थिति ने क्षेत्र को रणनीतिक महत्व प्रदान किया, किंतु इसके परिणामस्वरूप स्थानीय समाज आर्थिक और सामाजिक संकटों का सामना करता रहा। ब्रिटिश सत्ता के लिए यह क्षेत्र सुरक्षा और नियंत्रण की चुनौती बना रहा, जबकि स्थानीय जनता के लिए यह संघर्ष और असंतोष का कारण बना।