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गोरखा प्रशासन का उत्तराखंड पर प्रभाव

प्रस्तावना:

गोरखा प्रशासन का उत्तराखंड के स्थानीय शासन, कराधान और आम लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसे अक्सर कठोर और दमनकारी माना जाता है। गोरखाओं ने कुमाऊँ और गढ़वाल पर विजय प्राप्त करने के बाद एक केंद्रीकृत और सैन्य-आधारित शासन प्रणाली स्थापित की। उन्होंने मौजूदा प्रशासनिक संरचनाओं को बदल दिया और एक नई राजस्व प्रणाली लागू की, जिसने किसानों और स्थानीय जनता पर भारी आर्थिक और सामाजिक बोझ डाला। हालाँकि, उनका शासन कुछ हद तक कानून और व्यवस्था स्थापित करने में सफल रहा, लेकिन यह अपनी क्रूरता और शोषण के लिए अधिक जाना जाता है।

कठोर कराधान और आर्थिक शोषण: गोरखा प्रशासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उनकी कठोर और मनमानी कराधान प्रणाली थी। उन्होंने कई प्रकार के कर लगाए, जिनमें सायर (सीमा शुल्क), टीका भेंट (उत्सव कर) और पून-मांगा (सैन्य आपूर्ति के लिए कर) जैसे नए कर शामिल थे। राजस्व की मांग बहुत अधिक थी, और भुगतान अक्सर नगद में करना होता था। इसके अलावा, सैनिकों और अधिकारियों द्वारा जबरन वसूली आम बात थी, जिससे किसानों और व्यापारियों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा और वे अक्सर कर्ज में डूब जाते थे।

स्थानीय शासन में बदलाव: गोरखाओं ने स्थानीय शासन की पारंपरिक प्रणालियों को समाप्त कर दिया। उन्होंने क्षेत्रीय प्रमुखों और अधिकारियों की जगह अपने सैन्य कमांडरों और प्रशासकों को नियुक्त किया। इससे पारंपरिक सामाजिक और राजनीतिक संरचनाएं टूट गईं। हालाँकि, यह केंद्रीकरण कुछ हद तक प्रशासनिक दक्षता और कानून-व्यवस्था स्थापित करने में सहायक था, लेकिन इसने स्थानीय समुदायों को प्रशासन से अलग-थलग कर दिया, जिससे उनके पास शिकायत करने का कोई मंच नहीं था।

कानून-व्यवस्था और सामाजिक जीवन: गोरखा शासनकाल में न्याय व्यवस्था बेहद कठोर थी। अपराधियों को अक्सर शारीरिक दंड दिया जाता था, और अपराधों को रोकने के लिए कठोर उपाय अपनाए जाते थे। चोरी और डकैती जैसे अपराधों पर सख्ती से नियंत्रण किया गया, जिससे कुछ हद तक कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ। हालांकि, यह सब भय के माहौल में होता था। सामाजिक जीवन में, जबरन श्रम (बेगार) का व्यापक उपयोग किया जाता था, और लोगों को बिना किसी पारिश्रमिक के सड़कों के निर्माण और सैन्य अभियानों में मदद करनी पड़ती थी।

सामाजिक और आर्थिक पलायन: गोरखाओं के अत्याचारों और आर्थिक शोषण के कारण, कई लोग अपनी जमीन और घर छोड़कर अन्य क्षेत्रों, विशेषकर ब्रिटिश भारत के मैदानी इलाकों में पलायन करने को मजबूर हुए। इस पलायन से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जनसंख्या में कमी आई और कृषि उत्पादकता प्रभावित हुई। गोरखा शासन की क्रूरता ने इस क्षेत्र में एक असंतोष का वातावरण बना दिया, जिसने बाद में ब्रिटिश सेना को गोरखाओं के खिलाफ अभियान चलाने का एक कारण प्रदान किया।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, गोरखा प्रशासन का उत्तराखंड पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जहाँ एक ओर उन्होंने कुछ हद तक प्रशासनिक केंद्रीकरण और कानून-व्यवस्था में सुधार किया, वहीं उनकी कठोर कराधान प्रणाली, जबरन वसूली और दमनकारी नीतियों ने लोगों के जीवन को बहुत मुश्किल बना दिया। इस शासन ने आर्थिक शोषण और सामाजिक विघटन को जन्म दिया, जिससे अंततः इस क्षेत्र में गोरखा शासन का अंत हुआ।

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