प्रस्तावना:
उत्तराखंड के इतिहास में चंद वंश (कुमाऊँ) और परमार वंश (गढ़वाल) ने लंबे समय तक शासन किया। दोनों वंशों को अपनी राजनीतिक सत्ता को बनाए रखने के लिए बाहरी शक्तियों—विशेषकर मुगलों और गोरखाओं—से संबंध स्थापित करने पड़े। इन संबंधों ने कभी सहयोग तो कभी संघर्ष का रूप लिया और इनके राज्यों की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया।
चंद वंश और मुगलों के संबंध: चंद राजाओं ने मुगलों के साथ प्रायः मित्रवत संबंध बनाए रखे। मुगलों की उत्तरी भारत में शक्ति को देखते हुए चंद शासकों ने कूटनीतिक ढंग से संबंध स्थापित किए। उदाहरण के लिए, बाज बहादुर चंद ने अकबर और उसके उत्तराधिकारियों से राजनीतिक संतुलन बनाए रखा। इसके परिणामस्वरूप कुमाऊँ अपेक्षाकृत स्थिर रहा और मुगलों की शक्ति का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप सीमित रहा।
परमार वंश और मुगलों के साथ संबंध: गढ़वाल के परमार शासकों का मुगलों से संबंध कभी मैत्रीपूर्ण तो कभी संघर्षपूर्ण रहा। विशेषकर, महाप्रतापी राजा महिपति शाही और पृथ्विपति शाही ने मुगलों के दबाव का सामना किया। किंवदंतियों के अनुसार गढ़वाल की कठिन भू-प्रकृति और सैनिक रणनीति के कारण मुगलों को यहाँ अपनी स्थिति मजबूत करने में कठिनाई हुई। इस कारण गढ़वाल अपेक्षाकृत स्वतंत्र बना रहा।
चंद वंश और गोरखाओं से संघर्ष: अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गोरखाओं का प्रभाव बढ़ने लगा। कुमाऊँ पर गोरखाओं ने बार-बार आक्रमण किए और अंततः 1791 में चंद शासक महेन्द्र चंद को पराजित कर कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया। इस संघर्ष ने चंद वंश की सत्ता को समाप्त कर दिया और क्षेत्र सीधे गोरखा शासन के अधीन आ गया।
परमार वंश और गोरखाओं से संघर्ष: इस काल में गढ़वाल भी गोरखा आक्रमणों से अछूता नहीं रहा। गोरखाओं ने यहाँ भी लगातार दबाव बनाया और 1803 में गढ़वाल पर विजय प्राप्त की। राजा प्रद्युम्न शाह ने गोरखाओं का प्रतिरोध किया किंतु पराजित हुए। गोरखाओं का शासन गढ़वाल की राजनीति में अस्थिरता लेकर आया और जनता पर भारी कर और शोषण थोपे गए।
राजनीति पर इन संबंधों का प्रभाव: मुगलों के साथ संतुलित संबंधों ने चंद और परमार दोनों राज्यों को लंबे समय तक स्वतंत्रता और स्थिरता दी। लेकिन गोरखाओं के आक्रमणों ने दोनों वंशों की राजनैतिक सत्ता को समाप्त कर दिया। इससे स्थानीय जनता में असंतोष बढ़ा और अंततः अंग्रेजों के आगमन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
निष्कर्ष:
चंद और परमार शासकों के मुगलों और गोरखाओं के साथ संबंधों ने उनके इतिहास की दिशा बदल दी। जहाँ मुगलों के साथ संबंध कूटनीतिक और अपेक्षाकृत स्थिर रहे, वहीं गोरखाओं के आक्रमण विनाशकारी सिद्ध हुए। इसने न केवल दोनों राजवंशों की राजनीतिक स्वतंत्रता को समाप्त किया, बल्कि उत्तराखंड के इतिहास में अंग्रेजी सत्ता के प्रवेश की भूमिका भी तैयार की।