Rankers Domain

चंद और परमार राजवंशों के शासन के भौगोलिक केंद्र

प्रस्तावना:

उत्तराखंड के ऐतिहासिक परिदृश्य में, चंद और परमार राजवंशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहाँ चंद राजवंश ने कुमाऊँ क्षेत्र को अपना केंद्र बनाया, वहीं परमार राजवंश ने गढ़वाल क्षेत्र में अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित की। दोनों ही राजवंशों ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक मजबूत शासन प्रणाली विकसित की, लेकिन उनकी भौगोलिक स्थिति और शासन के केंद्र में स्पष्ट अंतर थे।

चंद राजवंश का भौगोलिक केंद्र: चंद राजवंश ने मुख्य रूप से कुमाऊँ क्षेत्र पर शासन किया। उनके साम्राज्य का विस्तार वर्तमान पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों तक था। प्रारंभ में, उनकी राजधानी चंपावत थी, जो काली नदी के तट पर स्थित एक रणनीतिक स्थान था। बाद में, राजा भीष्म चंद ने राजधानी को अल्मोड़ा में स्थानांतरित किया, जिसे बाल कल्याण चंद ने औपचारिक रूप से स्थापित किया। अल्मोड़ा को एक नया प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया गया। यह भौगोलिक केंद्र एक ऐसा क्षेत्र था जो हिमालय के एक ऐसे स्थान पर स्थित था और जिसका संबंध नेपाल, तिब्बत और भारत के मैदानी इलाकों से था, जिससे व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला।

परमार राजवंश का भौगोलिक केंद्र:  परमार राजवंश ने मुख्य रूप से गढ़वाल क्षेत्र पर शासन किया। उनके शासन का केंद्र वर्तमान टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तरकाशी और चमोली जिलों तक फैला हुआ था। इस वंश की प्रारंभिक राजधानी चांदपुरगढ़ी थी। बाद में, राजा अजयपाल ने अपनी राजधानी को देवलगढ़ में स्थानांतरित किया और फिर इसे श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थापित किया। श्रीनगर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक केंद्र बन गया। परमारों का शासन गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्रों में था, जो प्राकृतिक रूप से दुर्गम थे और उन्हें बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करते थे। उनका शासन केंद्र गंगा और यमुना नदियों की घाटियों के करीब था, जिसने इस क्षेत्र को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया।

भौगोलिक केंद्रों में अंतर:

चंद और परमारों के भौगोलिक केंद्रों में कई महत्वपूर्ण अंतर थे।

क्षेत्रीय विभाजन: चंदों का शासन पूर्वी कुमाऊँ में था, जबकि परमारों का शासन पश्चिमी गढ़वाल में था। यह विभाजन आज भी कुमाऊँ और गढ़वाल के रूप में दो अलग-अलग सांस्कृतिक क्षेत्रों के रूप में देखा जाता है।

राजधानी: चंदों की राजधानी चंपावत और बाद में अल्मोड़ा थी, जो कुमाऊँ के केंद्र में स्थित थे। इसके विपरीत, परमारों की राजधानी श्रीनगर थी, जो गढ़वाल के मध्य में स्थित एक घाटी में थी।

सामरिक महत्व: चंदों का राज्य नेपाल और तिब्बत के करीब था, जिससे उन्हें व्यापारिक और सामरिक महत्व मिला। परमारों का गढ़वाल राज्य उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से अधिक निकट था, जिसने उन्हें मुगलों और अन्य मैदानी शक्तियों के साथ सीधे संपर्क में रखा।

निष्कर्ष:

संक्षेप में, चंद राजवंश ने कुमाऊँ क्षेत्र को अपना राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया, जबकि परमार राजवंश ने गढ़वाल को। इन दोनों राजवंशों के अलग-अलग भौगोलिक केंद्र ने न केवल उनके प्रशासन और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, बल्कि उनके सांस्कृतिक विकास और बाहरी शक्तियों के साथ संबंधों को भी आकार दिया। यह भौगोलिक विभाजन उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति की एक मूलभूत विशेषता है।

Recent Posts