प्रस्तावना:
टिहरी रियासत की स्थापना 1815 ईस्वी में राजा सुदर्शन शाह द्वारा की गई थी, और इसका सीधा संबंध पंवार राजवंश से था। यह रियासत वास्तव में पंवार राजवंश के उस हिस्से का विस्तार थी, जो गोरखा आक्रमण के बाद ब्रिटिश सहायता से फिर से स्थापित किया गया था। इस प्रकार, टिहरी रियासत पंवार राजवंश के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण का प्रतिनिधित्व करती है।
गोरखा आक्रमण और प्रद्युम्न शाह की मृत्यु: 1803 में, गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण किया और राजा प्रद्युम्न शाह को हराकर श्रीनगर पर कब्जा कर लिया। 1804 में खुड़बुड़ा के युद्ध में प्रद्युम्न शाह की मृत्यु हो गई, जिसके बाद गढ़वाल पर गोरखाओं का शासन स्थापित हो गया। इस दौरान, पंवार राजवंश अपनी राजधानी और राज्य खो चुका था।
सुदर्शन शाह की ब्रिटिश सहायता: प्रद्युम्न शाह के पुत्र सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों से सहायता मांगी ताकि वे गोरखाओं को हटाकर अपना राज्य वापस पा सकें। 1814 में, अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच युद्ध शुरू हुआ। 1815 में, अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराया और सुगौली की संधि के तहत गोरखाओं को गढ़वाल छोड़ना पड़ा।
टिहरी रियासत की स्थापना: अंग्रेजों ने पूरे गढ़वाल को सुदर्शन शाह को नहीं लौटाया। उन्होंने गढ़वाल के पूर्वी हिस्से, जिसमें श्रीनगर भी शामिल था, को अपने ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। इसके बदले में, उन्होंने पश्चिमी गढ़वाल, जिसे बाद में टिहरी रियासत के नाम से जाना गया, सुदर्शन शाह को सौंप दिया। 28 दिसंबर 1815 को, सुदर्शन शाह ने भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर टिहरी को अपनी नई राजधानी बनाया, और इस प्रकार टिहरी रियासत की स्थापना हुई।
टिहरी रियासत का पंवार राजवंश के साथ संबंध
टिहरी रियासत पंवार राजवंश की एक निरंतरता थी। सुदर्शन शाह, जिन्होंने टिहरी रियासत की स्थापना की, पंवार राजवंश के 55वें शासक थे। यद्यपि उनके राज्य का भौगोलिक क्षेत्र सीमित हो गया था, लेकिन वह और उनके उत्तराधिकारी उसी राजवंश के थे, जिसने 888 ईस्वी से गढ़वाल पर शासन किया था। टिहरी रियासत के राजाओं ने अपनी परंपराओं और प्रतीकों को जारी रखा, और वे अपनी उपाधि “शाह” का उपयोग करते रहे, जो पंवार वंश की पहचान थी। अंतिम राजा मानवेंद्र शाह ने 1949 में इस रियासत को भारतीय संघ में मिला दिया।
निष्कर्ष:
टिहरी रियासत की स्थापना गोरखा शासन की समाप्ति और ब्रिटिश सहायता के परिणाम के रूप में हुई। यह पंवार राजवंश की एक शाखा थी, जिसने अपनी मूल राजधानी श्रीनगर खोने के बाद एक नए भौगोलिक क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की। टिहरी रियासत ने पंवार राजवंश की 1100 से अधिक वर्षों की विरासत को 1949 में भारत में विलय होने तक जारी रखा।