प्रस्तावना:
गढ़वाल क्षेत्र का मध्यकालीन इतिहास परमार वंश (9वीं–14वीं शताब्दी ई.) की राजनीतिक और प्रशासनिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। परमार शासकों ने न केवल गढ़वाल को एक संगठित राजनीतिक इकाई के रूप में विकसित किया, बल्कि सुव्यवस्थित प्रशासनिक नीतियाँ लागू करके अपनी सत्ता को सुदृढ़ भी किया। उनकी नीतियों का प्रभाव क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना पर दीर्घकालिक रूप से पड़ा।
केंद्रीकृत सत्ता और शासन व्यवस्था: परमार शासकों ने गढ़वाल क्षेत्र में केंद्रीकृत शासन व्यवस्था स्थापित की। राजा को सर्वोच्च सत्ता प्राप्त थी और उसके अधीन सामंत व स्थानीय अधिकारी काम करते थे। उन्होंने पहाड़ी इलाकों को छोटे-छोटे प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया, जिससे शासन संचालन अधिक सुचारु हुआ। इस प्रकार परमार शासकों ने राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त कर क्षेत्रीय सत्ता को संगठित किया।
भूमि व्यवस्था और कर नीति: परमार शासकों ने भूमि व्यवस्था को संगठित किया और किसानों से नियमित कर वसूली की व्यवस्था की। कृषि को राजस्व का मुख्य स्रोत माना गया। कर प्रणाली का निर्धारण भूमि की उपज और गाँवों की क्षमता के अनुसार किया जाता था। इस सुव्यवस्थित कर प्रणाली ने न केवल राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया बल्कि किसानों को भी सुरक्षा प्रदान की।
न्यायिक और प्रशासनिक सुधार: राजा को न्याय का सर्वोच्च स्रोत माना जाता था। परमार शासकों ने समाज में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कठोर दंड प्रणाली लागू की। विवादों का निपटारा पंचायतों और ग्राम स्तर के अधिकारियों द्वारा किया जाता था। इस न्यायिक व्यवस्था ने सामाजिक स्थिरता और जनसाधारण में विश्वास कायम किया।
धार्मिक-सांस्कृतिक संरक्षण और वैधता: परमार शासकों ने धार्मिक संस्थानों और मंदिरों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे उनकी सत्ता को धार्मिक वैधता मिली। उन्होंने मंदिर निर्माण, दान और ब्राह्मणों को भूमि अनुदान देकर अपनी स्थिति को मजबूत किया। धर्म और संस्कृति के इस संरक्षण ने प्रजा के बीच निष्ठा और विश्वास पैदा किया, जिससे उनकी सत्ता और स्थायी हो गई।
क्षेत्रीय स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव: इन प्रशासनिक नीतियों के परिणामस्वरूप गढ़वाल में राजनीतिक स्थिरता आई और परमार सत्ता का विस्तार हुआ। उनकी नीतियों ने राज्य को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखने में मदद की और आंतरिक संगठन को मजबूत किया। परमार शासकों द्वारा रखी गई प्रशासनिक परंपराएँ आगे चलकर गढ़वाल के अन्य राजवंशों, विशेषकर पंवार वंश के लिए आधार बनीं।
निष्कर्ष:
परमार वंश की प्रशासनिक नीतियाँ गढ़वाल की सत्ता के सुदृढ़ीकरण में अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुईं। केंद्रीकृत शासन, सुव्यवस्थित कर व्यवस्था, न्यायिक सुधार और धार्मिक संरक्षण ने उन्हें न केवल क्षेत्रीय स्तर पर स्थिरता दी बल्कि जनता का समर्थन भी दिलाया। इस प्रकार परमारों का शासन गढ़वाल के इतिहास में प्रशासनिक परंपराओं और राजनीतिक स्थिरता का आधार स्तंभ रहा।