प्रस्तावना:
चंद वंश, जिसने 11वीं से 18वीं शताब्दी तक कुमाऊँ पर शासन किया, ने मुगल साम्राज्य के साथ एक जटिल कूटनीतिक संबंध बनाए रखा। यह संबंध मुख्य रूप से आपसी सम्मान, रणनीतिक सहयोग और समय-समय पर होने वाले संघर्षों पर आधारित था। चंद राजाओं ने अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाते हुए मुगलों के साथ संबंध स्थापित किए, जिससे कुमाऊँ की स्थिरता और स्वायत्तता बनी रही।
मुगल दरबार के साथ व्यक्तिगत संबंध: चंद शासकों ने मुगलों के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने में बड़ी चतुराई दिखाई। रुद्र चंद (1568-1597), जो इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे, ने मुगल सम्राट अकबर से मुलाकात की और उनसे मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए। उन्होंने अकबर के लाहौर दरबार का दौरा किया और मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार की। इस राजनीतिक कदम ने उन्हें अपने राज्य में आंतरिक और बाहरी स्थिरता बनाए रखने में मदद की। इस दौरान, उन्होंने मुगलों को सैन्य सहायता भी प्रदान की, विशेष रूप से काबुल और कंधार के अभियानों में, जिससे मुगलों के बीच उनका कद बढ़ा।
तराई-भाबर क्षेत्र का नियंत्रण: चंद वंश और मुगलों के बीच संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू तराई-भाबर क्षेत्र पर नियंत्रण था। यह क्षेत्र कुमाऊँ और मुगल साम्राज्य के मैदानी इलाकों के बीच एक बफर जोन (buffer zone) के रूप में कार्य करता था। यह क्षेत्र कृषि और व्यापार के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। जब भी इस क्षेत्र में मुगलों के अधीन कठेड़ी राजाओं या अन्य विद्रोही तत्वों का प्रभाव बढ़ने लगता था, तो चंद राजा मुगलों से सहायता प्राप्त करते थे। बाज बहादुर चंद (1638-1678) ने मुगल सम्राट शाहजहाँ से भेंट की और उनसे कठेड़ियों के खिलाफ सैन्य सहायता प्राप्त की, जिससे तराई में व्यवस्था फिर से स्थापित हो गई।
आर्थिक और व्यापारिक प्रभाव: मुगलों के साथ चंद वंश के संबंध केवल राजनीतिक नहीं थे, बल्कि इनके आर्थिक और व्यापारिक लाभ भी थे। कुमाऊँ, खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों का एक प्रमुख स्रोत था, जिनमें तांबा, लोहा और सोना शामिल थे। चंद शासक इन संसाधनों का व्यापार मुगल साम्राज्य के साथ करते थे। इसके अलावा, तिब्बत के साथ व्यापार मार्ग भी कुमाऊँ से होकर गुजरते थे, जिससे चंद राज्य को आर्थिक लाभ होता था। मुगलों के साथ अच्छे संबंध होने से इन व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित होती थी और कुमाऊँ की अर्थव्यवस्था मजबूत होती थी। मुगल काल में मुगल सिक्कों का भी कुमाऊँ में प्रयोग किया जाता था।
कुमाऊँ की स्थिरता पर प्रभाव: मुगलों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखने से कुमाऊँ को कई लाभ हुए। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि इससे सैन्य संघर्षों में कमी आई। मुगलों के साथ मित्रता के कारण कुमाऊँ पर बड़े मुगल आक्रमणों की संभावना कम हो गई, जिससे राज्य की आंतरिक स्थिरता और सुरक्षा बनी रही। चंद राजाओं ने मुगलों की शक्ति का उपयोग अपने प्रतिद्वंद्वी गढ़वाल राजाओं और अन्य छोटे पहाड़ी राज्यों को नियंत्रित करने के लिए किया। इस नीति ने कुमाऊँ को एक मजबूत और समृद्ध राज्य में बदल दिया। हालांकि, यह भी सच है कि मुगल प्रभाव के कारण चंद शासकों को कभी-कभी अपनी स्वायत्तता का कुछ हिस्सा खोना पड़ा, लेकिन कुल मिलाकर इस कूटनीति ने कुमाऊँ की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष:
चंद वंश ने मुगलों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया। उन्होंने अपनी भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाते हुए मुगलों के साथ सहयोग किया। इस कूटनीति का परिणाम यह हुआ कि कुमाऊँ एक लंबे समय तक एक स्थिर और समृद्ध राज्य के रूप में बना रहा, जो आंतरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों से काफी हद तक सुरक्षित था।