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कुमाऊँ में चन्द वंश का शासनकाल : सांस्कृतिक पुनर्जागरण

प्रस्तावना:

उत्तराखंड का कुमाऊँ क्षेत्र प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक धरोहरों का केंद्र रहा है। यहाँ की कला, स्थापत्य, लोक परंपराएँ और साहित्य विशेष पहचान रखते हैं। 9वीं से 18वीं शताब्दी तक चन्द वंश ने कुमाऊँ पर शासन किया। इस कालखंड को सांस्कृतिक पुनर्जागरण का दौर कहा जाता है, जब मंदिर स्थापत्य, शिल्पकला और साहित्य में उल्लेखनीय प्रगति हुई।

मंदिर स्थापत्य का विकास : चन्द शासकों ने मंदिर निर्माण को बढ़ावा दिया। बागेश्वर, अल्मोड़ा, पाटली, और अन्य क्षेत्रों में पत्थर से बने विशाल मंदिर निर्मित हुए। सबसे प्रसिद्ध जागेश्वर समूह के मंदिर, कटारमल सूर्य मंदिर और गोल्जू देवता के मंदिर इसी काल की पहचान हैं। इन मंदिरों की नक्काशीदार मूर्तियाँ और शिलालेख कुमाऊँ की धार्मिक आस्था और स्थापत्यकला की समृद्धि को दर्शाते हैं।

साहित्य और भाषा का उत्थान : चन्द राजाओं के संरक्षण में संस्कृत और कुमाऊँनी साहित्य का विकास हुआ। दरबारों में कवियों और विद्वानों को स्थान मिला। भक्ति और शैव परंपरा से प्रभावित रचनाएँ लोकप्रिय हुईं। लोकगीतों और लोककथाओं को भी संरक्षण मिला, जिससे सांस्कृतिक धारा मजबूत हुई।

शिल्पकला और मूर्तिकला : मंदिरों के साथ-साथ शिल्पकला में भी उन्नति हुई। पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी और मूर्तियाँ आज भी उस युग की सांस्कृतिक ऊँचाइयों की गवाही देती हैं। देवी-देवताओं की मूर्तियों में स्थानीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों का गहरा असर दिखाई देता है।

धार्मिक व सांस्कृतिक एकता : चन्द राजाओं ने धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों को बढ़ावा दिया। कुमाऊँ में नंदा देवी उत्सव जैसी परंपराओं ने सामूहिक सांस्कृतिक चेतना को मजबूत किया। इस प्रकार सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना का विकास हुआ।

स्थायी विरासत : चन्द काल की कला और संस्कृति आज भी उत्तराखंड की पहचान है। मंदिर स्थापत्य, मूर्तिकला और लोकसाहित्य केवल उस समय की उपलब्धियाँ नहीं हैं, बल्कि आज भी पर्यटन और सांस्कृतिक अध्ययन का मुख्य आधार हैं।

निष्कर्ष :

चन्द वंश के शासनकाल ने कुमाऊँ को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाया। इस कालखंड को सांस्कृतिक पुनर्जागरण कहना उचित है, क्योंकि इस दौरान मंदिर स्थापत्य, साहित्य, लोककला और सामूहिक सांस्कृतिक चेतना का उल्लेखनीय विकास हुआ। इन योगदानों ने न केवल तत्कालीन समाज को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का कार्य किया।

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