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चंद राजा सोमचंद का योगदान

प्रस्तावना:

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में चंद राजवंश की नींव रखने का श्रेय सोमचंद को जाता है। 11वीं सदी में कत्यूरी शासन के पतन के बाद, उन्होंने न केवल एक नए राजवंश की स्थापना की, बल्कि एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक और सामाजिक ढाँचे का निर्माण भी किया, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। उनके योगदानों ने कुमाऊं के इतिहास और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।

चंद राजवंश की स्थापना: सोमचंद इलाहाबाद के समीप झूंसी नामक स्थान के रहने वाले थे। ज्योतिषियों के कहने पर वे बद्रीनाथ की यात्रा पर आए थे, जहाँ उनका संपर्क तत्कालीन कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव से हुआ। ब्रह्मदेव ने सोमचंद से प्रभावित होकर अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया और दहेज में 15 बीघा जमीन दी। इस भूमि को केंद्र बनाकर सोमचंद ने चंपावती नदी के तट पर चंपावत को अपनी राजधानी बनाया और स्थानीय रावत राजा (खश राजा) को हराकर अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया। इस तरह, उन्होंने कुमाऊं में एक नए और प्रभावशाली वंश की शुरुआत की।

सुव्यवस्थित प्रशासनिक ढाँचे का गठन: सोमचंद का सबसे महत्वपूर्ण योगदान एक मजबूत प्रशासनिक प्रणाली का निर्माण था। उन्होंने राज्य की राजनीति को दो प्रमुख धड़ों, मेहरा (मल्लाधड़) और फर्त्याल (तल्लाधड़), में संगठित किया, जिन्हें उन्होंने क्रमशः मंत्री और सेनापति के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। इसके अलावा, उन्होंने राज्य की सुरक्षा के लिए कार्की, बोहरा, तड़ागी और चौधरी नामक चार किलेदार नियुक्त किए, जिन्हें ‘चार आल’ कहा जाता था। उन्होंने सुनानिधि चौबे को दीवान तथा अन्य ब्राह्मणों को पुरोहित और कारबारी जैसे पदों पर नियुक्त कर शासन को सुदृढ़ बनाया।

साम्राज्य का विस्तार और किलेबंदी: अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए सोमचंद ने चंपावत में कई रणनीतिक किलों का निर्माण कराया। इनमें सबसे प्रमुख राजबूंगा नामक किला था, जो उनके शासन का प्रतीक बना। ‘बुंगा’ का स्थानीय भाषा में अर्थ ‘किला’ होता है। अपने सेनापति कालू तड़ागी की सहायता से उन्होंने स्थानीय खश राजा को पराजित किया और आसपास के गाँवों पर अधिकार कर लिया, जिससे उनके राज्य का प्रारंभिक विस्तार हुआ। उन्होंने अपने शासन को स्थायित्व देने के लिए सैन्य और राजनीतिक शक्ति का सावधानीपूर्वक विस्तार किया।

सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान: सोमचंद का प्रभाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। उन्होंने कुमाऊं में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत की, जिसमें गाँवों के बूढ़ों व सयानों को प्रशासनिक अधिकार दिए गए। यह एक दूरगामी कदम था, जिसने स्थानीय शासन की नींव रखी। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि कुमाऊं की पारंपरिक लोक कला ऐंपण की शुरुआत भी सोमचंद के समय से हुई थी, जिसने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध किया।

निष्कर्ष:

सारांशतः, सोमचंद ने एक छोटे सामंत राजा के रूप में अपने शासन की शुरुआत की, लेकिन उन्होंने दूरदर्शिता के साथ चंद राजवंश की नींव रखी और कुमाऊं के लिए एक संगठित प्रशासनिक और सामाजिक ढाँचा तैयार किया। उनके द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक योगदानों ने सदियों तक शासन करने वाले राजवंश के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिनके प्रभाव आज भी कुमाऊं की पहचान में देखे जा सकते हैं।

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