प्रस्तावना:
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के इतिहास में चंद राजवंश का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसने लगभग 700 वर्षों तक शासन किया। इस राजवंश का इतिहास कई पुरातात्विक और साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है और इसका अध्ययन सर्वप्रथम एटकिंसन द्वारा किया गया था। इस राजवंश ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, बल्कि क्षेत्र की कला, संस्कृति और प्रशासन पर भी गहरा प्रभाव डाला।
स्थापना और शासनकाल: कत्यूरी वंश के बाद, 11वीं शताब्दी में सोमचंद ने चंद राजवंश की स्थापना की। यह राजवंश लगभग 700 वर्षों तक कुमाऊं क्षेत्र पर शासन करता रहा। इस दौरान सोमचंद, भारती चंद, ज्ञानचंद और रुद्रचंद जैसे कई महत्वपूर्ण शासकों ने राज्य का विस्तार किया और इसे एक संगठित रूप दिया। उनका शासन 1790 में गोरखाओं के आक्रमण तक जारी रहा, जिसने इस राजवंश का अंत कर दिया।
राजधानियाँ और सुव्यवस्थित प्रशासन: चंद राजाओं ने अपनी राजधानी कई बार बदली। उनकी प्रारंभिक राजधानी चंपावती नदी के किनारे बसी चंपावत थी। बाद में, बालो कल्याण चंद के समय में राजधानी को पूर्ण रूप से अल्मोड़ा स्थानांतरित कर दिया गया। उनकी ग्रीष्मकालीन राजधानी बिनसर थी। इस राजवंश ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन प्रणाली स्थापित की जिसमें एक व्यवस्थित कर प्रणाली, न्याय व्यवस्था और एक मजबूत सैन्य संगठन शामिल था। उनकी प्रशासनिक भाषा कुंमाऊनी थी और कुल देवी नंदा देवी थीं।
इतिहास के प्रमुख स्रोत: चंद राजवंश के इतिहास को जानने के लिए कई महत्वपूर्ण स्रोत उपलब्ध हैं। इनमें बालेश्वर मंदिर से प्राप्त क्राचल्लदेव का लेख और बास्ते जैसे विभिन्न स्थानों से मिले ताम्रपत्र, और बोधगया जैसे शिलालेख शामिल हैं। ये अभिलेख और ताम्रपत्र इस राजवंश के इतिहास की एक विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, अल्मोड़ा और सीरा से प्राप्त दो वंशावलियां भी इस इतिहास की जानकारी का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो राजाओं के क्रमबद्ध विवरण देती हैं।
पतन और दूरगामी प्रभाव: चंद राजवंश का पतन 1790 में नेपाल के गोरखा शासकों के आक्रमण से हुआ, जिसके कारण अंतिम शासक महेंद्र चंद को भागना पड़ा। हालाँकि, उनके शासनकाल के दूरगामी प्रभाव आज भी क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। उन्होंने एक मजबूत प्रशासनिक और सामाजिक ढाँचा विकसित किया जिसने बाद की शासन प्रणालियों को प्रभावित किया। उनके शासन में कला और संस्कृति का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ, जिसमें कई मंदिरों और महलों का निर्माण शामिल है, जो कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग हैं। इस तरह, चंद राजवंश ने कुमाऊं की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष:
चंद राजवंश का शासनकाल कुमाऊं के लिए राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक विकास का एक लंबा दौर था। यद्यपि इसका अंत एक बाहरी आक्रमण से हुआ, लेकिन इसके द्वारा स्थापित प्रशासनिक प्रणालियाँ और विकसित की गई कला व संस्कृति ने उत्तराखंड के इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी।