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चंद राजवंश का प्रशासन

प्रस्तावना:

चंद राजवंश का प्रशासन एक सुव्यवस्थित और विकेन्द्रीकृत प्रणाली पर आधारित था, जो राजा से लेकर गाँव स्तर तक फैली हुई थी। इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य सुशासन और राजस्व संग्रह सुनिश्चित करना था। दिल्ली सल्तनत और नेपाल के डोटी शासकों से प्रभावित होने के बावजूद, चंद्र प्रशासन ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखी। यह प्रणाली इतनी प्रभावी थी कि इसे टकिंसन जैसे ब्रिटिश लेखकों ने भी सराहा।

प्रशासनिक पदानुक्रम और अधिकारी: प्रशासन का शीर्ष राजा होता था, जिसकी सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल होता था। इसमें धार्मिक मामलों के लिए गुरु और पुरोहित, शाही परिवार के लिए महाराजकुमार और सेना के लिए दीवान (प्रधानमंत्री), बक्शी और फौजदार जैसे अधिकारी होते थे। प्रशासन को विभिन्न इकाइयों में बांटा गया था: राज्य को मंडलों में, मंडलों को परगनों में (प्रशासक: सिकदार), और परगनों को गांव या पट्टी में (प्रशासक: नेगी)। गांव का मुखिया सयाना या बुड्ढा होता था, जो न्याय का भी काम करता था।

स्थानीय शासन व्यवस्था: ग्राम स्तर पर प्रशासन बहुत मजबूत था। हर गांव में एक प्रधान होता था, जिसकी मदद के लिए एक कोटाल होता था। कोटाल लगान का हिसाब रखता था। इसके अलावा, एक पहरी (चौकीदार) होता था, जो चिट्ठियां ले जाता था और अनाज इकट्ठा करता था। इस स्थानीय व्यवस्था ने प्रशासन को लोगों के करीब लाया और रोजमर्रा के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने में मदद की।

राजस्व प्रणाली और भूमि प्रबंधन: राजा को राज्य की समस्त भूमि का स्वामी माना जाता था। राजस्व का मुख्य स्रोत भूमि कर था, जिसे उपज का कुछ हिस्सा (ऊपरी इलाकों में छठा हिस्सा) या नगद के रूप में लिया जाता था। इस प्रणाली में ‘छत्तीस रकम’ और ‘बत्तीस कलम’ जैसे 68 प्रकार के कर शामिल थे। व्यापार, खदानों, जंगलों और कानूनी कार्रवाइयों से भी आय होती थी। भूमिदान के तीन प्रकार थे: गुंठ, रौत, और संकल्प।

सामाजिक संरचना और आर्थिक जीवन: चंद काल में समाज में विभिन्न जातियां और व्यवसाय मौजूद थे। ब्राह्मण और ठाकुर जैसे वर्गों का सम्मान था, जबकि अहीर और चौहान जैसी किसान निचली जातियां मानी जाती थीं। आर्थिक रूप से राज्य समृद्ध था, जिसकी पुष्टि खदानों (तांबा, सीसा, लोहा) और व्यापार से होती थी। प्रशासन में गुप्तचरों का भी महत्वपूर्ण स्थान था, जिनमें वैश्याएं और राजवेद शामिल थे।

निष्कर्ष:

सारांशतः, चंद राजवंश का प्रशासन एक कुशल और प्रभावी शासन प्रणाली का उदाहरण था। राजा से लेकर गांव के अधिकारियों तक, हर स्तर पर जिम्मेदारियां तय थीं, जिसने राज्य को गोरखा और ब्रिटिश शासन के आगमन तक स्वतंत्र और समृद्ध बनाए रखा। इस व्यवस्था ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, बल्कि आर्थिक विकास और सामाजिक संतुलन को भी बनाए रखा।

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