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चन्द वंश और कुमाऊँ की कला, स्थापत्य व साहित्य पर प्रभाव

प्रस्तावना:

उत्तराखंड के इतिहास में चन्द वंश (11वीं–18वीं शताब्दी ई.) का विशेष स्थान है। कुमाऊँ क्षेत्र पर शासन करते हुए इस वंश ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, बल्कि कला, स्थापत्य और साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। मध्यकालीन अवधि में कुमाऊँ की सांस्कृतिक धारा को दिशा देने में चन्द शासकों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही।

कला और शिल्प के संरक्षक: चन्द शासकों ने कुमाऊँ की पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षण दिया। सोने-चाँदी के आभूषण, लकड़ी की नक्काशी और धातु शिल्पकला इस काल में विशेष रूप से विकसित हुई। राजदरबार में चित्रकला और मूर्तिकला को प्रोत्साहन मिला। लोककला और लोकनृत्य भी राजकीय संरक्षण से फले-फूले, जिनकी झलक आज भी कुमाऊँनी संस्कृति में स्पष्ट दिखाई देती है।

स्थापत्य और मंदिर निर्माण: चन्द शासकों ने अनेक मंदिरों और स्थापत्य धरोहरों का निर्माण कराया। बागनाथ मंदिर (बागेश्वर), गोल्ज्यू देवता मंदिर (चंपावत) तथा नैनीताल और अल्मोड़ा क्षेत्र के कई मंदिर उनकी स्थापत्य कला के प्रमाण हैं। इन मंदिरों की स्थापत्य शैली में स्थानीय शिल्पकला और नागर शैली का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। पत्थर और लकड़ी पर की गई बारीक नक्काशी आज भी इन मंदिरों को अद्वितीय बनाती है।

साहित्यिक उन्नति और भाषा का विकास: चन्द राजाओं के संरक्षण में कुमाऊँ क्षेत्र में साहित्यिक गतिविधियों को विशेष प्रोत्साहन मिला। संस्कृत और कुमाऊँनी भाषा दोनों का विकास हुआ। राजदरबार में कवियों और विद्वानों को संरक्षण मिला। लोकगीत, लोककथाएँ और कुमाऊँनी लोकभाषा में रचित काव्य इस काल में लोकप्रिय हुए। इस प्रकार चन्द शासकों ने साहित्य और लोकसाहित्य दोनों को प्रोत्साहित किया।

धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान: चन्द वंश ने धार्मिक अनुष्ठानों, मेलों और उत्सवों को राजकीय संरक्षण दिया। नंदा देवी मेला और कत्यूर घाटी में आयोजित धार्मिक आयोजनों को नई पहचान मिली। इन मेलों और पर्वों ने कुमाऊँ की सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया। साथ ही चन्द शासकों के संरक्षण में लोकसंगीत और नृत्य परंपराएँ भी समृद्ध हुईं।

दीर्घकालिक प्रभाव: चन्द वंश की कला, स्थापत्य और साहित्यिक परंपरा ने कुमाऊँ क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को स्थायी रूप से प्रभावित किया। उनके द्वारा निर्मित मंदिर, संरक्षित कला रूप और प्रोत्साहित साहित्य आज भी जीवंत हैं। इस वंश के संरक्षण ने कुमाऊँ को एक विशिष्ट सांस्कृतिक स्वरूप प्रदान किया, जो उत्तराखंड की धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

निष्कर्ष:

सारांशतः, चन्द वंश ने मध्यकालीन कुमाऊँ की कला, स्थापत्य और साहित्य को नई ऊँचाई प्रदान की। उनके संरक्षण में मंदिर निर्माण, लोककला, शिल्पकला और साहित्यिक गतिविधियों ने अभूतपूर्व प्रगति की। चन्द वंश के योगदान ने कुमाऊँ की सांस्कृतिक धारा को समृद्ध किया और आज भी उनके अवशेष क्षेत्र की पहचान बने हुए हैं। इस प्रकार चन्द शासकों का काल उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास का उज्ज्वल अध्याय माना जाता है।

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