प्रस्तावना:
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में चंद राजवंश का इतिहास एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसकी जानकारी हमें विभिन्न पुरातात्विक, साहित्यिक और लोकगाथाओं से मिलती है। ये स्रोत न केवल राजाओं के कालक्रम का विवरण देते हैं, बल्कि उनके शासन, प्रशासन, सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति पर भी प्रकाश डालते हैं। एटकिंसन ने सर्वप्रथम इस इतिहास को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया, जिसके बाद अन्य लेखकों ने उन्हीं के कार्यों को आधार बनाया।
पुरातात्विक स्रोत (ताम्रपत्र और शिलालेख): चंद राजवंश के इतिहास को जानने समझने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत पुरातात्विक अभिलेख हैं, जिनमें ताम्रपत्र और शिलालेख प्रमुख हैं। इन अभिलेखों में राजाओं द्वारा भूमि दान, आदेश और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन मिलता है। उदाहरण के लिए, बास्ते ताम्रपत्र (पिथौरागढ़) में आनंदपाल का विवरण और मांडलिक राजाओं की सूची मिलती है। गोपेश्वर त्रिशूल लेख और बालेश्वर मंदिर का लेख (क्राचल्लदेव) भी इस राजवंश की जानकारी देते हैं। इसके अतिरिक्त, गड्यूड़ा ताम्रपत्र (चंपावत) और पाभै ताम्रपत्र (विजयचंद द्वारा) जैसे कई अन्य ताम्रपत्र भी उनके शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं।
साहित्यिक स्रोत: पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ-साथ, कुछ साहित्यिक ग्रंथ भी चंद राजवंश के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। हालाँकि ये स्रोत सीधे तौर पर चंद राजाओं पर केंद्रित नहीं हैं, फिर भी ये उनके शासनकाल की घटनाओं और समकालीन राजनीतिक स्थिति को समझने में मदद करते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वंशवालियाँ हैं, जो अल्मोड़ा और सीरा से प्राप्त हुई हैं। ये वंशावलियाँ राजाओं के नाम, उनके क्रम और कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण देती हैं।
लोकगाथाएं और किंवदंतियाँ: कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित लोकगाथाएं और किंवदंतियाँ भी चंद राजवंश के इतिहास को जीवित रखती हैं। इन मौखिक परंपराओं में राजाओं की वीरता, उनके न्याय और उनके शासनकाल के सामाजिक जीवन की कहानियाँ मिलती हैं। यद्यपि इन गाथाओं में ऐतिहासिक सटीकता की कमी हो सकती है, फिर भी ये तत्कालीन समाज की धारणाओं, मूल्यों और राजाओं के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को समझने में सहायक होती हैं।
बाहरी शासकों के अभिलेख: कुछ बाहरी शासकों के अभिलेख भी चंद राजवंश के इतिहास से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, बोधगया शिलालेख और मल्ल के ताम्रपत्र जैसे स्रोत भी इस राजवंश के बारे में जानकारी देते हैं, जो उनकी समकालीन शक्तियों के साथ संबंधों को दर्शाते हैं। ये स्रोत चंद राजाओं के बाहरी संबंधों और उनकी राजनीतिक पहुँच को समझने में मदद करते हैं, जिससे उनके इतिहास की एक विस्तृत चित्रण होता है।
निष्कर्ष:
चंद राजवंश के इतिहास का अध्ययन विभिन्न प्रकार के स्रोतों पर निर्भर करता है। ताम्रपत्र और शिलालेख जैसे पुरातात्विक साक्ष्य सबसे विश्वसनीय जानकारी प्रदान करते हैं, जबकि साहित्यिक और लोकगाथाएं इस इतिहास को और समृद्ध करती हैं। इन सभी स्रोतों के संयोजन से हमें कुमाऊं में लगभग 700 वर्षों तक शासन करने वाले इस महत्वपूर्ण राजवंश की एक विस्तृत और बहुआयामी तस्वीर मिलती है।