परिचय
हिमालय पर्वत श्रृंखला, जिसे अक्सर “एशिया का जल मीनार” कहा जाता है, पृथ्वी पर सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं में से एक है। यह अपनी अद्वितीय प्राकृतिक पर्यावरण, समृद्ध जैव विविधता और अनमोल पारिस्थितिक सेवाओं के लिए जाना जाता है, जो करोड़ों लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करती हैं। अपनी विशालता और महत्व के बावजूद, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान में कई गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं का सामना कर रहा है। मानवीय गतिविधियों, अनियोजित विकास और जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभावों ने इस नाजुक क्षेत्र पर भारी दबाव डाला है, जिससे इसकी पारिस्थितिक अखंडता, प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय समुदायों की आजीविका को खतरा है। इन समस्याओं को समझना और उनके समाधान के लिए तत्काल कदम उठाना इस अमूल्य प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
हिमालयी क्षेत्र की प्रमुख पर्यावरणीय समस्याएँ:
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: हिमालय जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों के प्रवाह में अनियमितता आ रही है (पहले वृद्धि, फिर कमी)। यह जल सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। इसके अतिरिक्त, वर्षा के प्रतिरूप (पैटर्न) में बदलाव, चरम मौसमी घटनाओं (जैसे अचानक बाढ़, भूस्खलन) की बढ़ती आवृत्ति, और वृक्ष रेखा का ऊपर की ओर खिसकना इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
वनों की कटाई और वन क्षरण: बढ़ती जनसंख्या, कृषि विस्तार, बुनियादी ढाँचे के विकास (सड़कें, जलविद्युत परियोजनाएँ), अवैध कटाई और जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता के कारण हिमालय में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और वन क्षरण हो रहा है। वनों का यह नुकसान न केवल जैव विविधता को सीधे प्रभावित करता है, बल्कि मिट्टी के कटाव को बढ़ाता है, जिससे भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
जैव विविधता का नुकसान: हिमालय एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जो पौधों और जानवरों की कई स्थानिक और लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है। वनों की कटाई, पर्यावास का नुकसान, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अवैध शिकार के कारण इस क्षेत्र की अद्वितीय जैव विविधता तेजी से घट रही है। कई प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास खो रही हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।
मिट्टी का कटाव और भूस्खलन: हिमालय की युवा और अस्थिर भूवैज्ञानिक संरचना, खड़ी ढलानें, और अत्यधिक वर्षा इसे मिट्टी के कटाव और भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं। वनों की कटाई, अनियोजित निर्माण गतिविधियाँ और खनन इन समस्याओं को और बढ़ा देते हैं, जिससे जान-माल का नुकसान होता है और कृषि भूमि तथा बुनियादी ढाँचा प्रभावित होता है।
जल प्रदूषण और जल संकट: हिमालयी नदियाँ और जल स्रोत प्रदूषण के बढ़ते स्तर का सामना कर रहे हैं। शहरीकरण, पर्यटन, कृषि अपवाह और औद्योगिक कचरा नदियों और झीलों को प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे पीने के पानी की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। ग्लेशियरों के पिघलने से दीर्घकालिक जल संकट का खतरा भी बढ़ रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जो इन जल स्रोतों पर निर्भर करते हैं।
अनियोजित शहरीकरण और बुनियादी ढाँचा विकास: हिमालयी क्षेत्रों में अनियोजित शहरीकरण और पर्यटन से संबंधित बुनियादी ढाँचे का तेजी से विकास हो रहा है। यह अक्सर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करके किया जाता है, जिससे वनों का अतिक्रमण, अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि, और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों में व्यवधान होता है। यह विकास क्षेत्र की वहन क्षमता से अधिक है।
अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या: पर्यटन और शहरीकरण के बढ़ने से हिमालयी क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट की मात्रा में भारी वृद्धि हुई है। उचित अपशिष्ट संग्रह, डिस्पोजल और रीसाइक्लिंग सुविधाओं की कमी के कारण, कचरा खुले में फेंका जाता है, जिससे भूमि और जल प्रदूषण होता है। प्लास्टिक कचरा विशेष रूप से एक बड़ी चुनौती है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष: मानव बस्तियों के विस्तार, वन क्षेत्रों के सिकुड़ने और वन्यजीवों के आवासों के विखंडन के कारण मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। वन्यजीव भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे फसलों को नुकसान, पशुधन पर हमला और कभी-कभी मानव जीवन का भी नुकसान होता है।
अत्यधिक चराई और वनस्पति क्षरण: कुछ हिमालयी क्षेत्रों में पशुधन द्वारा अत्यधिक चराई के कारण अल्पाइन घास के मैदानों और अन्य संवेदनशील वनस्पतियों का क्षरण हो रहा है। यह मिट्टी की संरचना को कमजोर करता है, जिससे कटाव का खतरा बढ़ता है और पौधों के पुनरुत्पादन की क्षमता कम हो जाती है।
खनन और भूवैज्ञानिक अस्थिरता: हिमालयी क्षेत्र में खनन गतिविधियाँ (जैसे रेत, पत्थर और अन्य खनिजों का खनन) भूवैज्ञानिक अस्थिरता को बढ़ाती हैं। यह न केवल प्राकृतिक परिदृश्य को नष्ट करता है, बल्कि भूस्खलन और मिट्टी के धंसने की घटनाओं को भी ट्रिगर कर सकता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान होता है।
निष्कर्ष
हिमालय में पर्यावरणीय समस्याएँ जटिल और परस्पर जुड़ी हुई हैं, जो इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन और लाखों लोगों के जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लेकर अनियोजित विकास और प्रदूषण तक, हर चुनौती को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए एक समग्र, एकीकृत और सतत दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, सख्त पर्यावरणीय नियमों को लागू करना, सतत पर्यटन को बढ़ावा देना, स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना, और पारिस्थितिक पुनरुद्धार परियोजनाओं को प्राथमिकता देना शामिल है। हिमालय का संरक्षण केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह वैश्विक पारिस्थितिक स्थिरता और मानव कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर;
प्रश्न 1. हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कौन-कौन से प्रभाव देखे जा रहे हैं?
- ग्लेशियरों का तीव्र पिघलना
- वर्षा के प्रतिरूप (pattern) में बदलाव
- चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) की आवृत्ति में वृद्धि
- उपरोक्त सभी
उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, वर्षा के प्रतिरूप में बदलाव आ रहा है तथा अचानक बाढ़, भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाएँ अधिक बार घटित हो रही हैं। ये प्रभाव पारिस्थितिक तंत्र और जल सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
प्रश्न 2. हिमालय में वनों की कटाई और वन क्षरण के प्रमुख कारण क्या हैं?
- अवैध कटाई और जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता
- सड़क निर्माण और जलविद्युत परियोजनाएँ
- कृषि विस्तार और जनसंख्या वृद्धि
- उपरोक्त सभी
उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: हिमालय में वनों की कटाई के पीछे कई मानवीय गतिविधियाँ जिम्मेदार हैं। अवैध कटाई, जलाऊ लकड़ी की निर्भरता, सड़क निर्माण, जलविद्युत परियोजनाएँ, और कृषि विस्तार जैसी गतिविधियाँ वनों के क्षेत्रफल को घटा रही हैं, जिससे जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
प्रश्न 3. हिमालयी क्षेत्र में जल संकट और जल प्रदूषण के क्या-क्या प्रमुख कारण हैं?
- शहरीकरण और पर्यटन से उत्पन्न अपशिष्ट
- कृषि अपवाह और औद्योगिक कचरा
- ग्लेशियरों का पिघलना
- उपरोक्त सभी
उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: हिमालयी नदियाँ शहरीकरण, पर्यटन, कृषि अपवाह और औद्योगिक कचरे से प्रदूषित हो रही हैं। इसके अलावा, ग्लेशियरों के पिघलने से दीर्घकालिक जल संकट की आशंका बढ़ गई है। ये सभी कारण जल गुणवत्ता और जल उपलब्धता दोनों को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे मानव जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 4. हिमालय में मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ने के कौन-कौन से प्रमुख कारण हैं?
- वन क्षेत्रों का सिकुड़ना और आवासों का विखंडन
- मानव बस्तियों का विस्तार
- वन्यजीवों का भोजन और पानी की तलाश में बस्तियों की ओर आना
- उपरोक्त सभी
उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: वन क्षेत्रों के सिकुड़ने, आवास विखंडन, और मानव बस्तियों के विस्तार के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास बाधित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन भी भोजन और पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है, जिससे वन्यजीव मानव बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं और संघर्ष की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
प्रश्न 5. हिमालय में खनन गतिविधियाँ किस प्रकार पारिस्थितिक अस्थिरता को बढ़ावा देती हैं?
- प्राकृतिक परिदृश्य और भू-संरचना को नुकसान
- भूस्खलन और मिट्टी के धंसने की घटनाओं में वृद्धि
- पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) को गंभीर क्षति
- उपरोक्त सभी
उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: खनन गतिविधियाँ हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। इससे न केवल प्राकृतिक परिदृश्य और भू-संरचना को क्षति पहुँचती है, बल्कि भूस्खलन, मिट्टी धंसने की घटनाएँ भी बढ़ जाती हैं। यह पारिस्थितिक असंतुलन को और गंभीर बना देता है।
कारण (Reason) और कथन (Assertion) आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कथन (A): हिमालय को “एशिया का जल मीनार” कहा जाता है।
कारण (R): हिमालय एशिया की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है और करोड़ों लोगों की जल आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: हिमालय को “एशिया का जल मीनार” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों का स्रोत है। यह करोड़ों लोगों की जलापूर्ति करता है। कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 2.
कथन (A): हिमालय में वनों की कटाई के कारण भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
कारण (R): वनस्पति की जड़ें मिट्टी को पकड़ कर रखती हैं और वनों के कटने से ढलानों की स्थिरता घटती है।
उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: वनों की कटाई से मिट्टी की पकड़ ढीली हो जाती है, जिससे ढलान अस्थिर हो जाते हैं और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं। वनस्पति ढलानों की स्थिरता बनाए रखने में सहायक होती है। अतः कारण कथन की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 3.
कथन (A): हिमालय में पर्यटन और शहरीकरण के कारण जल प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है।
कारण (R): पर्यटन और शहरीकरण के चलते उत्पन्न अपशिष्टों के उचित प्रबंधन की व्यवस्था हिमालयी क्षेत्रों में नहीं है।
उत्तर: a. कथन और कारण दोनों सत्य हैं तथा कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन की अव्यवस्था के कारण कचरा खुले में फेंका जाता है, जिससे जल स्रोत प्रदूषित होते हैं। पर्यटन और शहरीकरण से उत्पन्न अपशिष्टों का सीधा संबंध जल प्रदूषण से है। कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 4.
कथन (A): हिमालय में जैव विविधता का ह्रास तेजी से हो रहा है।
कारण (R): वनों की कटाई, अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन हिमालयी जैव विविधता को प्रभावित कर रहे हैं।
उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: हिमालय एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, परंतु वनों की कटाई, शिकार और जलवायु परिवर्तन के कारण कई प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास खो रही हैं। कारण, कथन की सही व्याख्या करता है क्योंकि यही जैव विविधता ह्रास के मूल कारण हैं।
प्रश्न 5.
कथन (A): हिमालय में अनियोजित शहरीकरण क्षेत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity) पर दबाव डाल रहा है।
कारण (R): बुनियादी ढाँचे का निर्माण प्रायः पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करके किया जाता है, जिससे वनों का अतिक्रमण होता है।
उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता सीमित है, और अनियोजित शहरीकरण वनों के अतिक्रमण के माध्यम से इस सीमा को पार कर रहा है। पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी से पारिस्थितिक असंतुलन बढ़ रहा है। इसलिए कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।