परिचय
तीलू रौतेली उत्तराखंड की वह अमर वीरांगना हैं, जिन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में अपने परिवार की शहादत के बाद भी हार नहीं मानी और कत्यूरी आक्रमणकारियों के खिलाफ अदम्य साहस का परिचय दिया। उनका जीवन नारी शक्ति, संकल्प और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक है। गढ़वाल के इतिहास में उन्हें ‘झांसी की रानी’ के समान सम्मान दिया जाता है। आज भी उनकी वीरगाथा उत्तराखंड की धरोहर है और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।
तीलू रौतेली का जीवन एवं संघर्ष
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन: तीलू रौतेली का जन्म 17वीं शताब्दी में पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट में हुआ था। उनका वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था। उनके पिता भूपसिंह रावत गढ़वाल के सेनापति थे, और परिवार वीर योद्धा परंपरा का हिस्सा था, जिससे उन्हें युद्ध-कौशल की प्रारंभिक शिक्षा मिली।
परिवार की शहादत और प्रतिशोध की प्रतिज्ञा: 17वीं शताब्दी में कत्यूरी राजा धामशाही ने खैरागढ़ पर आक्रमण किया। इस युद्ध में तीलू के पिता, दोनों भाई और मंगेतर शहीद हो गए। इस घटना ने तीलू को झकझोर दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाजी और गुरिल्ला युद्ध में महारत हासिल की। अपने आत्मसम्मान की रक्षा और प्रतिशोध के लिए उन्होंने कत्यूरियों से बदला लेने की ठानी।
युद्ध कौशल और विजय अभियान: तीलू रौतेली ने अपनी दो सहेलियों बेल्लू और रक्की के साथ सेना बनाया और खैरागढ़, उमटा गढ़ी, सल्ड महादेव और चौखुटिया जैसे किलों को जीतकर अपने क्षेत्र को कत्यूर शासकों से मुक्त कराया। इस क्रम में उन्होंने 13 किलों पर विजय प्राप्त की। उनकी सबसे बड़ी जीत कालिंकाखाल में हुई, जहाँ उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया। उनका युद्ध कौशल और रणनीति आज भी प्रशंसनीय है।
अंतिम युद्ध और बलिदान: 1683 में, अपने अंतिम युद्ध के बाद जब तीलू नयार नदी के किनारे स्नान कर रही थीं, तभी एक कत्यूरी सैनिक रामू रजवार ने धोखे से उन पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू वीरगति को प्राप्त हुईं, लेकिन उनकी शहादत ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी वीरता और संघर्ष की कहानी आज भी उत्तराखंड में स्मरण की जाती है।
विरासत और स्मृति: अपने साहस और बलिदान के लिए प्रसिद्ध, तीलू रौतेली की वीरता और वीरगाथा आज भी उत्तराखंड में प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी प्रतिमा पूरे क्षेत्र में स्थापित है। उनकी वीरता को सम्मानित करने के लिए हर वर्ष कांडा गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है। उनके नाम पर पुरस्कार और सम्मान दिए जाते हैं। तीलू रौतेली का जीवन हमें नारी शक्ति, साहस और बलिदान का प्रेरक उदाहरण है, जो पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
निष्कर्ष
तीलू रौतेली का जीवन उत्तराखंड की नारी शक्ति और बलिदान का अनुपम उदाहरण है। मात्र 15 वर्ष की आयु में उन्होंने जिस साहस और शौर्य का परिचय दिया, वह विश्व इतिहास में अद्वितीय है। उनकी गाथा दृढ़ इच्छाशक्ति और मातृभूमि के प्रति प्रेम किसी भी चुनौती का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: तीलू रौतेली का जन्म कहाँ हुआ था?
- नैनीताल
- चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल
- अल्मोड़ा
- देहरादून
उत्तर: b. चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल
व्याख्या: तीलू रौतेली का जन्म 17वीं शताब्दी में पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट परगने के गुरड़ तल्ला गाँव में हुआ था। वह गढ़वाल साम्राज्य की एक वीरांगना थीं।
प्रश्न 2: तीलू रौतेली के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
- तीलू का जन्म अल्मोड़ा जिले में हुआ था।
- तीलू ने 15 से 22 वर्ष की आयु के बीच सात युद्ध लड़े।
- तीलू ने कालिंकाखाल के युद्ध में अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया।
- तीलू की मृत्यु नयार नदी के पास धोखे से हुए हमले में हुई।
उत्तर: a. तीलू का जन्म अल्मोड़ा जिले में हुआ था।
व्याख्या: तीलू रौतेली का जन्म पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट में हुआ था, न कि अल्मोड़ा में। अन्य सभी विकल्प सही हैं: उन्होंने 7 युद्ध लड़े, कालिंकाखाल में बदला लिया, और नयार नदी के पास धोखे से मारी गईं।
प्रश्न 3: तीलू रौतेली के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
- उन्होंने 15 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा।
- वे गढ़वाल की ‘झांसी की रानी’ कहलाती थीं।
- उनका विवाह भवानी नेगी से हुआ था।
- उन्होंने 13 गढ़ों पर विजय प्राप्त की।
उत्तर: c. उनका विवाह भवानी नेगी से हुआ था।
व्याख्या: तीलू की सगाई भवानी नेगी से हुई थी, लेकिन विवाह से पहले ही वे युद्ध में शहीद हो गए। तीलू ने आजीवन विवाह नहीं किया।
प्रश्न 4: तीलू रौतेली के संबंध में कौन-सा तथ्य असत्य है?
- उन्होंने 7 वर्षों में 13 किलों पर विजय प्राप्त की।
- उनके पिता भूप सिंह गोर्ला चौंदकोट के थोकदार थे।
- उन्होंने खैरागढ़ को कत्यूरियों से मुक्त कराया।
- उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा।
उत्तर: d. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध
व्याख्या: तीलू ने कत्यूरी आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध लड़ा, अंग्रेजों के खिलाफ नहीं।
प्रश्न 5: तीलू रौतेली को उत्तराखंड सरकार किस पुरस्कार से सम्मानित करती है?
- नंदा देवी पुरस्कार
- तीलू रौतेली पुरस्कार
- वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पुरस्कार
- उत्तरायणी पुरस्कार
उत्तर: b. तीलू रौतेली पुरस्कार
व्याख्या: उत्तराखंड सरकार प्रतिवर्ष उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित करती है, जो साहस और नेतृत्व को प्रोत्साहित करता है।
कारण एवं अभिकथन प्रकार के प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में अभिकथन और कारण का विश्लेषण करके सही उत्तर चुनना है।
प्रश्न 1:
अभिकथन (A): तीलू रौतेली ने कालिंकाखाल के युद्ध में कत्यूरी सेनापति को हराकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया।
कारण (R): कालिंकाखाल वह स्थान था जहाँ तीलू के पिता भूप सिंह रावत कत्यूरी सेना द्वारा मारे गए थे।
विकल्प:
- (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या करता है।
- (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
- (A) सही है, परन्तु (R) गलत है।
- (A) गलत है, परन्तु (R) सही है।
उत्तर: a. (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: तीलू ने कालिंकाखाल के युद्ध में अपने पिता के हत्यारे कत्यूरी सेनापति को पराजित किया, जिससे (A) सत्य है। चूँकि यही वह स्थान था जहाँ उनके पिता मारे गए थे, (R) भी सही है और यह (A. का सही कारण बताता है।
प्रश्न 2:
अभिकथन (A): तीलू रौतेली को उत्तराखंड सरकार द्वारा एक पुरस्कार दिया जाता है।
कारण (R): यह पुरस्कार उन महिलाओं को दिया जाता है जो साहस और नेतृत्व का परिचय देती हैं।
विकल्प:
- (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या करता है।
- (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
- (A) सही है, परन्तु (R) गलत है।
- (A) गलत है, परन्तु (R) सही है।
उत्तर: a. (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: उत्तराखंड सरकार तीलू रौतेली पुरस्कार देती है (A), जो साहसी और नेतृत्व क्षमता वाली महिलाओं को दिया जाता है (R)। अतः (R), (A) का सही कारण है।