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उत्तराखंड में पर्यावरणीय मुद्दे और संरक्षण प्रयास

परिचय   

उत्तराखंड, भारत के हिमालयी क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य है, जो अपने अद्वितीय जैव विविधता, सुरम्य परिदृश्यों और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। यह राज्य न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि इसकी प्राकृतिक विशेषताएँ भी इसे पर्यटकों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बनाती हैं। हालाँकि, तेजी से हो रही शहरीकरण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, और अव्यवस्थित पर्यटन ने उत्तराखंड के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस प्रकार की चुनौतियों से निपटने के लिए कई संरक्षण प्रयास किए जा रहे हैं, जो सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं।

उत्तराखंड में  मुख्य पर्यावरणीय मुद्दे

वनों की कटाई और आवास हानि : वनों की कटाई एक गंभीर समस्या है जो उत्तराखंड में कई पर्यावरणीय समस्याओं का मूल कारण बनी हुई है। 

कारण

कृषि और मानव बस्तियों का विस्तार : राज्य में कृषि भूमि की आवश्यकता के कारण जंगलों की कटाई की जा रही है। 

अवसंरचना विकास : सड़कों, जलविद्युत परियोजनाओं, और शहरी विकास के लिए वनों को साफ किया जा रहा है। 

अवैध लकड़ी कटाई और अत्यधिक चराई: अवैध लकड़ी कटाई और अपने मवेशियों के लिए जंगल से लकड़ी और चारा प्राप्त करना। 

प्रभाव

वनों की कटाई से जैव विविधता का नुकसान होता है, जिससे कई वन्य जीवों का आवास समाप्त हो रहा है। 

मृदा कटाव और भू-स्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रही हैं। 

उदाहरण : चारधाम हाईवे परियोजना के तहत वनस्पति की कटाई ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं। यह परियोजना, जो चार धार्मिक स्थलों को जोड़ती है, वनों की कटाई से उत्पन्न होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को नजरअंदाज करती है।

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग 

जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड की पारिस्थितिकी और मानव जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। 

कारण  

औद्योगिककरण और वाहन प्रदूषण के कारण कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि। 

वनों की कटाई से कार्बन का अवशोषण कम हुआ है। 

अव्यवस्थित पर्यटन के कारण अपशिष्ट और प्रदूषण में वृद्धि। 

प्रभाव  

ग्लेशियरों का पिघलना, जैसे गंगोत्री और पिंडारी, नदियों के प्रवाह में परिवर्तन का कारण बन रहा है। 

मौसम के अनियमित पैटर्न, जैसे असामयिक वर्षा और सूखा, कृषि और जल उपलब्धता को प्रभावित कर रहे हैं। 

उदाहरण :  2013 की केदारनाथ आपदा भारी बारिश और ग्लेशियर टूटने के कारण बढ़ाई गई, जो जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हुई। यह आपदा हजारों लोगों की जान लेने के साथ-साथ बड़ी मात्रा में संपत्ति के नुकसान का कारण बनी।

भूमिस्खलन और मिट्टी का कटाव

उत्तराखंड की पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि-स्खलन और मिट्टी का कटाव एक महत्वपूर्ण समस्या है। 

कारण

अनियोजित निर्माण और वनों की कटाई, जो पहाड़ी ढलानों को कमजोर बनाती हैं। 

मानसून की भारी बारिश, जो मिट्टी को ढीला कर देती है।   

अनियंत्रित खनन और सड़क निर्माण जो प्राकृतिक परिदृश्यों को तोड़ता है। 

प्रभाव 

घरों और बुनियादी ढांचे का विनाश होता है, जिससे स्थानीय समुदायों का जीवन प्रभावित होता है। 

नदियों के चैनल में रुकावटें आ जाती हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ता है। 

उदाहरण :  जोशीमठ और बद्रीनाथ जैसे क्षेत्रों में लगातार हो रहे भूस्खलन स्थानीय समुदायों और तीर्थयात्रियों के लिए खतरा बन गए हैं।

जल प्रदूषण और जल संकट   

 जल प्रदूषण और जल संकट  एक और गंभीर चुनौती है जिससे उत्तराखंड जूझ रहा है। 

कारण 

औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट नदियों में प्रवाहित होना। 

कृषि और शहरी उपयोग के लिए भूमिगत जल का अत्यधिक अवशोषण। 

प्रभाव  

प्रमुख नदियों जैसे गंगा और यमुना का प्रदूषण मानव जीवन और जलीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। 

जल जनित रोगों का उद्भव होता है। 

उदाहरण : ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा नदी का प्रदूषण पर्यटन और औद्योगिक अपशिष्ट के कारण बढ़ रहा है, जो स्थानीय स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रहा है।

अव्‍यवस्थित पर्यटन और कचरे का प्रबंधन

उत्तराखंड में पर्यटन की वृद्धि ने कई पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न की हैं। 

कारण

तीर्थ स्थलों जैसे केदारनाथ, बद्रीनाथ, और फूलों की घाटी में उच्च संख्या में आगंतुकों की आवाजाही। 

उचित कचरा प्रबंधन प्रणाली का अभाव। 

प्रभाव 

ईको-सेंसिटिव जोनों में प्लास्टिक कचरे का जमा होना। 

स्थानीय जल और प्रकृतिक संसाधनों पर दबाव। 

उदाहरण : नैनीताल और मसूरी के आस-पास बढ़ती हुई कचरा समस्या नियंत्रित पर्यटन के अभाव में एक गंभीर चिंता बन गई है।

उत्तराखंड में संरक्षण प्रयास

वृक्षारोपण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रम

उत्तराखंड में वनों की कटाई के प्रभावों से निपटने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं। 

वन पंचायतें : ये समुदाय-आधारित वन प्रबंधन पहलों के तहत कार्य कर रही हैं, जहाँ स्थानीय ग्रामीण वनों की रक्षा और पुनर्स्थापना करते हैं। 

चिपको आंदोलन : यह एक ऐतिहासिक आंदोलन है जिसमें ग्रामीणों ने पेड़ों की रक्षा के लिए उन्हें गले लगाया। 

उदाहरण : हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (HARC) वनों के विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल है, जिससे जनसंवेदनशीलता और प्राकृतिक संतुलन को सुनिश्चित किया जा सके।

जंगली जीवों का संरक्षण और संरक्षित क्षेत्र 

उत्तराखंड में कई राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों में जैव विविधता की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए गए हैं। 

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान : भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक, यह बंगाल टाइगर और हाथियों का आश्रय है। 

नंदा देवी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र : यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल अद्वितीय जैव विविधता का संरक्षण करता है। 

उदाहरण : राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण प्रयासों ने हाथियों की जनसंख्या को पुनर्जीवित करने और शिकार को नियंत्रित करने में मदद की है।

सतत पर्यटन के प्रयास

उत्तराखंड में पर्यटन को स्थायी बनाने के लिए कई पहल की गई हैं। 

इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट : जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ट्रैकिंग, कचरा प्रबंधन, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी को प्राथमिकता दी जा रही है। 

प्लास्टिक बैन : कुछ क्षेत्रों में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया है। 

उदाहरण : उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने प्रकृति की सुंदरता के संरक्षण के लिए ईको-टूरिज्म दिशा-निर्देश प्रस्तुत किए हैं।

आपातकालीन प्रबंधन और जलवायु स्थिरता

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए कई प्रौद्योगिकीय साधनों और सामुदायिक पहलों की शुरूआत की गई है। 

पूर्व चेतावनी प्रणाली : भूमि-स्खलन और बाढ़ के खतरे को पहचानने के लिए उपग्रह आधारित निगरानी प्रणाली का उपयोग। 

समुदाय जागरूकता कार्यक्रम :  स्थानीय समुदायों को आपदा पूर्व तैयारी और स्थायी प्रथाओं में प्रशिक्षित करना। 

उदाहरण : राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) स्थानीय ग्रामीणों को आपातकालीन तैयारी और बचाव ऑपरेशनों में प्रशिक्षण देता है।

जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन

जल संरक्षण और नदी के पुनर्जन्म के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाई गई हैं। 

नमामी गंगे परियोजना : गंगा नदी की सफाई और पुनर्जीवन के लिए एक प्रमुख कार्यक्रम। 

वर्षा जल संचयन : ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। 

उदाहरण : देहरादून में रिस्पना और बिंदाल नदियों का पुनर्स्थापन, सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से एक सफल मॉडल प्रस्तुत करता है। 

निष्कर्ष 

उत्तराखंड एक सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र से संपन्न है, लेकिन विभिन्न मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। हालाँकि, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, जल प्रदूषण और अव्यवस्थित पर्यटन जैसे मुद्दों की जटिलता को निपटने के लिए कई संरक्षण प्रयासों ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। वृक्षारोपण, जंगली जीवों की सुरक्षा, सतत पर्यटन, आपातकालीन प्रबंधन, और जल संरक्षण जैसे उपाय इन चुनौतियों से निपटने में सहायक हो रहे हैं।

सामाजिक जागरूकता, सरकारी पहलों, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ मिलकर, उत्तराखंड अपने प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करते हुए सतत विकास की ओर अग्रसर हो सकता है। यह सुनिश्चित करना कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस अद्भुत प्राकृतिक सम्पदा का उपभोग कर सकें, हम सभी की जिम्मेदारी है।

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