परिचय
उत्तराखण्ड अपनी सांस्कृतिक विविधता और लोक कला के लिए प्रसिद्ध है। देव भूमि होने के कारण इस राज्य की जमीन पर देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्रपट है। यहाँ की संस्कृति में धार्मिकता, नृत्य और संगीत का विशेष स्थान है। लोकनृत्य न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि ये समाज की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आत्मा का भी प्रतिबिंब प्रस्तुत करते हैं।
धार्मिक लोकनृत्य
उत्तराखण्ड में नृत्य का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य धार्मिक श्रद्धा है। लोग नियमित रूप से अपने स्थानीय देवताओं की पूजा में विभिन्न नृत्यों का आयोजन करते हैं। यहाँ धार्मिक लोकनृत्यों की एक समृद्ध परंपरा है।
देवताओं की पूजा
उत्तराखण्ड की संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा के लिए विशेष नृत्य किए जाते हैं। जैसे नागर्जा, निरंकार, नंदा, रंगनाथ आदि देवी-देवताओं का महत्व क्षेत्रीय संस्कृति में गहराई से जुड़ा हुआ है। ये नृत्य समाज की धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं।
धार्मिक नृत्य और पश्वा
उत्तराखण्ड में विभिन्न देवी-देवताओं के अवतार पर त्योहारों के दौरान नृत्य किए जाते हैं। जब कोई देवता अपने भक्त में अवतरित होता है, तो वह भी विशिष्ट शैली में नृत्य करता है, जिसे धार्मिक नृत्य कहा जाता है।
बाजूबंद नृत्य
बाजूबंद नृत्य विशेष रूप से गढ़वाल क्षेत्र में प्रचलित है और इसे ग्वेरी (गाय चराने वाली महिलाएं) और घसेरी (घास काटने वाली महिलाएं) द्वारा किया जाता है। यह संवाद प्रधान नृत्य है, जिसमें प्रेम और विरह की भावना प्रमुख होती है। बाजूबंद और न्यौली एक जैसे नृत्यगीत हैं परंतु इनके प्रदर्शन में भिन्नता होती है।
सांस्कृतिक लोकनृत्य
उत्तराखण्ड की संस्कृति में नृत्य का महत्वपूर्ण स्थान है, और यहाँ के स्थानीय नृत्य विशेष रूप से सामाजिक समारोहों और उत्सवों में प्रदर्शित किए जाते हैं।
झोड़ा नृत्य
झोड़ा नृत्य, कुमाऊँ क्षेत्र का प्रमुख नृत्य है, जिसे बसंत ऋतु के आगमन और होली के बाद विशेष रूप से किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष और महिलाएँ एक साथ नृत्य करते हैं। झोड़ा नृत्य में गाए जाने वाले गीत मुख्य रूप से प्रेम के विषय में होते हैं।
नट-नटी नृत्यगीत
यह नृत्य हास्य-रस के लिए प्रसिद्ध है और इसे बद्दी और मिरासी जातियों के लोग पेश करते हैं। नट-नटी नृत्य का प्रमुख तत्व ग्रामीण जीवन के हास्य को दर्शाना है। यह नृत्य मनोरंजन के लिए कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है।
चौफला नृत्य
चौफला गढ़वाल के एक प्रसिद्ध नृत्य है, जिसका मुख्य तत्व चारों ओर खुशी फैलाना है। इस नृत्य का संबंध माँ पार्वती से है। इसमें महिलाएं और पुरुष दोनों भाग लेते हैं, और हाथों की ताली और पैरों की थाप इस नृत्य का अभिन्न हिस्सा है।
विशेष अवसरों पर नृत्य
उत्तराखण्ड में विशेष अवसरों पर विभिन्न प्रकार के नृत्य आयोजित किए जाते हैं, जैसे त्योहार, शादी, और अन्य समारंभ।
झुमैलो नृत्य
झुमैलो नृत्य बसंत पंचमी से लेकर विषुवत संक्रांति तक किया जाता है। यह नृत्य विवाहित कन्याओं द्वारा अपने मायके आने की खुशी में झूम-झूमकर किया जाता है। यह नृत्य उत्तराखण्ड की महिलाओं की भावनाओं का प्रतीक है।
थड़िया नृत्य
यह नृत्य गढ़वाल क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय हैं और यह ग्रामीणी स्त्रियों द्वारा घर के आंगन में उत्साहपूर्वक किया जाता है। थड़िमा नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीतों को थड़िया गीत कहा जाता है और यह एक सामुदायिक उत्सव का हिस्सा होते हैं।
छोलिया नृत्य
कुमाऊँ क्षेत्र का छोलिया नृत्य आमतौर पर विवाह, धार्मिक आयोजनों और कुम्भ मेलों के दौरान होता है। यह नृत्य मुख्यतः तलवार और ढोल के साथ किया जाता है और नागराजा, नरसिंह, और पाण्डवों की लीलाओं पर आधारित होता है।
छोलिया नृत्य की विशेषता : छोलिया नृत्य तलवार और ढोल के साथ इकट्ठा होता है, जो सामूहिक उत्सवों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह नृत्य उत्तराखण्ड की सैन्य परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को भी व्यक्त करता है।
त्योहारों और अवसरों का नृत्य
उत्तराखण्ड में त्योहारों के दौरान खास नृत्य किए जाते हैं, जो यहां की संस्कृति को जीवित रखते हैं।
होली नृत्य
होली के अवसर पर विशेष नृत्य और गीत गाए जाते हैं। यह नृत्य बसंत ऋतु की खुशी और नए जीवन के आगमन का प्रतीक होते हैं। रंगों के साथ किया जाने वाला यह नृत्य समाज को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चांचरी नृत्य
चांचरी नृत्य कुमाऊँ-गढ़वाल के चाँदनी रात को किया जाता है। इसमें मुख्य गायक के चारों ओर लोग गोल घेरे में नृत्य करते हैं। चांचरी की गति झोड़े की तुलना में धीमी होती है, और इसके गीतों का विषय स्वतंत्र होता है।
नृत्य की विशेष शैलियाँ
उत्तराखण्ड के लोकनृत्य में विभिन्न शैलियाँ और उनके पीछे खास कहानियाँ होती हैं।
भड़ौ नृत्य
भड़ौ नृत्य स्थानीय वीरों की गाथाओं को प्रस्तुत करता है। यह नृत्य वीरगाथाओं के लिए किया जाता है और इसमें ऐतिहासिक और अनैतिहासिक वीरों की कहानियाँ होती हैं।
पाण्डव नृत्य
पाण्डव नृत्य महाभारत के पाण्डवों के जीवन पर आधारित होता है। यह नृत्य विशेषकर नवरात्रि के दौरान एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जहाँ विभिन्न लोक नाट्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
हारूल नृत्य
जौंसारी जनजाति का हारूल नृत्य पाण्डवों के जीवन प्रसंग पर आधारित है। इसमें ‘रमतुला वाद्ययंत्र’ का विशेष प्रयोग होता है और यह नृत्य पाण्डवों की वीरता को दर्शाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिबिंब
उत्तराखण्ड के लोकनृत्यों में सामाजिक मान्यताएं और सांस्कृतिक मूल्य प्रकट होते हैं।
घसियारी नृत्य
घसियारी नृत्य घास काटने वाली महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह नृत्य उनकी मेहनती जीवनशैली और गाँव की प्रकृति का प्रतीक है।
जीत का नृत्य
यह नृत्य विजय और सफलता के संदेश को व्यक्त करता है। विशेष अवसरों पर स्थानीय लोग इस नृत्य को एकत्र होते हैं और अपनी खुशी को साझा करते हैं।
प्रमुख विशेष नृत्य
उत्तराखण्ड में कुछ विशेष नृत्य भी मौजूद हैं जो स्थानीय संस्कृति को दर्शाते हैं।
दीपक नृत्य
यह नृत्य दीपक जलाने के सन्दर्भ में किया जाता है, जो धार्मिक उत्सवों का हिस्सा है। महिलाएँ दीपक लेकर नृत्य करती हैं जो प्रकाश और हर्षोल्लास का प्रतीक है।
तांदी नृत्य
यह नृत्य विशेष अवसरों पर किया जाने वाला एक लोकप्रिय उत्तराखंडी नृत्य है। इसमें स्थानीय लोग सामाजिक और धार्मिक प्रसंगों पर आधारित गीत गाते हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखण्ड के लोकनृत्य इसकी सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं। ये नृत्य न केवल समाज को जोड़ने में मदद करते हैं, बल्कि यहां की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं। हर नृत्य में एक अद्वितीय कहानी और सांस्कृतिक मूल्य छिपा हुआ है, जो इस क्षेत्र की समृद्धि को दर्शाता है। उत्तराखण्ड का लोकनृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचानों, परंपराओं और आस्थाओं का भी एक जीवंत उदाहरण है। यह नृत्य यहां के लोगों के जीवन में खुशी, और धर्म का हिस्सा होने के साथ-साथ, प्राकृतिक सौंदर्य और सामाजिक सहयोग का भी प्रतीक है।
उत्तराखण्ड के लोकनृत्य यहाँ की पहचान और संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा हैं, जो सभी के लिए गर्व का विषय हैं। इनकी अद्भुत विविधता, जीवंतता और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखने और उसे अगली पीढ़ी को सौंपने का प्रयास करना चाहिए।