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उत्तराखंड के लोकगीत

परिचय

उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ी परिवेश और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहाँ के लोकगीत इस सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। ये गीत न केवल जीवन की विभिन्न घटनाओं और पहलुओं का वर्णन करते हैं, बल्कि क्षेत्रीय पहचान और सामूहिक भावना का भी संचार करते हैं।

धार्मिक गीत

उत्तराखंड के धार्मिक गीतों में विशेष रूप से जागर, संध्या गीत, प्रभात गीत, तंत्र-मंत्र गीत, भूत-भैरव गीत और रखवाली गीत शामिल हैं। ये गीत विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं, जैसे पूजा, अनुष्ठान और श्राद्ध आदि।

जागर : जागर गीत वे लोकगाथाएँ होती हैं जिनका संबंध पौराणिक व्यक्तियों या देवताओं से होता है। ये गीत अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में गाए जाते हैं। जागर गाने वाले को जागरिये या घड़िया कहते हैं, जबकि नृत्य करने वाले को डंगरिया कहा जाता है। यह नृत्य-गायन का एक अद्वितीय अनुभव है, जहाँ विभिन्न देवताओं और पौराणिक व्यक्तियों का सम्मान होता है।

रखवाली गीत : ये गीत विशेष रूप से बच्चों के लिए गाए जाते हैं ताकि उन्हें बुराइयों और नकारात्मकताओं से बचाया जा सके। इनमें माता-पिता की चिंता और प्रेम की इंगित होती है।

लौकिक लोगाथाएं (पवाड़े)

लौकिक लोगाथाएं या पवाड़े वीरता और प्रभाव का संगीतिक रूप हैं। ये गीत गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्रों में मीलों तक फैले हुए हैं। इनमें कालू भंडारी, तीलू रौतेला, और मालू राजूला जैसे वीरों की गाथाएँ गाई जाती हैं।

पवाड़े :  उस समय प्रचलित थे जब युद्ध होते थे, और ये युद्ध की कहानियाँ सुनाते थे। इन गाथाओं का उद्देश्य वीरता को सम्मानित करना और अगली पीढ़ी में साहस और निडरता का संचार करना होता था।

प्रेम या प्रणय गीत

उत्तराखंड के लोकगीतों में प्रेम और दांपत्य जीवन के गीतों का एक विशेष स्थान है। इन गीतों में चौफला, झुमैलो, छोपती, और छपेली शामिल हैं।

चौफला : यह गीत सामूहिक रूप से गाया जाता है और इसमें पुरुष और महिलाएँ एक-दूसरे के प्रति प्रेम और अहसास व्यक्त करते हैं। यह नृत्य प्रधान गीत है जिसमें मनुहार, हास्य और रति के भाव समाहित होते हैं।

झुमैलो : ये प्रेम के प्रति नारी की भावनाओं को उजागर करते हैं। झुमैलो गीत प्रायः बसंत पंचमी से लेकर विषुवत संक्रांति तक गाए जाते हैं।

ऋतु गीत

ऋतुओं का बदलता स्वरूप उत्तराखंड के लोकगीतों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। होली, चैती, खुदेड़, और बारहमासा जैसे ऋतु गीत मौसम के आनंद का चित्रण करते हैं।

बारहमासा : ये गीत वर्ष के बारह महीनों के विभिन्न लक्षणों का वर्णन करते हैं। गीतों में प्रेमिका की विरह की भावनाएँ, मौसम की सुंदरता, और प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया गया है।

चैती : यह गीत विशेष रूप से चैत के महीने में गाए जाते हैं और महिलाओं की कोमल भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

नृत्य गीत

उत्तराखंड के लोकगीतों में नृत्य गीतों का एक बड़ा संग्रह है। माघगीत, चाचार और झोड़ा जैसे नृत्य गीत सामूहिक नृत्य के दौरान गाए जाते हैं।

झोड़ा : यह नृत्य और गीत का एक अद्भुत मिश्रण है, जिसमें लोग एक साथ नृत्य करते हैं और प्रेम की गाथाएँ गाते हैं।

तांदी : यह भी एक लोकप्रिय नृत्य गीत है, जिसमें समूह में लोग एक साथ गाते हैं और नृत्य करते हैं।

मांगल एवं संस्कार गीत

मांगल या संस्कार गीत विवाह, जन्म, नामकरण, चूड़ाकर्म और उपनयन जैसे विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।

छठी गीत : यह जन्म के बाद बच्चे की छठी तिथि पर गाए जाने वाले गीत हैं, जिनमें माता-पिता अपने बच्चे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

जनेऊ गीत : इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत में परिवार और मित्रों की मौजूदगी में आनंद और खुशियाँ मनाई जाती हैं।

जाति विशेष के आधार पर गीत

उत्तराखंड में विभिन्न जातियों के गीत उनके सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बाजगियों, औजियों, और नाथ जोगियों के गीत उनकी विशेष परंपराओं और संस्कृतियों को दर्शाते हैं।

औजी गीत : ये गीत विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं, जहां गायन के साथ-साथ नृत्य भी होता है। औजियों के गीत अपनी जाति की विशेषता और संस्कृति को प्रकट करते हैं।

मनोरंजन गीत

मनोरंजन गीत जैसे लोरी, हास्य व्यंग्य और भांटा-सांटा गीत जीवन की चुनौतियों को हल्का करने का प्रयास करते हैं। ये गीत लोगों के बीच हँसी-मजाक उत्पन्न करते हैं और एक सकारात्मक माहौल बनाते हैं।

लोरी : यही एक अद्भुत परंपरा है, जिसके माध्यम से माँ अपने बच्चे को सुलाने के लिए प्रिय भावनाओं का संचार करती है।

विशेष लोकगीत

हुड़की बोल गीत

कुमाऊँ क्षेत्र का यह कृषि संबंधी गीत है, जो विशेष रूप से खरीफ फसल के समय गाया जाता है। इसे खेतों में काम करते समय गाना होता है, और इसका अर्थ है ढोलक के साथ श्रम करना।

हुड़की : इस गीत में गायक विशेष वेशभूषा में होता है और अपने साथियों के साथ मिलकर इसे गाता है।

बैर गीत

यह गीत एक तर्क प्रधान नृत्य है, जहाँ दो गायक तार्किक विवाद को गाने के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। ये गीत न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि संवाद कौशल का विकास भी करते हैं।

चौफला गीत

यह गीत सामूहिक रूप से गाया जाता है और उसमें प्रेम और मिलन की बातचीत होती है। इसे विशेष अवसरों पर गाया जाता है और इसमें सामाजिक संबंधों की मजबूती को भी दिखाया जाता है।

जागर गीत

जागर गीतों का सामाजिक-धार्मिक महत्व है। ये गीत विशेष रूप से देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के संबंध में गाए जाते हैं और इनमें रीति-रिवाजों की मान्यता और अनुकरण की गहनता होती है।

छपेली गीत

यह गीत त्यौहारों और मेलों में गाया जाता है। इसमें एक व्यक्ति गीत गाते हुए अन्य को नृत्य के लिए प्रेरित करता है। यह समाज को एकजुट करने का एक अद्भुत तरीका है।

खुदेड़ गीत

यह गीत मुख्य रूप से गढ़वाल क्षेत्र में गाए जाते हैं, जब लड़कियाँ अपनी ससुराल में सभी कार्य करती हैं, तब वे मायके की याद में खुदेड़ गीत गाती हैं।

खुदेड़ : ये गीत लड़कियों को मायके की याद दिलाते हैं और उनके भावनात्मक संबंध को दर्शाते हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड के लोकगीत केवल सांस्कृतिक धरोहर नहीं हैं, बल्कि ये समाज के सभी पहलुओं को छूने वाले जीवंत दस्तावेज हैं। धार्मिकता, प्रेम, संघर्ष, और सामाजिकता की कहानियाँ इन गीतों के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत की जाती हैं।

उत्तराखंड की लोक संगीत की यह अद्भुत यात्रा भावनाओं, परंपराओं, और सांस्कृतिक विविधता की अनमोल कड़ी है, जो न केवल आज के समाज की पहचान बनाती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी एक साथ जोड़ती है। लोकगीतों की यह अमिट धरोहर उत्तराखंड की संस्कृति को स्थायित्व देने का कार्य करती है और इसे समय-समय पर जीवित रखती है।

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