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उत्तराखंड के पर्वतीय दर्रे

परिचय

पर्वतीय दर्रे, या पहाड़ के रास्ते, पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन के लिए प्राकृतिक मार्ग होते हैं, जो प्राचीन काल से ही व्यापार, संचार और यात्रा के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं।  उत्तराखंड के पर्वतीय दर्रे न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय हैं।

नीति दर्रा

स्थान: नीति दर्रा भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित है और इसे नीति गाँव से आगे तक पहुँचा जा सकता है। यह दर्रा उत्तराखंड को चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ता है, जिससे यह भारतीय व्यापार और तीर्थ यात्रा के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है।

ऊँचाई: 5,070 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा न केवल अपनी ऊँचाई के लिए जाना जाता है, बल्कि यह छिपे हुए प्राकृतिक सौंदर्य को भी धारण करता है।

संपर्क: नीति दर्रा, भारत और तिब्बत के बीच एक रणनीतिक संपर्क (कनेक्शन) का काम करता है। पूर्व में इसके माध्यम से उत्तराखंड और तिब्बत के बीच व्यापार और आवाजाही होती रही है, जो इसकी महत्ता को और बढ़ाता है।

विशेषताएँ: यह दर्रा चुनौतीपूर्ण भूभाग पर स्थित है। यहाँ बर्फ से ढके पहाड़ों और सुरम्य घाटियों का दृश्य उपस्थित होता है, जो साहसिक पर्यटन प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है। यहाँ की यात्रा एक जीवंत अनुभव देती है। इसके अलावा, यहाँ के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र में अद्भुत वन्य जीवन भी देखने को मिलता है।

लिपुलेख दर्रा

स्थान: लिपुलेख दर्रा भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बत से जोड़ता है और यह कैलाश मानसरोवर मार्ग का एक हिस्सा है। यह दर्रा भारत, तिब्बत और नेपाल द्वारा साझा किया जाता है।

ऊँचाई: 5,200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रा, इसे उच्चतम दर्रों में से एक बनाता है, जहाँ से हिमालय की श्रृंखलाबद्ध पर्वत चोटियाँ देखी जा सकती हैं।

संपर्क: यह दर्रा तीर्थ यात्रा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है। यहां से कैलाश मानसरोवर की यात्रा को सुगम किया जा रहा है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण स्थल है।

विशेषताएँ: लिपुलेख दर्रा बर्फ से ढके चोटियों और अल्पाइन घास के मैदानों का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य, यात्रा करने वालों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है और शांत वातावरण के बीच खुद को पुनः खोजने का अवसर देता है।

माना दर्रा

स्थान: माना दर्रा भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित है, जिससे रीनाथ के उत्तर में बाड के पास पहुँचा जा सकता है।

ऊँचाई: 5,610 मीटर की ऊँचाई पर पहुँचते ही यह दुनिया का दूसरा सबसे ऊँचा वाहन-सुलभ दर्रा बन जाता है।

संपर्क: माना दर्रा व्यापारी और तीर्थयात्रियों का एक प्रमुख रास्ता है, जिससे लोग भारतीय संस्कृति और तिब्बती संस्कृति के बीच का पुल बनाते हैं।

विशेषताएँ: यह दर्रा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ के मार्ग पर स्थित मंदिर और घाटियाँ पवित्रता का अनुभव कराती हैं। इसके अलावा, यहाँ का वातावरण एक अद्भुत शांति को भी प्रदान करता है।

कागभुसंडी दर्रा

स्थान: कागभुसंडी दर्रा उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र (चमोली जिले में जोशीमठ) में स्थित है।

ऊँचाई: इसकी ऊँचाई 5,700 मीटर है, जिससे यह न केवल ऊँचा है बल्कि चुनौतीपूर्ण भी है।

संपर्क: यह दर्रा एक सुदूर और कम इस्तेमाल किया जाने वाला मार्ग है, जो साहसी पर्यटकों और यात्रियों के लिए आदर्श है।

विशेषताएँ: अपने कठिन भूभाग और सुरम्य परिदृश्यों के लिए प्रसिद्ध, कागभुसंडी दर्रा साहसिक पर्यटन की तलाश करने वालों के लिए एक अद्भुत स्थान है। यहाँ का वातावरण और दृश्य निश्चित रूप से रोमांचकारी अनुभव प्रदान करते हैं।

उंटा धुरा दर्रा

स्थान: यह कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जिले की मुनस्यारी तहसील में  स्थित है। उंटा धुरा दर्रा मिलम ट्रेक का हिस्सा है।

ऊँचाई: 4,900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, इसे कठिनाई की दृष्टि से उच्चतम दर्रों में गिना जा सकता है।

संपर्क: उंटा धुरा दर्रे से तिब्बत की ओर जाता था, जिससे दो भिन्न क्षेत्रों के बीच यात्रा करना संभव होता था। पूर्व में यह व्यापार के लिए महत्वपूर्ण था।

विशेषताएँ: यह दर्रा प्राकृतिक सौंदर्य और चुनौतीपूर्ण मार्ग के लिए जाना जाता है, जो पर्वतारोहियों और एडवेंचर प्रेमियों के लिए आदर्श है।

रूपिन दर्रा

स्थान: रूपिन दर्रा गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान में उत्तरकाशी को हिमाचल प्रदेश के सांगला किन्नौर से जोड़ता है।

ऊँचाई: इसकी ऊँचाई 4,650 मीटर है।

संपर्क: यह उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बीच एक प्रमुख ट्रेकिंग मार्ग है, जिससे ट्रेकर्स इस क्षेत्र के खूबसूरत दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

विशेषताएँ: यहाँ का प्राकृतिक दृश्य, सुंदर कैंप साइट और झरने यात्रियों को एक विशेष अनुभव प्रदान करते हैं।

कुवारी दर्रा

स्थान: कुवारी दर्रा जोशीमठ/औली को वान से जोड़ता है।

ऊँचाई: इसकी ऊँचाई 3,890 मीटर है।

संपर्क: यह धौली गंगा और पिंडर नदियों के अल्पाइन हिमालयी क्षेत्र के बीच स्थित है। यह क्षेत्र की प्रमुख चोटियों के दृश्य प्रस्तुत करता है।

विशेषताएँ: नंदा देवी, कामेट और त्रिशूल के विस्तृत दृश्य यात्रियों को आकर्षित करते हैं।

नलगन दर्रा

स्थान: नलगन दर्रा, हिमालय में स्थित एक उच्च पर्वतीय दर्रा है, जो गढ़वाल को किन्नौर से जोड़ता है।

ऊँचाई: इसकी ऊँचाई 4,450 मीटर है।

विशेषताएँ: इसमें सुंदर किनारों के साथ बाडासर और कनासर झीलें शामिल हैं, जो इसे एक अद्वितीय ट्रेकिंग स्थल बनाती हैं।

बरासु दर्रा

स्थान: हर की दून घाटी को किन्नौर से जोड़ता है।

ऊँचाई: 5,360 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा साहसिक पर्यटन प्रेमियों के लिए उपयुक्त है।

विशेषताएँ: यहाँ के खड़ी चट्टानें और दरारें इसे एक चुनौतीपूर्ण ट्रेक बनाती हैं।

बाली दर्रा

स्थान: इसे “यमुना कांठा” के नाम से भी जाना जाता है। यह हर की दून, रुइनसारा घाटी और यमुनोत्री के बीच स्थित है।

ऊँचाई: उत्तरकाशी जिले में स्थित एक उच्च पर्वतीय दर्रा है जो 4,900 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित।

विशेषताएँ: उत्तराखंड के हर-की-दून घाटी को यमुनोत्री से जोड़ता है। स्वर्गरोहिणी समूह और बंदरपूंछ मैसिफ के दृश्य यहाँ से विलोभित करते हैं। 

लमखागा दर्रा

स्थान: चितकुल (हिमाचल) और हर्षिल (उत्तराखंड) के बीच स्थित है और हर्षिल को सांगला से जोड़ता है।

ऊँचाई: 5,300 मीटर।

विशेषताएँ: यह लुभावने परिदृश्य और चुनौतीपूर्ण इलाके के लिए जाना जाता है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।

सिंघा घाटी दर्रा

स्थान: सिंघा घाटी दर्रा, जिसे सिनला दर्रा भी कहा जाता है, उत्तराखंड के कुमाऊं हिमालय में स्थित एक महत्वपूर्ण दर्रा है जो पिथौरागढ़ जिले में आता है और उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से घिरा है।  

ऊँचाई: 5,090 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: कम प्रलेखित, यह दर्रा पूर्व पर्वतारोहण अनुभव की आवश्यकता रखता है।

खिमलोगा दर्रा

स्थान: खिमलोगा दर्रा, जिसे खिमले दर्रा भी कहा जाता है, धौलाधार पर्वत श्रृंखला में स्थित एक कठिन ट्रेक है, जो उत्तराखंड के लिवाड़ी गांव से शुरू होकर हिमाचल प्रदेश के चितकुल तक जाता है। 

ऊँचाई: 5,712 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: बहुत दूरस्थ और कम ज्ञात, यह दर्रा साहसिक पर्यटकों के लिए एक वास्तविक चुनौती प्रस्तुत करता है।

जुनारगली दर्रा

स्थान: रूपकुंड झील के पास।

ऊँचाई: 4,880 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: यह दर्रा शिला समुद्र ग्लेशियर और हेमकुंड को जोड़ता है।

फाचू कंडी दर्रा

स्थान: हर की दून घाटी को यमुनोत्री (संकरी को हनुमान चट्टी) से जोड़ता है।

ऊँचाई: 4,230 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: यह केदारकांठा और सरूताल ट्रेक के रास्ते में स्थित है और रिज वॉकिंग के लिए जाना जाता है।

धूमधर कंडी दर्रा

स्थान: यह दर्रा भागीरथी और टोंस घाटियों को जोड़ता है। यह स्वर्गरोहिणी और ब्लैक पीक के बेस कैंप तक जाता है।

ऊँचाई: 5,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: चुनौतीपूर्ण ट्रेकिंग कौशल की आवश्यकता के साथ यह दर्रा हिमस्खलन-प्रवण है।

दरवा दर्रा

स्थान: यमुना और भागीरथी घाटियों के बीच।

ऊँचाई: 4,250 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: यहाँ के हरे-भरे वनस्पति और जंगल यात्रियों के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करते हैं।

कालिंदी खाल

स्थान: गढ़वाल हिमालय में गंगोत्री और बद्रीनाथ को जोड़ता है।

ऊँचाई: 5,950 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: यह बहुत चुनौतीपूर्ण है और घास के मैदानों, हिमोढ़ों और ग्लेशियरों से होकर गुजरता है।

ऑडेन कोल

स्थान: गंगोत्री के रुदुगैरा घाटी और भिलंगना घाटी  को जोड़ता है।

ऊँचाई: 5,490 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

विशेषताएँ: शारीरिक सहनशक्ति और अनुभव की मांग करता है।

यह सभी पर्वतीय दर्रे उत्तराखंड की प्राकृतिक विविधता और भव्यता को प्रदर्शित करते हैं। वे साहसिक पर्यटन के प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय गंतव्य हैं, जहाँ हर एक दर्रा अपने-अपने अनुभव और चुनौतियों के साथ पर्यटकों का स्वागत करता है। उत्तराखंड के दर्रों की यात्रा न केवल भौगोलिक अनुभव का एक हिस्सा है, बल्कि यह मानसिक शांति और आत्मविश्वास के विकास का भी माध्यम है।

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