परिचय
उत्तराखण्ड, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, का इतिहास प्राचीन काल से ही समृद्ध और विविधतापूर्ण है। इस क्षेत्र की प्राचीनता का प्रमाण यहाँ के पुरातात्विक, साहित्यिक और ऐतिहासिक स्रोतों में विस्तृत रूप से मिलता है। उत्तराखण्ड के इतिहास को जानने के विभिन्न स्रोतों निमन्वत हैं:
प्रागैतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल में मानव सभ्यता का विकास प्रारंभ हुआ। उत्तराखण्ड में प्रागैतिहासिक अवशेषों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में मानव गतिविधियाँ बहुत पुरानी हैं। डॉ. मदन मोहन जोशी के अनुसार, पाषाण युग को निम्न, मध्य और उच्च पुरापाषाण युग में विभाजित किया जा सकता है। निम्न पुरापाषाण युग के औजारों की खोज युमना उपत्यका, श्रीनगर व अलकनन्दा घाटी में की गई है।
प्रागैतिहासिक अवशेषों में लाखु उड्यार और उसकी गुफाएँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, जहाँ से मानव आकृतियों के चित्र मिले हैं। यहां पर विभिन्न रंगों का प्रयोग कर चित्रित आकृतियों की खोज की गई है। यह उस समय के मानव जीवन और उनकी सांस्कृतिक गतिविधियों को दर्शाते हैं। लाखु उड्यार में पाई गई नृत्यरत मानव आकृतियों का चित्रण उत्तराखण्ड के प्रागैतिहासिक कला का अनूठा उदाहरण है। इसी के साथ फड़कानौली, पेटशाला और अन्य स्थलों से प्राप्त शैलचित्र भी महत्वपूर्ण हैं।
आद्य ऐतिहासिक काल
आद्य ऐतिहासिक काल में उत्तराखण्ड का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और विभिन्न साहित्यिक कार्यों में मिलता है। इस काल के दौरान, अनेक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में इस क्षेत्र के बारे में जानकारी दी गई है। ऋग्वेद, महाभारत और पुराणों में उत्तराखण्ड का संदर्भ मिलता है। ऋग्वेद में इसे “देवभूमि” कहा गया है, जबकि स्कंदपुराण में इसे “खशदेश” और “ब्रह्मपुर” कहा गया है। इन ग्रंथों में इस क्षेत्र की पर्वत श्रृंखलाओं, नदियों और सांस्कृतिक गतिविधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
साहित्यिक स्रोत
उत्तराखण्ड के इतिहास को जानने के लिए साहित्यिक स्रोत बेहद महत्वपूर्ण हैं। धार्मिक ग्रंथों के अलावा, अन्य ग्रंथों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। पाणिनी की “अष्टध्यायी”, कालिदास का “रघुवंशम”, “मेघदूत”, और बाणभट्ट का “हर्षचरित” इस क्षेत्र की भूमि और संस्कृति से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
महाभारत में गढ़वाल क्षेत्र को “स्वर्गभूमि” और “तपोभूमि” कहा गया है, जिससे यहां के धार्मिक महत्व का पता चलता है। भगवती अनुसूया से संबंधित कथाएँ भी इस क्षेत्र की पौराणिकता को उजागर करती हैं। इसके अलावा, अलग-अलग लोकगाथाएं जैसे “राजुला मालूशाही” और “रमौला गाथा” स्थानीय इतिहास की झलक प्रस्तुत करती हैं।
विदेशी यात्रियों के विवरण
उत्तराखण्ड की यात्रा करने वाले विदेशी यात्रियों के विवरण भी इस क्षेत्र के इतिहास को समझने में सहायक हैं। ह्वेनसांग, जो कि एक चीनी यात्री थे, ने अपने यात्रा वृतांत “सी यू-की” में उत्तराखण्ड का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग ने इसे “पोलिहिमोपुर” यानी ब्रह्मपुर कहा है और हरिद्वार को “मो-यू-लो” कहा, जो इस क्षेत्र की पहचान को दिखाता है।
ह्वेनसांग के अद्वितीय अनुभवों से यह पता लगाता है कि उस समय उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व कितना था। उनके द्वारा वर्णित स्थल जैसे गोविषाण और अलकनन्दा नदी का उल्लेख इस क्षेत्र की समृद्धि को दर्शाता है।
पुरातात्विक स्रोत
उत्तराखण्ड में पुरातात्विक खोजें भी इस क्षेत्र के इतिहास को जानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विद्वानों ने विभिन्न स्थलों पर उत्खनन कर अनेक अवशेष प्राप्त किए हैं, जैसे कि चंद्रेश्वर मंदिर द्वाराहाट से ओखलियां, देवीधुरा से पुरापाषाणिक शवाधान, और दौलतपुर से पाई गई ताम्रमानवाकृतियां।
इसके अलावा, रणिहाट और थापली जैसी स्थलों पर की गई खोजें प्राचीन शिल्पकला और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमाण प्रदान करती हैं। इन खोजों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि उत्तराखण्ड में कई प्राचीन सभ्यताओं का विकास हुआ है।
ऐतिहासिक काल के स्त्रोत
उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक काल की जांच करते समय, कालसी अभिलेख और त्रिशूल अभिलेख उल्लेखनीय हैं। कालसी का शिलालेख, जो 1860 में खोजा गया, में अशोक का अभिलेख है। इसमें प्राकृत भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है और यह क्षेत्र की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करता है।
लाखामंडल के अभिलेख और अम्बाड़ी से मिले अभिलेख भी इस क्षेत्र की ऐतिहासिक गाथा का वर्णन करते हैं। यहाँ तक कि विभिन्न सिक्कों की खोज ने भी ऐतिहासिक काल की गहराई को उजागर किया है, जिन पर कुणिंद शासकों के नाम अंकित हैं।
निष्कर्ष
अंत में, यह स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड का इतिहास न केवल प्राचीन, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि से भी भरा हुआ है। इस क्षेत्र के इतिहास के विभिन्न स्त्रोत – साहित्यिक, पुरातात्विक, विदेशी यात्रा वृत्तांत – सभी मिलकर उत्तराखण्ड के अद्वितीय इतिहास को स्थापित करते हैं। इन स्रोतों के माध्यम से, हम न केवल उत्तराखण्ड की पुरानी सभ्यता की गहराई में जा सकते हैं, बल्कि इसके सांस्कृतिक और धार्मिक आयामों को भी समझ सकते हैं।
उत्तराखण्ड का इतिहास इस क्षेत्र की विविधता, धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर का बेशकीमती खजाना है, जो न केवल भारतीय समाज के लिए, बल्कि विश्व संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ के विभिन्न स्रोतों ने इस क्षेत्र की गाथा को जीवंत रखा है और आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का सागर बनकर सामने आए हैं।