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हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण की चुनौतियां

परिचय

उत्तराखंड सहित हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण एक गंभीर चिंता का विषय है। इस क्षेत्र में वन विनाश, अनियोजित शहरीकरण, बेलगाम पर्यटन और जलविद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर्यावरणीय क्षरण के प्रमुख करक हैं। इन कारकों ने मिलकर हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है और स्थानीय लोगों के जीवन और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस समस्या के समाधान के लिए एक बहुआयामी और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।

वन विनाश: हिमालयी क्षेत्र में वन विनाश के मुख्य कारणों में कृषि, शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों के लिए वनों की कटाई शामिल है। इसके अलावा, सड़कों और बांधों जैसे अनियोजित निर्माण, जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि, और पालतू जानवरों द्वारा अत्यधिक चराई भी इस समस्या को बढ़ावा देती है।

वन आवरण में गिरावट: 2019 की तुलना में 2021 तक देश के पहाड़ी जिलों के वन आवरण में 902 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है। वनों के विनाश से जैव विविधता का ह्रास हो रहा है, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसके अलावा, मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है, जो भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देता है।

अनियंत्रित शहरीकरण: 1901 से 2011 के बीच भारतीय हिमालय क्षेत्र की जनसंख्या में 567.3% की वृद्धि हुई है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। यह शहरीकरण ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों और नदी घाटियों में हुआ है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा है।

बेलगाम पर्यटन का प्रभाव: पर्यटन ने भले ही आर्थिक उन्नति लाई हो, लेकिन इसने पारिस्थितिक क्षरण को भी तेज किया है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या से पानी की खपत, कचरा और प्रदूषण में वृद्धि हुई है, जिससे नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी बोझ पड़ा है।

जल स्रोतों पर प्रभाव: शहरीकरण और वन विनाश के कारण भूजल भंडार कम हो रहा है और प्राकृतिक झरने सूख रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार, 45% प्राकृतिक झरने सूख गए हैं, और नैनीताल जैसी झीलों की क्षमता गाद के कारण घट गई है।

जलविद्युत परियोजनाओं का जोखिम: जलविद्युत परियोजनाएं हिमालय के नाजुक भूगर्भीय तंत्र को अस्थिर कर रही हैं। इन परियोजनाओं में ब्लास्टिंग और डायनामाइटिंग जैसी प्रक्रियाओं से भूकंपीय जोखिम और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। चमोली आपदा और केदारनाथ बाढ़ जैसी घटनाएं इन जोखिमों को उजागर करती हैं।

अलाभकारी जलविद्युत परियोजनाएं: विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश पर रिटर्न नकारात्मक होता है। इन परियोजनाओं में बिजली उत्पादन भी कम होता है। पिछले छह वर्षों में, भारत की बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं ने कुल बिजली उत्पादन का केवल 10% योगदान दिया है।

नीतियों का अभाव और कानूनी चुनौतियाँ: पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता और भू-उपयोग परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कानून और नीतियां नहीं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन में भी कमजोर है और स्थानीय लोगों की चिंताओं को नजरअंदाज करती है।

स्थानीय लोगों का पलायन: हिमालय में शहरीकरण मुख्य रूप से ग्रामीण पलायन से प्रेरित है, क्योंकि कृषि योग्य भूमि की कमी और निर्वाह की दिक्कतों के कारण वयस्क पुरुष आबादी रोजगार की तलाश में क्षेत्र से बाहर चली जाती है।

निष्कर्ष

संक्षेप में, उत्तराखंड और पूरे हिमालयी क्षेत्र में वन विनाश, अनियोजित विकास और बेलगाम पर्यटन के कारण एक गंभीर पर्यावरणीय संकट पैदा हो गया है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा, वैज्ञानिक डेटा पर आधारित योजना और स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक है। सतही समाधानों के बजाय, टिकाऊ विकास और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को प्राथमिकता देना ही इस क्षेत्र के भविष्य को सुरक्षित कर सकता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर;

प्रश्न 1. हिमालयी क्षेत्र में वन विनाश के मुख्य कारण कौन-कौन से हैं?

  1. कृषि, शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों के लिए वनों की कटाई
  2. जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक चराई
  3. सड़कों और बांधों का अनियोजित निर्माण
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र में वनों की कटाई का मुख्य कारण कृषि, शहरीकरण, औद्योगिक गतिविधियाँ, जलवायु परिवर्तन, पालतू पशुओं की अत्यधिक चराई, और सड़कों-बांधों का अनियोजित निर्माण है। ये सभी कारक मिलकर वन विनाश को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 2. हिमालयी क्षेत्र में बेलगाम पर्यटन के कारण कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं?

  1. पानी की अत्यधिक खपत
  2. कचरा और प्रदूषण में वृद्धि
  3. पारिस्थितिकी तंत्र पर अत्यधिक बोझ
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: बेलगाम पर्यटन से हिमालयी क्षेत्रों में पानी की खपत बढ़ती है, कचरा और प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। यह स्थिति पारिस्थितिक क्षरण को तेज कर रही है।

प्रश्न 3. जलविद्युत परियोजनाओं के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में कौन-कौन से जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं?

  1. भूकंपीय जोखिम बढ़ना
  2. भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि
  3. जल स्रोतों पर प्रतिकूल प्रभाव
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में ब्लास्टिंग और डायनामाइटिंग जैसी विधियों के कारण भूकंपीय जोखिम बढ़ता है। इससे भूस्खलन की घटनाएँ भी बढ़ती हैं। इसके अतिरिक्त, जल स्रोतों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे झरनों का सूखना और झीलों में गाद भरना।

प्रश्न 4. हिमालयी क्षेत्र में वन आवरण की गिरावट के क्या-क्या दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं?

  1. जैव विविधता का ह्रास
  2. मिट्टी का कटाव और भूस्खलन
  3. प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ना
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: वन आवरण में गिरावट से जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसके अलावा, मिट्टी का कटाव बढ़ता है जिससे भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा भी बढ़ जाता है।

प्रश्न 5. हिमालयी क्षेत्रों में नीतियों और कानूनी प्रावधानों की कमी के कारण कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं?

  1. पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता पर नियंत्रण का अभाव
  2. भू-उपयोग परिवर्तन को नियंत्रित करने वाले कानूनों की कमी
  3. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में सरकारी विफलता
  4. उपरोक्त सभी 

उत्तर: d. उपरोक्त सभी
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता, भू-उपयोग परिवर्तन, और परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के लिए मजबूत नीतियों और कानूनों का अभाव है। इससे समस्याएँ और जटिल होती जा रही हैं।

कारण (Reason) और कथन (Assertion) आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर  

प्रश्न 1.

कथन (A): हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाएं भूकंपीय जोखिम और भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ावा देती हैं।
कारण (R): इन परियोजनाओं के निर्माण में ब्लास्टिंग और डायनामाइटिंग जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।

उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: जलविद्युत परियोजनाओं में भारी विस्फोट (ब्लास्टिंग) और डायनामाइटिंग के कारण पर्वतीय भू-आकृति में अस्थिरता आती है, जिससे भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधियों की संभावना बढ़ जाती है। चमोली और केदारनाथ आपदाएँ इसी का उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.

कथन (A): बेलगाम पर्यटन हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
कारण (R): पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है, जिससे पारिस्थितिक क्षरण रुक जाता है।

उत्तर: A सही है लेकिन R गलत है।
व्याख्या: पर्यटन से आर्थिक लाभ अवश्य होता है, परन्तु अति-पर्यटन से संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे जल संकट, कचरा प्रबंधन की समस्या और पारिस्थितिक क्षरण होता है। अतः R कथन गलत है और A सही है।

प्रश्न 3.

कथन (A): उत्तराखंड सहित हिमालयी क्षेत्र में वन विनाश के कारण जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।
कारण (R): वनों की कटाई मुख्यतः कृषि, शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार के लिए होती है।

उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: कृषि, शहरीकरण और औद्योगिक विकास के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण हिमालय में वन आवरण घट रहा है, जिससे जैव विविधता प्रभावित हो रही है। कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।

प्रश्न 4.

कथन (A): हिमालयी क्षेत्रों में अनियंत्रित शहरीकरण के कारण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा है।
कारण (R): जनसंख्या वृद्धि के साथ नदी घाटियों और मैदानी क्षेत्रों में शहरीकरण केंद्रित हो रहा है।

उत्तर: A और R दोनों सही हैं तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्रों में शहरीकरण मुख्यतः नदी घाटियों में केंद्रित होता है, जिससे जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। जनसंख्या वृद्धि के साथ जल का अत्यधिक उपयोग और जलस्रोतों का क्षय भी बढ़ता है।

प्रश्न 5.

कथन (A): जलविद्युत परियोजनाएँ हमेशा ऊर्जा उत्पादन के दृष्टिकोण से लाभकारी होती हैं।
कारण (R): विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ परियोजनाओं में निवेश पर रिटर्न नकारात्मक होता है और उत्पादन भी कम होता है।

उत्तर: A गलत है लेकिन R सही है।
व्याख्या: सभी जलविद्युत परियोजनाएँ हमेशा लाभकारी नहीं होतीं। कई परियोजनाओं में लागत अधिक होती है और उत्पादन अपेक्षा से कम होता है, जिससे निवेश पर रिटर्न भी नकारात्मक हो सकता है। अतः A कथन गलत है जबकि R सही है।

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