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हरेला प्रकृति, कृषि और मानव जीवन का पर्व

प्रस्तावना:

हरेला उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है, जो विशेष रूप से श्रावण मास (जुलाई) में मनाया जाता है। यह त्योहार वर्षा ऋतु के आगमन, हरियाली और नई फसलों के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है। हरेला प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने का एक अनोखा तरीका है।

वर्षा ऋतु का स्वागत और नई शुरुआत: हरेला शब्द का अर्थ है “हरा दिन” या “हरियाली का दिन”। यह त्योहार मानसून के आगमन का प्रतीक है, जो हिमालयी क्षेत्रों के लिए कृषि और जीवन का आधार है। वर्षा ऋतु के शुरू होने से पहले, किसान अपने खेतों को तैयार करते हैं और बीजारोपण की शुरुआत करते हैं। यह पर्व नई आशा, समृद्धि और एक नए कृषि चक्र की शुरुआत का संदेश देता है, जिससे किसानों में उत्साह का संचार होता है।

हरियाली और समृद्धि का प्रतीक: हरेला मनाने के लिए, परिवार के सदस्य त्योहार से नौ दिन पहले एक टोकरी में पाँच या सात प्रकार के अनाज (जौ, गेहूँ, मक्का, दालें आदि) बोते हैं। इन बीजों को घर के अंदर, एक अंधेरी जगह में रखा जाता है ताकि वे जल्दी अंकुरित हो सकें। ये हरे अंकुर “हरियाली” कहलाते हैं और आने वाली फसल की समृद्धि और परिवार में खुशहाली का प्रतीक माने जाते हैं।

पारंपरिक अनुष्ठान और प्रतीकवाद: हरेला के दिन, इन अंकुरित पौधों को सावधानीपूर्वक काटकर, परिवार के सभी सदस्य अपने सिर पर पहनते हैं। यह अनुष्ठान प्रकृति के साथ एकात्मता और उसकी उर्वरक शक्ति के प्रति सम्मान को दर्शाता है। यह एक सांस्कृतिक परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। बड़े-बुजुर्ग इन हरियाली को आशीर्वाद के रूप में परिवार के छोटे सदस्यों को देते हैं, जो उनकी स्वास्थ  और समृद्धि की कामना का प्रतीक होता है।

प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता: हरेला का पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। इस दिन पेड़-पौधे लगाने की परंपरा है। लोग सामूहिक रूप से वृक्षारोपण करते हैं, जो प्रकृति के प्रति उनकी जिम्मेदारी और सम्मान को दर्शाता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन और समृद्धि सीधे तौर पर प्रकृति के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। यह पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता को बढ़ावा देता है।

परिवारिक एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव: हरेला सिर्फ एक कृषि पर्व नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का भी प्रतीक है। परिवार के सभी सदस्य इस अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिससे उनके बीच के संबंध मजबूत होते हैं। यह त्योहार बच्चों को उनकी जड़ों, प्रकृति और पारंपरिक मूल्यों से जोड़ता है। इस दिन लोकगीत गाए जाते हैं और पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जो उत्सव के माहौल को और भी खुशनुमा बनाते हैं।

निष्कर्ष:

हरेला पर्व उत्तराखंड के लोगों की प्रकृति के साथ गहरी आत्मीयता का प्रमाण है। यह एक ऐसा त्योहार है जो हमें यह सिखाता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध अटूट है। यह पर्व न केवल कृषि समृद्धि का जश्न मनाता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, परिवारिक एकता और हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूत करता है। यह एक ऐसा अनूठा पर्व है जो हमारी आधुनिक दुनिया में भी अपनी प्रासंगिकता और महत्व बनाए हुए है।

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