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स्वदेशी आंदोलन और भारतीय राष्ट्रवाद में उसका महत्व

प्रस्तावना:

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक चरण में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन (1905-1908) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक पड़ाव सिद्ध हुआ। यह आंदोलन बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में प्रारंभ हुआ था, जब लार्ड कर्ज़न ने राजनीतिक कारणों से बंगाल का विभाजन कर दिया। इससे जनता में गहरा आक्रोश फैला और पहली बार बड़े पैमाने पर जन-आंदोलन का जन्म हुआ, जिसमें शिक्षित वर्ग से लेकर किसान, स्त्रियां और मजदूर सभी शामिल हुए।

आंदोलन की उत्पत्ति

  • बंगाल विभाजन (1905) – लार्ड कर्ज़न द्वारा विभाजन का निर्णय भारतीयों को “फूट डालो और राज करो” की नीति के रूप में दिखाई दिया।
  • इसके विरोध में कांग्रेस के नेताओं, शिक्षित वर्ग और छात्रों ने आंदोलन छेड़ा, जिसका आधार आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार था।

आंदोलन के मुख्य कार्यक्रम

  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार – अंग्रेजी वस्त्रों और माल का सामूहिक बहिष्कार किया गया। जनता ने सार्वजनिक रूप से विदेशी कपड़ों की होली जलाई।
  • स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार – खादी, हस्तकरघा, हस्तशिल्प और भारतीय उद्योगों को बढ़ावा दिया गया।
  • राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार – ब्रिटिश शैक्षणिक संस्थानों का बहिष्कार कर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों और पाठशालाओं की स्थापना की गई।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद – गणेशोत्सव, शारदा उत्सव, स्वदेशी गीत, कविताएँ और साहित्य के माध्यम से जनता को जागरूक किया गया।

जनता की भागीदारी

  • छात्र और युवा वर्ग – स्कूल-कॉलेज छोड़कर आंदोलन से जुड़ गए और स्वदेशी संस्थानों में प्रवेश लिया।
  • महिलाएँ – पहली बार बड़े पैमाने पर महिलाएँ आगे आईं। उन्होंने चरखा कताई और बहिष्कार में सक्रिय भाग लिया।
  • मजदूर और किसान – धीरे-धीरे ग्रामीण और श्रमिक वर्ग भी आंदोलन का हिस्सा बने।

राष्ट्रवाद पर प्रभाव

  • जन-आधारित राष्ट्रवाद की शुरुआत – यह प्रथम आंदोलन था जिसमें व्यापक जनसमर्थन मिला और स्वतंत्रता संग्राम एक अखिल भारतीय रूप लेने लगा।
  • राजनीतिक चेतना और कट्टरपंथ का उदय – आंदोलन ने भारतीय राजनीति में नए नेताओं जैसे बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय को उभारा। इसे “लाल-बाल-पाल” की त्रयी ने नई दिशा दी।
  • आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय – स्वदेशी उद्योग-धंधों के प्रचार ने आर्थिक आत्मनिर्भरता पर बल दिया।
  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की मजबूती – बंकिमचंद्र का “वंदे मातरम्” और रवींद्रनाथ टैगोर के गीतों ने राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक और भावनात्मक आयाम प्रदान किया।

निष्कर्ष:

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को पहली बार जनांदोलन का रूप दिया। इसने जनता को आत्मनिर्भरता, आर्थिक स्वदेशी और सांस्कृतिक एकता का संदेश दिया। यह आंदोलन न केवल बंगाल विभाजन विरोध तक सीमित रहा, बल्कि पूरे भारत में राष्ट्रवाद की नई चेतना जगाने में ऐतिहासिक साबित हुआ। यही कारण है कि इसे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम जनाधारित चरण माना जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर

प्रश्न 1. स्वदेशी आंदोलन (1905-1908) की शुरुआत किस कारण से हुई थी?
(a) रलेट एक्ट के विरोध में
(b) बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में
(c) जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण
(d) सायमन कमीशन के विरोध में

उत्तर: (b) बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में

व्याख्या: स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 1905 में लार्ड कर्ज़न द्वारा किए गए बंगाल विभाजन के विरोध में हुई। भारतीयों ने इसे “फूट डालो और राज करो” की नीति समझा। आंदोलन का लक्ष्य ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करके देशी उद्योगों को प्रोत्साहन देना था। यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का पहला व्यापक जनांदोलन बना, जिसमें हर वर्ग के लोगों ने भाग लिया।

प्रश्न 2. स्वदेशी आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं का किस प्रकार विरोध किया गया?
(a) ब्रिटिश दूतावास का घेराव कर
(b) विदेशी कपड़ों की सार्वजनिक होली जलाकर
(c) ब्रिटिश सैनिकों पर हमला करके
(d) केवल मौखिक विरोध करके

उत्तर: (b) विदेशी कपड़ों की सार्वजनिक होली जलाकर

व्याख्या: स्वदेशी आंदोलन में विदेशी वस्तुओं, विशेषकर अंग्रेजी कपड़ों का सामूहिक बहिष्कार किया गया। जगह-जगह जनता एकत्र होकर विदेशी माल की सार्वजनिक होली जलाती थी। इससे भारत में स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग की भावना फैली और खादी, हस्तकरघा जैसे भारतीय उद्योगों को पुनर्जीवित करने का अवसर मिला।

प्रश्न 3. स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी “लाल-बाल-पाल” त्रयी में कौन-कौन शामिल थे?
(a) तिलक, गोखले, नेहरू
(b) गोखले, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता
(c) बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय
(d) गांधी, तिलक, टैगोर

उत्तर: (c) बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय

व्याख्या: स्वदेशी आंदोलन के दौरान उग्र राष्ट्रवाद का नया चरण प्रारंभ हुआ, जिसका नेतृत्व “लाल-बाल-पाल” अर्थात लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल ने किया। इन नेताओं ने आंदोलन को जनाधारित रूप देने और राजनीतिक चेतना फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आर्थिक और स्वदेशी सिद्धांतों के माध्यम से स्वराज्य का मार्ग प्रशस्त किया।

प्रश्न 4. स्वदेशी आंदोलन के कौन-से कार्यक्रम ने शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा दी?
(a) राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार
(b) विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना
(c) अंग्रेजी शिक्षा का विस्तार
(d) तकनीकी शिक्षा का बहिष्कार

उत्तर: (a) राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार

व्याख्या: स्वदेशी आंदोलन के समय ब्रिटिश शैक्षणिक संस्थानों के विरोध में भारतीय नेताओं ने राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना शुरू की। इनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति, राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भरता की भावना पर आधारित शिक्षा देना था। इस दौरान “नेशनल एजुकेशन मूवमेंट” ने बंगाल और अन्य प्रांतों में अनेक संस्थान स्थापित किए, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को वैचारिक आधार मिला।

प्रश्न 5. राष्ट्रवाद के सांस्कृतिक प्रचार में कौन-सा गीत प्रमुख प्रेरणा स्रोत बना?
(a) जन गण मन
(b) वंदे मातरम्
(c) सारे जहाँ से अच्छा
(d) ऐ मेरे वतन के लोगों

उत्तर: (b) वंदे मातरम्

व्याख्या: बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित “वंदे मातरम्” गीत ने स्वदेशी आंदोलन को सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रेरणा दी। यह गीत भारतीय राष्ट्रीयता और मातृभूमि के प्रति समर्पण का प्रतीक बन गया। अन्य कवियों के देशभक्तिपूर्ण गीतों ने भी आंदोलन को सांस्कृतिक गहराई दी। इस भावनात्मक एकता ने भारतीय राष्ट्रवाद को जन-आंदोलन में बदलने में मदद की।

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