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सुगौली की संधि का उत्तराखंड के राजनीतिक और क्षेत्रीय परिदृश्य पर प्रभाव

प्रस्तावना:

सुगौली की संधि (1816) का वर्तमान उत्तराखंड के राजनीतिक और क्षेत्रीय परिदृश्य पर एक निर्णायक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। यह संधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और गोरखा साम्राज्य के बीच हुए भारत-नेपाल युद्ध (1814-1816) का परिणाम थी। इस संधि ने उत्तराखंड के विशाल हिस्सों को नेपाल के नियंत्रण से निकालकर ब्रिटिश भारत में शामिल किया, जिसने इस क्षेत्र की भविष्य की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना की नींव रखी। इस घटना ने उत्तराखंड के इतिहास की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया।

कुमाऊँ और गढ़वाल का ब्रिटिश अधिग्रहण: सुगौली की संधि की शर्त के अनुसार नेपाल को अपने कब्जे वाले क्षेत्रों, जिसमें कुमाऊँ और गढ़वाल शामिल थे, को अंग्रेजों को सौंपना पड़ा। इस अधिग्रहण के परिणामस्वरूप, ये क्षेत्र ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गए और उन्हें एक अलग प्रशासनिक इकाई, कुमाऊँ डिवीज़न, के रूप में संगठित किया गया। यह भौगोलिक परिवर्तन वर्तमान उत्तराखंड की क्षेत्रीय सीमाओं को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण था।

टिहरी रियासत की स्थापना: संधि के बाद, अंग्रेजों ने पूरे गढ़वाल पर नियंत्रण नहीं किया। उन्होंने गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह को टिहरी क्षेत्र वापस लौटा दिया, जहाँ उन्होंने टिहरी गढ़वाल रियासत की स्थापना की। यह कदम ब्रिटिश नीति का हिस्सा था, जिसके तहत वे एक सहयोगी रियासत को बनाकर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे। यह विभाजन गढ़वाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने इस क्षेत्र को दो अलग-अलग राजनीतिक संस्थाओं में विभाजित कर दिया: ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल।

राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव: ब्रिटिश नियंत्रण में आने के बाद, कुमाऊँ और गढ़वाल में गोरखा शासन की अराजकता समाप्त हुई। अंग्रेजों ने यहाँ एक व्यवस्थित और केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने भूमि राजस्व नीतियों को व्यवस्थित किया, न्याय प्रणाली की स्थापना की और सड़कों व अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण शुरू किया। इस नई प्रशासनिक व्यवस्था ने क्षेत्र में स्थिरता लाई और यहाँ के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया।

गोरखा शासन का अंत और सीमा विवादों का समाधान: सुगौली की संधि ने गोरखाओं के विस्तारवादी लक्ष्यों पर विराम लगा दिया। इसने भारत और नेपाल के बीच की सीमा को स्थायी रूप से निर्धारित किया, जो आज भी काफी हद तक मान्य है। यह संधि न केवल उत्तराखंड के लिए, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक घटना थी, जिसने भविष्य के सीमा विवादों को हल करने का एक आधार प्रदान किया।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, सुगौली की संधि ने उत्तराखंड के राजनीतिक और क्षेत्रीय परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया। इसने गोरखाओं की शक्ति को समाप्त किया, कुमाऊँ और गढ़वाल को ब्रिटिश शासन के अधीन लाया और टिहरी रियासत की स्थापना की। इस संधि ने इस क्षेत्र के लिए एक नई प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक संरचना की नींव रखी, जिसने आधुनिक उत्तराखंड के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।

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