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मकर संक्रांति का त्यौहार

प्रस्तावना:

मकर संक्रांति भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन त्योहारों में से एक है, जो पूरे देश में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार हर साल जनवरी के महीने में आता है और सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, कृषि और ऋतु परिवर्तन के साथ मानव जीवन के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। यह दिन नई शुरुआत, फसल की कटाई और दान-पुण्य के लिए बहुत शुभ माना जाता है।

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश: मकर संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है “सूर्य का मकर राशि में संक्रमण”। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। यह एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जो सर्दियों की समाप्ति और दिन के समय की अवधि बढ़ने का संकेत देती है। इस संक्रमण को शुभ माना जाता है, क्योंकि इसके बाद शुभ कार्यों जैसे शादी, गृह प्रवेश और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत होती है।

पवित्र स्नान और दान-पुण्य: इस त्यौहार पर पवित्र नदियों, जैसे गंगा, यमुना और अन्य नदियों में स्नान करना बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। लाखों श्रद्धालु इस दिन गंगा में डुबकी लगाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्नान के बाद दान-पुण्य करने का भी बहुत महत्व है। लोग गरीबों, जरूरतमंदों और साधु-संतों को तिल, गुड़, कंबल और कपड़े जैसी चीजें दान करते हैं, जो पुण्य कमाने का एक तरीका माना जाता है।

तिल-गुड़ के पारंपरिक व्यंजन: मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने विशेष पकवान बनाए जाते हैं। तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ जैसे तिल के लड्डू, गजक और चिक्की इस त्यौहार की मुख्य विशेषता हैं। इन व्यंजनों का सेवन सर्दियों में शरीर को ऊर्जा और गर्मी प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। तिल को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और इसका उपयोग पूजा और दान में भी किया जाता है।

उत्तराखंड में उत्तरायणी मेला: उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तरायणी मेला आयोजित होता है, विशेषकर बागेश्वर में सरयू और गोमती नदी के संगम पर। यह मेला धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी कार्य करता है। यहाँ भारत और नेपाल के व्यापारी अपनी वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं, और लोक कला, पारंपरिक संगीत और नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। यह मेला क्षेत्रीय संस्कृति और सामुदायिक सद्भाव का प्रतीक है।

फसल और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक: मकर संक्रांति का त्यौहार कृषि चक्र से भी जुड़ा हुआ है। यह सर्दियों की समाप्ति और नई फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक है। देश के विभिन्न हिस्सों में, किसान अपनी फसल की कटाई का जश्न मनाते हैं। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक अवसर है, क्योंकि यह नई फसल की खुशहाली और समृद्धि का संदेश देता है।

निष्कर्ष:

मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो आस्था, संस्कृति, कृषि और खगोलीय घटनाओं का अद्भुत मिश्रण है। यह न केवल हमारे धार्मिक विश्वासों को दर्शाता है, बल्कि यह दान, सामुदायिक एकजुटता और प्रकृति के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को भी बढ़ावा देता है। यह पर्व हर साल एक नई शुरुआत, समृद्धि और आशा का संदेश लेकर आता है, जो हमें हमारी परंपराओं और जड़ों से जोड़े रखता है।

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