प्रस्तावना
देवीधुरा बगवाल मेला उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित बाराही देवी मंदिर में हर साल रक्षाबंधन के दिन आयोजित होता है। यह मेला अपनी अनूठी परंपरा, बगवाल के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि वीरता, साहस और देवी के प्रति गहरी आस्था का एक अनोखा प्रदर्शन है। इस मेले की सबसे खास बात इसकी साहसी और प्रतीकात्मक पत्थरबाजी की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है।
बगवाल का अनूठा अनुष्ठान: इस मेले का मुख्य आकर्षण इसका बगवाल अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान में चार खाम (दल) शामिल होते हैं: वालिक, लमहा, गहड़वाल और चम्याल। ये दल ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर एक-दूसरे पर प्रतीकात्मक रूप से पत्थर फेंकते हैं। यह अनुष्ठान पौराणिक कथाओं पर आधारित है, जिसमें कहा जाता है कि मानव बलि की परंपरा को रोकने के लिए इस प्रतीकात्मक पत्थरबाजी की शुरुआत हुई थी।
साहस और वीरता का प्रतीक: बगवाल का यह अनुष्ठान साहस, बहादुरी और वीरता का प्रतीक है। प्रतिभागी अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं। पत्थरों के इस खेल को एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है, जहाँ चोट लगने को देवी के आशीर्वाद के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह परंपरा स्थानीय लोगों के दृढ़ संकल्प और देवी के प्रति उनके गहरे विश्वास को दर्शाती है।
सुरक्षा और पारंपरिक नियंत्रण: हालांकि बगवाल का यह अनुष्ठान जोखिम भरा लगता है, लेकिन सामुदायिक बुजुर्गों (elders) द्वारा इसे अत्यंत सुरक्षा और नियंत्रण के साथ आयोजित किया जाता है। पत्थरबाजी के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी को गंभीर चोट न लगे। अनुष्ठान का समय भी निर्धारित होता है और जैसे ही मंदिर के पुजारी शंखनाद करते हैं, पत्थरबाजी तुरंत रोक दी जाती है। यह दर्शाता है कि परंपरा और सुरक्षा दोनों को बराबर महत्व दिया जाता है।
देवी बाराही के प्रति अटूट आस्था: देवीधुरा का यह मेला मुख्य रूप से देवी बाराही को समर्पित है। यह मान्यता है कि इस मेले में भाग लेने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। लोग दूर-दूर से यहाँ आकर देवी से आशीर्वाद मांगते हैं। बगवाल अनुष्ठान को अपनी धार्मिक मन्नतें पूरी करने का एक तरीका माना जाता है। यह आस्था लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी इस अनूठी परंपरा को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।
सांस्कृतिक और सामुदायिक एकजुटता: बगवाल मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता का एक बड़ा प्रतीक भी है। चार खामों के लोग भले ही प्रतीकात्मक रूप से एक-दूसरे के विरोधी हों, लेकिन मेले के बाद वे एक साथ मिलकर जश्न मनाते हैं। यह आपसी सौहार्द और भाईचारे को बढ़ावा देता है। यह मेला स्थानीय संस्कृति, लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों को प्रदर्शित करने का एक मंच भी है।
निष्कर्ष:
देवीधुरा बगवाल मेला आस्था और साहस का एक अनोखा उदाहरण है। यह हमें सिखाता है कि परंपराएँ कैसे हमारी संस्कृति और पहचान का एक अभिन्न अंग बन जाती हैं। यह मेला न केवल देवी बाराही के प्रति गहरी आस्था को दर्शाता है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता, वीरता और पारंपरिक मूल्यों को भी मजबूत करता है। यह एक ऐसा आयोजन है जो हमें भारत की अविश्वसनीय और विविध सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराता है।