परिचय
पहाड़ी क्षेत्र, अपनी अद्वितीय भूभौतिक संरचनाओं, विविध पारिस्थितिकी तंत्रों और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के कारण पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्रों में से एक हैं। ये क्षेत्र न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं, बल्कि वे जल स्रोतों, जैव विविधता हॉटस्पॉट और स्थानीय समुदायों की आजीविका के आधार के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हाल के दशकों में, बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण इन पहाड़ी क्षेत्रों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें अतिक्रमण और भूमि उपयोग में तीव्र परिवर्तन प्रमुख हैं। अनियोजित विकास, जनसंख्या का दबाव और संसाधनों का अत्यधिक दोहन इन नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों पर भारी दबाव डाल रहा है, जिससे पर्यावरणीय गिरावट और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
अतिक्रमण और भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण और प्रभाव:
जनसंख्या वृद्धि और बस्तियों का विस्तार: मैदानी क्षेत्रों से बढ़ती जनसंख्या का दबाव और पहाड़ी क्षेत्रों में बेहतर सुविधाओं की तलाश में प्रवास के कारण पहाड़ी कस्बों और गाँवों का तेजी से विस्तार हो रहा है। इसके लिए कृषि भूमि, वन भूमि और यहाँ तक कि संवेदनशील ढलानों पर भी अतिक्रमण करके नई बस्तियाँ बसाई जा रही हैं। यह अक्सर अनियोजित तरीके से होता है, जिससे प्राकृतिक जल निकासी बाधित होती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
कृषि विस्तार और पारंपरिक प्रथाओं में बदलाव: बढ़ती आबादी की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, वन भूमि को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है। पारंपरिक सीढ़ीदार खेती (terracing) के बजाय, कुछ क्षेत्रों में पेड़ों को काटकर सीधे ढलानों पर खेती की जा रही है, जिससे मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है। झूम खेती (shifting cultivation) जैसी प्रथाएँ, यदि अनियंत्रित हों, तो भी वन आवरण को नुकसान पहुँचाती हैं।
बुनियादी ढाँचा विकास: सड़कें, जलविद्युत परियोजनाएँ, रेलवे लाइनें, सुरंगें और अन्य बड़े पैमाने के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि उपयोग में परिवर्तन किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के निर्माण के लिए वनों को साफ किया जाता है, पहाड़ों को काटा जाता है, और बड़ी मात्रा में मलबा उत्पन्न होता है जिसे अक्सर नदियों या ढलानों पर फेंक दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है।
पर्यटन और संबंधित विकास: पहाड़ी इलाके लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं, और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के लिए होटल, रिसॉर्ट, गेस्ट हाउस और अन्य सुविधाओं के निर्माण के लिए प्राकृतिक भूमि का अतिक्रमण किया जा रहा है। यह अक्सर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करके होता है, जिससे संवेदनशील क्षेत्रों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और प्राकृतिक सौंदर्य का क्षरण होता है।
अवैध खनन और संसाधन निष्कर्षण: निर्माण सामग्री (जैसे रेत, पत्थर, बजरी) और अन्य खनिजों की बढ़ती मांग के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध खनन गतिविधियाँ बढ़ गई हैं। यह खनन न केवल प्राकृतिक परिदृश्य को नष्ट करता है, बल्कि भूभौतिक अस्थिरता को बढ़ाता है, जिससे भूस्खलन और मिट्टी के धंसने का खतरा बढ़ जाता है।
वनों की कटाई और वन क्षरण: अतिक्रमण और भूमि उपयोग परिवर्तन का सीधा परिणाम वनों की कटाई और वन क्षरण के रूप में होता है। शहरीकरण, कृषि, बुनियादी ढाँचा और जलाऊ लकड़ी की बढ़ती मांग के कारण वन आवरण तेजी से घट रहा है। वनों का यह नुकसान जैव विविधता को कम करता है, जल चक्र को प्रभावित करता है और कार्बन सिंक की क्षमता को कम करता है।
जल स्रोतों पर प्रभाव: भूमि उपयोग परिवर्तन, विशेषकर वनों की कटाई और निर्माण गतिविधियों से, प्राकृतिक झरनों और जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वनस्पति आवरण की कमी भूजल के पुनर्भरण को कम करती है, जिससे झरनों का सूखना और जल संकट की समस्या उत्पन्न होती है। अनियोजित निर्माण से जल निकासी पैटर्न भी बाधित होते हैं।
प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता: पहाड़ी क्षेत्रों में अतिक्रमण और अनियोजित भूमि उपयोग परिवर्तन उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है। वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव और ढलानों पर निर्माण से भूस्खलन, बादल फटने, अचानक बाढ़ और मिट्टी के धंसने जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है।
जैव विविधता का नुकसान और आवास का विखंडन: प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण और विखंडन पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करता है। वन्यजीवों के गलियारे बाधित होते हैं, जिससे उन्हें भोजन, पानी और सुरक्षित आश्रय खोजने में कठिनाई होती है। यह जैव विविधता के नुकसान और मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि का कारण बनता है।
स्थानीय समुदायों पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: भूमि उपयोग परिवर्तन अक्सर स्थानीय समुदायों, विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण आबादी को विस्थापित करता है। उनकी पारंपरिक आजीविका के साधन (कृषि, वन उत्पाद) छिन जाते हैं, जिससे गरीबी बढ़ती है और उन्हें नए स्थानों पर अनुकूलन करने में कठिनाई होती है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक विघटन और संघर्ष को भी जन्म दे सकता है।
निष्कर्ष
पहाड़ी क्षेत्रों में अनियंत्रित अतिक्रमण और भूमि उपयोग परिवर्तन एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौती है जिसके दूरगामी परिणाम हैं। यह न केवल इन नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों की पारिस्थितिक अखंडता को खतरे में डाल रहा है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ा रहा है और स्थानीय समुदायों की आजीविका को प्रभावित कर रहा है। इस संकट से निपटने के लिए एक समग्र, टिकाऊ और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। इसमें सख्त भूमि उपयोग योजना और प्रवर्तन, सतत विकास प्रथाओं को बढ़ावा देना, वनीकरण और पारिस्थितिक बहाली, स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना, और पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। पहाड़ी क्षेत्रों का संरक्षण केवल एक क्षेत्रीय विषय नहीं है, बल्कि यह वैश्विक पारिस्थितिक संतुलन और मानव कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
