प्रस्तावना:
भारत में छठी शताब्दी ईसा पूर्व के धार्मिक व सामाजिक आंदोलनों के दौरान जैन धर्म का उदय हुआ। इसके 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी (599–527 ईसा पूर्व) ने जैन धर्म को संगठित स्वरूप प्रदान किया। जैन धर्म ने सरल, नैतिक और अहिंसात्मक जीवन-पद्धति प्रस्तुत की तथा सामाजिक-धार्मिक जटिलताओं के विकल्प के रूप में लोकप्रिय हुआ। इसके सिद्धांतों और योगदानों ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ी।
जैन धर्म के मूल सिद्धांत
- जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने पाँच प्रमुख व्रतों की शिक्षा दी: अहिंसा (अहिंसा परमो धर्मः), सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग)।
- इनमें अहिंसा प्रमुख थी। जैन साधु-साध्वियाँ जीव-हिंसा से बचने के लिए अत्यंत सावधानी बरतते थे, यहाँ तक कि वे धरती पर पाँव रखते समय भी जीवों को बचाने का प्रयास करते थे।
तप और संयम का महत्व
- जैन धर्म ने कठोर तप, संयम और संन्यास को मुक्ति का मार्ग बताया।
- अनुयायियों को इन्द्रियों पर नियंत्रण, आत्म-शुद्धि और आत्मज्ञान के लिए कठिन साधना का पालन करना आवश्यक माना गया।
- इस कारण जैन धर्म संन्यासी परंपरा का आदर्श उदाहरण बना।
वर्ण-भेद और कर्मकांड का विरोध
- जैन धर्म ने जाति-आधारित भेदभाव और ब्राह्मणवादी यज्ञ-बलियों का प्रतिरोध किया।
- उसके अनुसार प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म से श्रेष्ठ है, जन्म से नहीं।
- सरल पूजा और साधना को अपनाकर जैन धर्म जनता के बीच अधिक स्वीकार्य बना।
शाकाहार और जीवन के प्रति सम्मान
- जैन धर्म ने संपूर्ण जीव-जगत के प्रति संवेदनशीलता का संदेश दिया।
- अनुयायी शुद्ध शाकाहार के समर्थक बने।
- पशु-पक्षियों और सूक्ष्म जीवों तक के प्रति करुणा और दया जैन समाज की पहचान बन गई।
भारतीय कला और स्थापत्य में योगदान
- जैन धर्म ने भारतीय कला और वास्तुकला को गहरी छाप दी।
- जैन मंदिर, स्तूप और गुफा-निवास इसकी सांस्कृतिक देन हैं।
- विशेष रूप से माउंट आबू का दिलवाड़ा मंदिर, श्रीशैलम और एल्लोरा की जैन गुफाएँ जैन कला की उत्कृष्ट कृतियाँ मानी जाती हैं।
- इन कलात्मक धरोहरों ने भारतीय स्थापत्य, मूर्तिकला और चित्रकला को विशिष्टता प्रदान की।
सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- जैन धर्म ने सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों से भारतीय संस्कृति के नैतिक मूल्यों को समृद्ध किया।
- व्यापारिक और शहरी समुदायों में इसका गहरा प्रभाव रहा, जिससे व्यापार-नीति और सामाजिक जीवन में विश्वसनीयता और नैतिकता स्थापित हुई।
- जैन साहित्य (प्राकृत भाषा में लिखित आगम ग्रंथ) ने भारतीय भाषाओं एवं साहित्य को भी समृद्ध किया।
निष्कर्ष:
जैन धर्म अपनी कठोर अहिंसा, संयम और नैतिक आदर्शों के कारण भारतीय धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण अंग बना। महावीर द्वारा दिए गए सिद्धांतों ने समाज को समानता, करुणा और आत्मसंयम का संदेश दिया। जैन धर्म ने भारतीय कला, स्थापत्य, साहित्य और जीवन-शैली को गहराई से प्रभावित किया। इस प्रकार जैन धर्म केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य अंग है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQS) और उत्तर
प्रश्न 1. जैन धर्म के पाँच व्रतों में सबसे प्रमुख कौन-सा माना गया है?
- सत्य
- अहिंसा
- अस्तेय
- अपरिग्रह
उत्तर: B. अहिंसा
व्याख्या: जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोच्च धर्म माना गया है, जिसे “अहिंसा परमो धर्मः” कहा जाता है। जैन साधु-साध्वियाँ जीवों की रक्षा हेतु अत्यंत सावधान रहते थे, यहाँ तक कि चलते समय भूमि पर भी जीवों को हानि न पहुँचे इसका ध्यान रखते। यह सिद्धांत केवल मानव नहीं, बल्कि सभी जीव-जगत के प्रति करुणा और दया की भावना जगाकर भारतीय संस्कृति को विशिष्ट नैतिक आदर्श प्रदान करता है।
प्रश्न 2. जैन धर्म में मुक्ति प्राप्ति का मार्ग किस पर आधारित है?
- यज्ञ और बलि
- कठोर तप व संयम
- दान और भक्ति
- शिक्षा और विद्या
उत्तर: B. कठोर तप व संयम
व्याख्या: जैन धर्म के अनुसार आत्मा की मुक्ति कठिन तप, संयम और इन्द्रिय-नियंत्रण से ही संभव है। अनुयायियों को आत्मशुद्धि और आत्मज्ञान के लिए कठोर साधना करनी होती थी। इसी कारण जैन साधुओं ने त्याग और संन्यास को जीवन का आदर्श बनाया। यह मार्ग सांसारिक सुखों और वासनाओं से दूर रहकर आंतरिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति पर बल देता है।
प्रश्न 3. जैन धर्म का जाति-प्रथा के संबंध में क्या दृष्टिकोण था?
- जाति को ईश्वरीय व्यवस्था मानना
- जन्म आधारित श्रेष्ठता को स्वीकारना
- कर्म और आचरण को मूल मानना
- ब्राह्मणों को सर्वश्रेष्ठ मानना
उत्तर: C. कर्म और आचरण को मूल मानना
व्याख्या: जैन धर्म ने जाति-आधारित भेदभाव और ब्राह्मणवादी यज्ञ परंपरा का विरोध किया। इसके अनुसार मनुष्य का सम्मान और श्रेष्ठता उसके कर्म व आचरण से तय होती है, जन्म से नहीं। इस विचार ने समाज में समानता और आत्मसम्मान की भावना बढ़ाई। निचली जातियों और पीड़ित वर्गों को इस सिद्धांत से नया आत्मविश्वास और सम्मान मिला, जिससे जैन धर्म व्यापक रूप से जनप्रिय हुआ।
प्रश्न 4. जैन धर्म का भारतीय कला और स्थापत्य में प्रमुख योगदान किस रूप में देखा जाता है?
- वैदिक यज्ञमंडप
- दिलवाड़ा मंदिर और गुफाएँ
- वेद पाठशालाएँ
- बौद्ध विहार
उत्तर: B. दिलवाड़ा मंदिर और गुफाएँ
व्याख्या: जैन धर्म का भारतीय कला और स्थापत्य में विशिष्ट योगदान है। माउंट आबू का दिलवाड़ा मंदिर, एल्लोरा और उदयगिरि की जैन गुफाएँ तथा विभिन्न स्तंभ और मूर्तियाँ इसकी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ हैं। इन कलात्मक धरोहरों की बारीक नक्काशी, सामंजस्य और आध्यात्मिक सौंदर्य ने भारतीय स्थापत्य और मूर्तिकला को विशेष पहचान दी। यही कारण है कि जैन कला भारतीय संस्कृति का गौरव मानी जाती है।
प्रश्न 5. जैन धर्म का सामाजिक-आर्थिक वर्ग, विशेषकर व्यापारियों और नगरों पर प्रभाव किस कारण से पड़ा?
- बलि प्रथा पर जोर
- नैतिकता और सत्यनिष्ठा पर बल
- राजाओं का संरक्षण
- सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
उत्तर: B. नैतिकता और सत्यनिष्ठा पर बल
व्याख्या: जैन धर्म ने सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को जीवन और समाज के लिए आवश्यक माना। व्यापारी व शहरी समुदायों ने इन मूल्यों को अपनाकर व्यापार और सामाजिक जीवन में विश्वास, नैतिकता और पारदर्शिता स्थापित की। शुद्ध शाकाहार और करुणा जैसे आदर्शों ने समाज को अधिक मानवीय और विश्वसनीय बनाया। इस कारण जैन धर्म व्यापारिक वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय और प्रभावी सिद्ध हुआ।