Rankers Domain

  • Home
  • UK PCS
  • जलवायु परिवर्तन और उत्तराखंड पर इसका प्रभाव

जलवायु परिवर्तन और उत्तराखंड पर इसका प्रभाव

परिचय

जलवायु परिवर्तन मानव जाति की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय परिवर्तन लाती है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में भी व्यापक प्रभाव डालती है। भारत का उत्तराखंड राज्य, जो हिमालयी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यहाँ की पारिस्थितिकी, जो जल, भूमि, वनों, और जैव विविधता पर आधारित है, जलवायु परिवर्तन के द्वारा गंभीर खतरे में पड़ गई है।

जलवायु परिवर्तन का दायरा

जलवायु परिवर्तन, जिसे आमतौर पर मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले जलवायु पर प्रभाव के रूप में जाना जाता है, विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होता है। इनमें तापमान में वृद्धि, असामान्य वर्षा, बाढ़, सूखा, और प्राकृतिक आपदाओं का अत्यधिक बढ़ना शामिल है। ये सभी पहलू उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषि और संसाधनों पर निर्भरता में असामान्य परिवर्तन लाते हैं।

जलवायु परिवर्तन और कृषि

उत्तराखंड की लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। यहां की अधिकांश फसलें वर्षा पर निर्भर होती हैं, और जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इससे किसानों की पैदावार में कमी आ रही है। अध्ययन बताते हैं कि वर्षा पैटर्न में परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन में 20-30% की कमी दर्ज की गई है। चूंकि अधिकांश किसान छोटे उत्पादनकर्ता हैं, ऐसे में उनके लिए यह कमी बहुत गंभीर होती है।

विभिन्न फसलों के लिए उपयुक्तता की अवधि में भी परिवर्तन आया है। जैसे कि स्थानीय सेब की खेती अब अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों की ओर खिसक रही है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण नए कीटों और रोगों का आना भी किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। कृषि घाटे के परिणामस्वरूप, कई किसान अन्य रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की ओर प्रवासित हो रहे हैं।

आंतरिक प्रवासन

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव केवल कृषि तक सीमित नहीं हैं; वे सामाजिक संरचना और प्रवासन पैटर्न को भी प्रभावित करते हैं। उत्तराखंड में, कई गांव सूने हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 734 गांव 2011 के बाद से निर्जन हो गए हैं। यह प्रवासन जलवायु परिवर्तन के द्वारा उत्पन्न तनाव, जैसे कि पानी की कमी और फसल उत्पादन में गिरावट के कारण भी हो रहा है। यहाँ तक कि जो लोग गांव छोड़ते हैं, उनमें से कई धरोहरों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि अन्य बेहतर जीवन जीने के लिए शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।

आंतरिक प्रवासन के कारण कई सामाजिक समस्याएं भी उभरती हैं। जैसे कि, परिवारों के बीच तनाव, महिलाओं द्वारा अकेले घर चलाने की जिम्मेदारी, और सामाजिक संरचनाओं का टूटना। महिलाएं, जो अपने पति के जाने के बाद अपने खेत और परिवार का ध्यान रखती हैं, जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों के संदर्भ में अतिरिक्त दबाव महसूस करती हैं।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। असामान्य मौसम स्थितियों, जैसे अत्यधिक वर्षा और गर्मी के कारण स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में डेंगू और मलेरिया जैसे बुखारों की बाढ़ आ गई है। इसकी वजह से स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं पर अधिक बोझ पड़ रहा है और गरीब समुदायों की सेहत पर खतरा बढ़ गया है।

ग्रामीण बाहुल्य होने के कारण यहाँ की स्वास्थ्य अवसंरचना कमजोर है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले ऐसे स्वास्थ्य संकट, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, प्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली की कमी के कारण और भी गंभीर हो जाते हैं।

जलवायु के पैटर्न में परिवर्तन

उत्तराखंड का जलवायु पैटर्न उसके भौगोलिक विविधता पर निर्भर करता है। यहाँ चार मौसमों का चक्र होता है, जिसमें गर्मी, वर्षा, और सर्दी शामिल हैं। लेकिन हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन ने इन मौसमों में असामान्यता लाने का काम किया है। औसत तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे ग्लेशियरों का पिघलना, बर्फबारी की कमी, और बाढ़ की घटनाएँ बढ़ गई हैं।

अध्ययनों से पता चला है कि उत्तराखंड में पिछले 100 वर्षों में औसत तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, वर्षा में भी कमी आई है, जो जल स्रोतों और कृषि को प्रभावित कर रही है।

अनुसंधान और सुझाव

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक है कि नीति निर्माण में वैज्ञानिक अनुसंधान को शामिल किया जाए। उत्तराखंड सरकार ने 2014 में जलवायु परिवर्तन पर एक कार्य योजना बनाई थी, जिसमें जलवायु परिवर्तन से संबंधित परिवर्तनों की पहचान की गई थी, जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना और उनका घटाव, असमान वर्षा और बाढ़ का बढ़ता खतरा।

राज्य को चाहिए कि वह स्थानीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए उपाय करे, जैसे कि बेहतर जल प्रबंधन और फसल विविधीकरण। इसके साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निवेश बढ़ाना चाहिए, ताकि स्थानीय समुदाय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने के लिए तैयार हो सकें।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव उत्तराखंड की समग्र पारिस्थितिकी और समाज को खतरे में डाल रहे हैं। समुदायों की जीविका, स्वास्थ्य, और सामाजिक ताना-बाना सभी इस परिवर्तन के प्रभावों के अधीन हैं। यह आवश्यक है कि सरकार, स्थानीय समुदाय, और संगठनों को मिलकर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाए ताकि जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों को कम किया जा सके। सस्टेनेबल डेवलपमेंट स्ट्रैटेजी को अपनाने के लिए एक सशक्त नीति आवश्यकता है। बिना कठोर कदमों के, उत्तराखंड एक ऐसे संकट के कगार पर है जो इसकी विशिष्टता और अस्तित्व को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

Recent Posts